देश भर के विभिन्न स्थानों पर निवास कर रहे बंगाल राज्य के निवासियों ने पारंपरिक तरीके से शारदीय नवरात्र समाप्त होने के पश्चात, विजयादशमी पर मां दुर्गा को विदाई दी। इस दौरान, बैंड, बाजों की मधुर धुन के साथ श्रद्वालु ‘आश्चे बोछोर आबर होबे' (ससुराल को विदायी देते हुए दोबारा जल्दी आना) का उद्घोष कर रहे थे।
इस दौरान, सिन्दूर खेला भी उत्साह पूर्वक हुआ। दशमी पर बंगाली समाज के लोगों नेमें नवरात्र समापन का अत्यन्त भव्य रूप से आयोजन किया गया, कई जगह सिंदूर की होली खेली गई। सिंदूर खेला की समाप्ति के बाद मां को विदाई दी गई। मां का विसर्जन कर उनसे जल्दी दोबारा वापस आने की प्रार्थना की गई।
इससे एक दिन पहले नवमी का हवन किया जाता है, जिसमें मां का प्रिया भोग में खिचड़ी प्रसाद, लैबड़ा और टमाटर की चटनी एवं खीर मां को अर्पित की जाती है। बता दें कि सिंदूर खेला में सुहागन महिलाओं को शामिल किया जाता है। इस दौरान पान के पत्तों से मां के गालों को स्पर्श किया जाता है, इसके बाद उनकी मांग को सिंदूर से भरा जाता है और माथे पर भी सिंदूर लगाया जाता है।
इसके बाद मां को पान और मिठाई का भोग लगाया जाता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। फिर सभी महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाती हैं और लंबे सुहाग की कामना करती हैं। बताया जाता है कि 450 साल पहले इस प्रथा की शुरुआत की गई थी।
ऐसी मान्यता है की मां दुर्गा साल भर में एक बार अपने मायके आती हैं और 10 दिन रुकने के बाद वापस से अपने ससुराल चली जाती हैं। जब मां अपने मायके आती हैं तो उसे अवधि को दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है।