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20 जून को निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, जानिए क्या है इसकी परंपरा

  • Edited By Kirti,
  • Updated: 04 Jun, 2023 03:09 PM
20 जून को निकलेगी भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा, जानिए क्या है इसकी परंपरा

जगन्नाथ धाम में महाप्रभु जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा 20 जून को निकाली जाएगी। बता दें कि भारत के ओडिशा राज्य के पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है जो ना सिर्फ देश बल्कि विदेशों में भी प्रसिद्ध है। जिसमें शामिल होने के लिए लोग दूर-दूर से पूरी पहुंचते हैं। जिसे धार्मिक रथ यात्रा को रथ महोत्सव, नवदीना यात्रा, गुंडिचा यात्रा या दशावतार के नाम से भी जाना जाता है। जानरकारी के मुताबिक पुरी स्‍थित भगवान जगन्नाथ का मंदिर देश के प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। 'जगन्नाथ' का शाब्दिक अर्थ है भगवान या ब्रह्मांड के स्वामी। भगवान जगन्नाथ गैर-सांप्रदायिक हैं और संपूर्ण रूप से हिंदू धर्म के किसी विशेष संप्रदाय से जुड़े नहीं हैं।


पांच हजार साल पुरानी रथयात्रा की मान्‍यता क्‍या है?

बता दें कि इस रथ यात्रा की परंपरा 5000 हजार साल से भी ज्यादा है। जिसे दुनिया की सबसे पुरानी रथ यात्राओं में से एक माना जाता है।  जिसे परंपरागत रूप से हर साल उत्सव पुरी, उड़ीसा में मनाया जाता है। इस उत्सव के  दौरान भगवान जगन्नाथ की उनके भाई भगवान बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा के साथ पूजा की जाती है। रथ यात्रा का एक आध्यात्मिक महत्व भी है जिसे कथा उपनिषद में गहराई से समझाया गया है। यह मानव शरीर को रथ और उसके सारथी को भगवान के रूप में बताता है  जो रथ को भवसागर  की यात्रा से बाहर निकालने के लिए चलाता है।

कैसा होता है भगवान जगन्नाथ का रथ

जगन्नाथ जी का रथ 'चक्रध्वज' या 'नंदीगोश' कहलाता है। 16 पहियों वाला यह रथ 45 फीट लंबा है और इसका वजन 65 टन होता है। इसके शिखर पर गरुड़ की एक आकृति भी है और इसे चार सफेद लकड़ी के घोड़ों की ओर से खींचा जाता है।

बलराम के रथ में क्‍या खास

14 पहियों वाला यह रथ लकड़ी के चार काले घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। जिसे तलध्वज के नाम से भी जाना जाता है जो हनुमान को अपने शिखा पर बिठाता है।

सुभद्रा जी के रथ को क्‍या कहते हैं

वहीं 14 पहियों वाला यह पद्मध्वज या दर्पदलन के नाम से जाना जाता है। जिसका अर्थ है अभिमान का नाश करने वाला। इसके शिखर पर एक कमल है इसे चार लाल लकड़ी के घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। यात्रा के दौरान भगवान बलभद्र को देवी सुभद्रा और अंत में भगवान जगन्नाथ की तुलना में पहले मंदिर से बाहर लाया जाता है।
 

 

 

 

 

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