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कभी बने चपरासी तो कभी बेचा साबुन, संघर्ष भरी थी रामानंद की जिंदगी

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 27 Apr, 2020 10:27 AM
कभी बने चपरासी तो कभी बेचा साबुन, संघर्ष भरी थी रामानंद की जिंदगी

आजकल टीवी पर रिटेलीकास्ट होने वाली रामानंद सागर की रामायण को लोग बहुत प्यार दे रहे है। रामानंद सागर के निर्देशन में बनी इस रामायण का एक एक रोल निभाने वाले अभिनेताओं को लोग आज भी उतना ही प्यार करते है जितना उस जमाने में किया करते थे। रामायण के आते ही हर एक किरदार से जुड़े किस्से तो लोगों ने खूब सुने लेकिन आज आपको बताते है रामानंद सागर की जीवनी के बारे में कि किस तरह उन्होंने अपनी जिंदगी में मेहनत की और फिर जाकर उन्हे सफलता मिली।

रामानंद सागर का जन्म लाहौर में हुआ था और पहले उनका नाम चंद्रमौली था जिसे बाद में रामानंद कर दिया गया। रामानंद की जिंदगी में मानो मां का प्यार भी नहीं लिखा था। जब वे पांच साल के थे तो उनकी माता का निधन हो गया और उन्होंने अपनी जिंदगी बिना मां की ममता से गुजारी। 

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खबरों की मानें तो ये कहा जाता है कि मां की मौत के बाद उनके निसंतान मामा ने उन्हें गोद ले लिया था और रामानंद की जिंदगी वहीं बीती लेकिन उन्हें बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। रामानंद को पढ़ने लिखने का बेहद शौंक था दिन रात पढ़ने रहने वाले रामानंद ने महज 16 साल की उम्र में एक किताब लिखी जिसका नाम - प्रीतम प्रतीक्षा था। 

अपनी पढ़ाई के लिए किए कई काम 

रामानंद सागर को पढ़ने लिखने का शौंक तो था ही साथ ही वह अपनी पढ़ाई के लिए पैसे जुटाने के लिए काम भी करते थे। इन पैसों से ही रामामंद ने अपनी डिग्री पूरी की। उन्होंने पिओन से लेकर साबुन बेचने तक का काम किया है। यहां तक कि सुनार की दुकान में वो हेल्पर और ट्रक क्लीनर का भी काम कर चुके हैं। इस तरह जितने पैसे आते थे, वे अपनी पढ़ाई में लगाते थे। ऐसा करते हुए उन्होंने काम के साथ अपनी डिग्री भी हासिल कर ली। 

लेखनी में थी रूचि 

रामानंद सागर लेखन में बेहद बाकमाल थे। चूंकि उनका बचपन दर्द से गुजरा था, इसी की झलक आगे चलकर उनकी कहानियों और किस्सों में नजर आई और उन्होंने 32 लघुकथाएं, 4 कहानियां, 1 उपन्यास, 2 नाटक लिखे। वे पंजाब की जानी-मानी अखबार के संपादक भी रह चुके हैं। 

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क्लैपर बॉय से की करियर की शुरूआत 

फिल्मी सफर में उनकी शुरुआत क्लैपर बॉय के रूप में हुई थी जिसके बाद उन्होंने पृथ्वी थ‍िएटर्स में बतौर अस‍िस्टेंट स्टेज मैनेजर काम किया। इसके बाद रामानंद को सफलता मिलने लगी थी। उन्हें 1968 में आई फिल्म आंखें (धर्मेंद्र और माला सिन्हा) के लिए बेस्ट डायरेक्टर का अवॉर्ड मिला था। 

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रामायण ने दिलाई जबरदस्त सफलता
80 का समय वह समय था जब देश में दूरदर्शन एंटरटेनमेंट का साधन बनने लगा था। रामानंद को एहसास हो चला था कि इस दौर में टीवी का जबरदस्त दबदबा होगा और यही कारण है कि उन्होंने रामायण और महाभारत जैसे शोज का निर्माण किया, रामायण और महाभारत के प्रसारण होने पर तब लोग सड़कों को छोड़ घरों में टीवी के सामने बैठ जाते जिसके बाद सड़कों पर सन्नाटा पसर जाता था। लोग अपने टीवी से चिपक जाते थे, इस सीरियल के कलाकारों को कई लोग भगवान समझने लगे थे। रामानंद ने इन सीरियल्स के सहारे काफी लोकप्रियता हासिल की, उन्होंने 2005 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

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