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प्रभु श्री राम नहीं माता सीता ने किया था राजा दशरथ का श्राद्ध, जानिए क्या हुआ था इसके बाद

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 17 Sep, 2024 01:51 PM
प्रभु श्री राम नहीं माता सीता ने किया था राजा दशरथ का श्राद्ध, जानिए क्या हुआ था इसके बाद

नारी डेस्क:  पितृ पक्ष में पितरों का पिंडदान करना सुख एवं समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि तर्पण करने से उन्हें मुक्ति मिलती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार साधु-संत एवं बच्चों का पिंडदान नहीं किया जाता। वहीं  गरुड़ पुराण के अनुसार जिस व्यक्ति को पुत्र नहीं है, उनकी बेटी भी पिंडदान और तर्पण कर सकती है।  वाल्मिकी रामायण में सीता माता द्वारा ससुर राजा दशरथ का श्राद्ध कर्म करने का वर्णन है ।

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 गया धाम में हुआ राजा दशरथ का पिंडदान

शास्त्रों के अनुसार, वनवास के दौरान भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता पितृ पक्ष के वक़्त श्राद्ध करने के लिए गया धाम पहुंचे थे। वहां ब्राह्मण द्वारा बताए श्राद्ध कर्म के लिए आवश्यक सामग्री जुटाने हेतु श्री राम और लक्ष्मण नगर की ओर चल दिए। ब्राह्मण देव ने माता सीता को आग्रह किया कि पिंडदान का समय निकलता जा रहा है। यह जानकर माता सीता असमंजस में पड़ गई, तब माता  ने समय के महत्व को समझते हुए यह निर्णय लिया कि वह स्वयं अपने ससुर राजा दशरथ का पिंडदान करेंगी। 

 

राजा दशरथ पिंडदान से हुए खुश

देवी सीता ने फल्गु नदी के किनारे बालू का पिंड बनाया और वटवृक्ष, केतकी फूल, नदी और गाय को साक्षी मानकर स्वर्गीय राजा दशरथ का पिंडदान किया। इस क्रिया के उपरांत जैसे ही उन्होंने हाथ जोड़कर प्रार्थना की तो राजा दशरथ ने माता सीता का पिंड दान स्वीकार किया। माता सीता को इस बात से प्रफुल्लित हुई कि उनकी पूजा दशरथ जी ने स्वीकार कर ली है, पर वह यह भी जानती थी कि प्रभु राम इस बात को नहीं मानेंगे क्योंकि पिंड दान पुत्र के बिना नहीं हो सकता है। 

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फल्गू नदी, गाय ने बोला झूठ

थोड़ी देर बाद भगवान राम और लक्ष्मण सामग्री लेकर आए और पिंड दान के विषय में पूछा तब माता सीता ने कहा कि समय निकल जाने के कारण मैंने स्वयं पिंडदान कर दिया।  प्रभु राम को इस बात का विश्वास नहीं हो रहा था कि बिना पुत्र और बिना सामग्री के पिंडदान कैसे संपन्न और स्वीकार हो सकता है। तब सीता जी ने कहा कि वहां उपस्थित फल्गू नदी, तुलसी, कौआ, गाय, वटवृक्ष और ब्राह्मण उनके द्वारा किए गए श्राद्धकर्म की गवाही दे सकते हैं। भगवान राम ने जब इन सब से पिंडदान किये जाने की बात सच है या नहीं यह पूछा, तब फल्गू नदी, गाय, कौआ, तुलसी और ब्राह्मण पांचों ने प्रभु राम का क्रोध देखकर झूठ बोल दिया कि माता सीता ने कोई पिंडदान नहीं किया। 


माता सीता ने दिया था श्राप

सिर्फ वटवृक्ष ने सत्य कहा कि माता सीता ने सबको साक्षी रखकर विधि पूर्वक राजा दशरथ का पिंड दान किया। पांचों साक्षी द्वारा झूठ बोलने पर माता सीता ने क्रोधित होकर उन्हें आजीवन श्राप दिया। सीता माता द्वारा दिए गए इन श्रापों का प्रभाव आज भी इन पांचों में देखा जा सकता है।  जहां इन पांचों को श्राप मिला वहीं सच बोलने पर माता सीता ने वट वृक्ष को आशीर्वाद दिया कि उसे लंबी आयु प्राप्त होगी और वह दूसरों को छाया प्रदान करेगा तथा पतिव्रता स्त्री उनका स्मरण करके अपने पति की दीर्घायु की कामना करेगी।

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महिलाओं को भी है पिंडदान का अधिकार 

माता सीता की बुद्धिमत्ता और पिताश्री को खाली हाथ न लौटने देने की प्रशंसा करते हुए भगवान श्रीराम ने आशीर्वाद दिया कि हे देवी सीता,जिस प्रकार आज आपने पिताश्री का पिंडदान किया है, आनेवाले समय में कोई भी महिला पुरुषों की अनुपस्थिति में पिंडदान कर सकती है। कहा जाता है कि श्रीराम से आशीर्वाद मिलने के बाद ही महिलाओं को पिंडदान का अधिकार मिला। शास्‍त्रों में श्राद्ध का पहला अधिकार पुत्र को दिया गया है. लेकिन जिस परिवार में कोई पुत्र नहीं है, उस परिवार की कन्‍या पितरों के श्राद्ध को अगर श्रद्धापूर्वक करती है और उनके निमित्त पिंडदान करती है तो पितर उसे स्वीकार कर लेते हैं। इसके अलावा पुत्र की अनुपस्थिति में बहू या पत्नी को श्राद्ध करने का अधिकार है। 
 

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