चैत्र नवरात्रि में लाखों श्रद्धालुओं के आगमन की संभावना को देखते हुए प्रशासन ने प्रसिद्ध पीठ मां विंध्यवासिनी के दरबार में दर्शन-पूजन को लेकर सुरक्षा के मुकम्मल इंतजाम किये हैं। मां विंध्यवासिनी देवी दुर्गा के पराशक्ति रूपों में से एक है। उनका मंदिर उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के किनारे मिर्ज़ापुर से 8 किमी दूर विंध्याचल में स्थित है। एक तीर्थस्थल उत्तर प्रदेश में स्थित है, जिसे बंदला माता मंदिर भी कहा जाता है
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नवरात्रि में यहां मेला भी लगता है, जहां काफी संख्या में भक्त आते हैं। पिछले नवरात्रि में यहां करीब 25 लाख दर्शनार्थी आए थे, इस बार यह संख्या बढ़ सकती है। मंदिर प्रशासन ने बताया कि नवरात्रि के दौरान किसी को भी चरण स्पर्श की अनुमति नहीं दी जाएगी, चाहे वह कोई हों।मंदिर में भक्तों के लि तमाम बंदोबस्त किए गए हैं।
लोगों को विभिन्न स्थानों पर स्वच्छ और सुरक्षित पेयजल मिलेगा।' गंगा घाट पर महिलाओं को गंगा में डुबकी लगाने के बाद पोशाक बदलने के लिए उचित स्थान आवंटित किये गये हैं।बताया जाता है कि मां विन्ध्यासिनी त्रिकोण यन्त्र पर स्थित तीन रूपों को धारण करती हैं जहां स्वयं मां आदिशक्ति महालक्ष्मी विंध्यवासिनी के रूप में, अष्टभुजी अर्थात महासरस्वती और कालीखोह स्थित महाकाली के रूप में विराजमान हैं।
मान्यता अनुसार सृष्टि आरंभ होने से पूर्व और प्रलय के बाद भी इस क्षेत्र का अस्तित्व कभी समाप्त नहीं हो सकता।शास्त्रों में मां विंध्यवासिनी के ऐतिहासिक महात्म्य का अलग-अलग वर्णन मिलता है। शिव पुराण में मां विंध्यवासिनी को सती माना गया है तो श्रीमद्भागवत में नंदजा देवी (नंद बाबा की पुत्री) कहा गया है। मां के अन्य नाम कृष्णानुजा, वनदुर्गा भी शास्त्रों में वर्णित हैं ।
इस महाशक्तिपीठ में वैदिक तथा वाम मार्ग विधि से पूजन होता है। शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि आदिशक्ति देवी कहीं भी पूर्णरूप में विराजमान नहीं हैं, विंध्याचल ही ऐसा स्थान है जहां आदिशक्ति के पूरे विग्रह के दर्शन होते हैं। विंध्याचल उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित एक नगर है। यह गंगा नदी के निकट वाराणसी से कुल 70 किलोमीटर और मिर्ज़ापुर से 8 किमी की दूरी पर प्रयाग और काशी के ठीक मध्य में स्थित है।