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ऐशो-आराम के लिए इंसान बेरहमी से मार रहा जानवर, 48 सालों में विलुप्त हुए 69% तक जीव- जंतु!

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 16 Jun, 2023 11:26 AM
ऐशो-आराम के लिए इंसान बेरहमी से मार रहा जानवर, 48 सालों में विलुप्त हुए 69% तक जीव- जंतु!

आए दिन इंसानों की संख्या में बढ़ोतरी देखने को मिल रही है। वहीं 2023 तक ये आंकड़ा 8 Billion तक पहुंच गया है।  लेकिन अफसोस की ये ही बात हम जानवरों के लिए नहीं कह सकते हैं। जानवरों की प्रजाति दिन-ब-दिन कम हो रही है। इसकी वजह ये है कि इंसान अपने फायदे और आराम के लिए इन बेजुबानों पर लगातार कहर ढा रहा है, जिससे हर साल ना जाने कितने जानवर अपनी जान गंवा दे रहे हैं।  इंसानी जरूरतों को पूरा करने के चक्कर में जनवरों के घर जंगल को भी तहस-नहस किया जा रहा है और ये ही वजह है अपने घर से दूर हो रहे ये जानवर अप्राकृतिक वातावरण के चलते मर जा रहे हैं।

हर दिन 5,760 एकड़ यानि हर घंटे 240 एकड़ जंगल खत्म हो रहे है। वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (डब्ल्यूडब्ल्यूई फंड) के अनुसार  1970 से 2018 तक 48  सालों में 69%  जानवरों की संख्या में कमी आई है, जबकि इस दौरान धरती पर इंसानों की आबादी दोगुनी हो गई है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के अनुसार, हर 3 घंटे में 30 हजार जीव- जन्तुओं की प्रजाति खत्म हो रही है। 

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ट्रॉफी के लिए मारे गए 12 लाख जानवर 

एक ट्रॉफी के लिए जानवरों की जिंदगी से खेल रहे लोग अभी तक 12 लाख जानवरों को मार चुके हैं। आप जान कर हैरानी होगी की हर साल शेर, हाथी, लेपर्ड, गैंडा और केप बफैलो जैसे लगभग 70,000 जानवर को मार दिया जाता है। लेकिन अब जानवरों को तेजी से खत्म होते देख अफ्रीका के कई देशों में ट्रॉफी हंटिंग को लेकर कड़े नियम बना दिए गए हैं। 

हर दिन 100 हाथियों का कत्ल

रिपोर्ट्स की मानें तो हर दिन लगभग 100 हाथियों का मारा जाता है।  हाथी की कीमती लगती है बाजार में, उनके शरीर के हिस्सों और दांतों से मंहगे प्रोडक्ट्स बनकर बेचे जाते हैं।  डेटा के हिसाब से वर्तमान के समय में सिर्फ 4 लाख हाथी बचे हैं।  एक साल में जितने हाथी जन्म लेते हैं, उससे भी कहीं ज्यादा मरे जाते हैं।  वहीं भारत में भी हर साल कई सारे हाथी ट्रेन हादसों का शिकार हो जाते हैं। इसकी वजह है घटते जंगल, जिसके चलते वो शहर की तरफ आने को मजबूर हो जाते हैं।  पिछले 1 दशक में लगभग 62 फीसदी हाथी खत्म हो चुके हैं।

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रोजाना 15 करोड़ जानवर बनाते हैं हमारा खाना

इंसान ना सिर्फ जानवरों को अपने साधन के लिए इस्तेमाल कर रहा है बल्कि उससे अपना  पेट भी भर रहा है। रिपोर्ट्स के हिसाब से हर दिन लगभग 15 करोड़ को मारकर उसके मांस से लोग अपना पेट भर रहे हैं। इससे भी हर रोज जानवरों की संख्या तेजी से कम हो रही है।

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बाघ की आबादी में 97 % तक गिरावट

पुराने समय से राजा- महाराजा बाघों का शिकार करते आए हैं, इसे एक रॉयल Hobby के तौर पर देखा जाता था, जिसके चलते लगभग 100 सालों में बाघ की संख्या में 97% तक गिरवाट आ गई है। 1947 से बंगाल टाइगर्स की आबादी 40,000 से घटकर सिर्फ 3200 ही रह गई है।  हालांकि WWF के अनुसार संरक्षण के कई कार्यक्रम के चलते अब बाघों की आबादी में सुधार हुआ है और आबादी बढ़कर 3,890 तक हो गई है।  वहीं भारत में जंगली भैंसों की आबादी भी 3000 से 4000 के बीच ही रह गई है। वो असितत्व खत्म होने के कगार पर है। 

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पुराना प्राकृतिक माहौल लाने में लग जाएंगे 50 से 70 लाख साल

वैज्ञानिकों का मानना है कि इन्सेक्ट वर्ल्ड में सिर्फ चींटी की ही बात की जाए तो इस समय धरती में 10 हजार ट्रिलियन चींटी दुनियाभर में है। कुछ वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इन्सेक्ट्स की संख्या अकेले 10 क्विटिलियन  है जबकि धरती पर मौजूद जानवरों की संख्या 20 क्विटिलियन हैं।

इंसान बिना किसी परवाह के लगातार अपने आराम के लिए हर तरह के जीव- जन्तुओं को खासा नुकसान पहुंचा रहा है और लाखों की प्रजाति हमेशा के लिए विलुप्त हो गई और बचे हुए जानवरों पर भी लगातार संकट मंडरा रहा है। हाल इतना ज्यादा बुरा हो गया है कि जानवरों के लिए पुराने जैसी प्राकृतिक दुनिया बनने में 50 से 70 लाख साल लग जाएंगे।

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