नारी डेस्क: मां की ममता, मेहनत और संघर्ष का फल तब सबसे मीठा लगता है जब उसकी संतान उसकी उम्मीदों को हकीकत में बदल देती है। पी.जी.आई. चंडीगढ़ के माइक्रोबायोलॉजी विभाग में कार्यरत तकनीकी सहायक सुनीता गुप्ता के लिए यह मदर्स डे बेहद खास है। उनकी दोनों बेटियां—डॉ. सानिया गुप्ता और डॉ. सान्वी गुप्ता—अब डॉक्टर बन चुकी हैं और मां का अधूरा सपना पूरा कर रही हैं।
मां का सपना बेटियों ने किया पूरा
सुनीता गुप्ता खुद डॉक्टर बनना चाहती थीं, लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें वह मौका नहीं दिया। उन्होंने साल 1994-95 में पी.जी.आई. से बायोकैमिस्ट्री में एम.एससी. किया और 1996 से वहीं काम कर रही हैं। वे बताती हैं, "मैंने हमेशा चाहा था कि मेरी बेटियां इंसानियत की सेवा करें, और आज वे वही कर रही हैं। मेरी मेहनत सफल हो गई।"
किचन बना क्लासरूम, टीवी से दूरी
सुनीता का संघर्ष आसान नहीं था। पी.जी.आई. में दिनभर काम करने के बाद जब वे घर लौटतीं, तो किचन में खाना बनाते-बनाते ही बेटियों को पढ़ाती थीं। उन्होंने किचन में ही एक टेबल रखी थी ताकि बेटियां वहां बैठकर पढ़ सकें। उन्होंने कभी बेटियों को ट्यूशन नहीं दिलाया। पढ़ाई के लिए टीवी और दूसरी चीजों से दूरी बना ली गई थी।
बड़ी बेटी डॉ. सानिया: भारत की पहली पीडियाट्रिक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट
डॉ. सानिया गुप्ता ने जी.एम.सी.एच.-32 से एम.बी.बी.एस. किया, जहां वे गोल्ड मेडलिस्ट रहीं। इसके बाद उन्होंने पी.जी.आई. से पीडियाट्रिक्स में एम.डी. और फिर डी.एम. किया। वे भारत की पहली पीडियाट्रिक एंडोक्रिनोलॉजिस्ट बनीं। मां सुनीता गर्व से कहती हैं, "सानिया न सिर्फ एक शानदार डॉक्टर है, बल्कि बहुत दयालु इंसान भी है। वह बच्चों के इलाज के साथ-साथ उनके लिए खाने का सामान भी खुद खरीद कर लाती थी।"
छोटी बेटी डॉ. सान्वी: बड़ी उम्मीद
डॉ. सान्वी गुप्ता ने हाल ही में जी.एम.सी.एच.-32 से एम.बी.बी.एस. पूरा किया है और अब हायर स्टडीज़ की तैयारी कर रही हैं। मां बताती हैं कि सान्वी भी अपनी बहन की तरह मेहनती और समाज सेवा के लिए समर्पित है।

बेटियों को दी सच्ची सीख
सुनीता ने बेटियों को हमेशा यह मंत्र दिया- "मेहनत करो, ईमानदारी से काम करो और इंसानियत को कभी मत भूलो।" उन्होंने बेटियों से कहा कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता और मेहनत से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।
मदर्स डे का सबसे बड़ा तोहफा
जब दोनों बेटियों ने डॉक्टर की शपथ ली और डॉक्टर की ड्रेस में सुनीता के सामने आईं, तो मां की आंखें भर आईं। उन्होंने कहा, "मुझे यकीन हो गया कि मेरी मेहनत रंग लाई है। मेरी बेटियां सिर्फ डॉक्टर नहीं बनीं, वे इंसानियत की सेवा करने वाली डॉक्टर बनीं। यही मेरे लिए असली मदर्स डे का मतलब है।"
सपना अधूरा था, पर बेटियों ने पूरा कर दिखाया
सुनीता भले ही खुद डॉक्टर नहीं बन सकीं, लेकिन उनकी परवरिश और संघर्ष ने दो बेहतरीन डॉक्टर तैयार किए, जो समाज की सेवा कर रही हैं। इस मदर्स डे पर सुनीता गुप्ता के लिए इससे बड़ी कोई खुशी नहीं हो सकती कि उनकी बेटियों ने उनके अधूरे सपने को सच कर दिखाया।