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क्या आप जानते हैं किसकी पुत्री थी वैष्णों माता? जानें किसने बनवाया था माता वैष्णो देवी मंदिर

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 03 Oct, 2024 05:35 PM
क्या आप जानते हैं किसकी पुत्री थी वैष्णों माता? जानें किसने बनवाया था माता वैष्णो देवी मंदिर

नारी डेस्क: नवरात्रि का नौ दिवसीय त्योहार धार्मिक उत्साह के साथ शुरू हो गया है। ऐसे में देश के सभी मंदिरों में माता के भक्तों की भीड़ देखने को मिल रही है। जम्मू और कश्मीर के रियासी जिले की त्रिकुटा पहाड़ियों में माता वैष्णोदेवी के गुफा मंदिर में रोजाना लाखोंं तीर्थयात्री पहुंच रहे हैं। आज हम आपको माता वैष्णो देवी से जुड़ी कथा और इस मंदिर के इतिहास के बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं। 

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माता वैष्णो देवी का जन्म

कहा जाता है कि सतयुग में धरती पर धर्म और अच्छाई को पुनः स्थापित करने और बुराई का नाश करने के लिए देवताओं ने माता से प्रार्थना की थी। देवताओं की प्रार्थना पर महाशक्ति, यानी देवी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती ने संयुक्त रूप से एक कन्या के रूप में अवतार लिया। यह कन्या त्रिकुटा पर्वत पर प्रकट हुई और उनका नाम वैष्णवी रखा गया।


रतनाकर की पुत्री

एक अन्य कथा के अनुसार, माता वैष्णो देवी का जन्म एक धर्मपरायण व्यक्ति रतनाकर के घर हुआ था, जो एक साधारण किसान थे। रतनाकर और उनकी पत्नी ने लंबे समय तक संतान सुख की इच्छा के लिए देवी की उपासना की थी। उनकी प्रार्थना से प्रसन्न होकर माता ने स्वयं उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिया। रतनाकर ने अपनी पुत्री का नाम त्रिकुटा रखा, लेकिन वह बचपन से ही "वैष्णवी" के रूप में प्रसिद्ध हो गईं। वैष्णवी ने बचपन से ही ध्यान और तपस्या में गहरी रुचि दिखाई, और उनका उद्देश्य जीवन में केवल भक्ति और साधना करना था। बड़े होकर, उन्होंने भगवान विष्णु की भक्ति के मार्ग पर चलते हुए संसार से बुराइयों को दूर करने का संकल्प लिया।

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भगवान विष्णु की अवतार

कुछ मान्यताओं के अनुसार, वैष्णो देवी को भगवान विष्णु के सातवें अवतार राम का भी आशीर्वाद प्राप्त था। जब राम ने धरती पर अवतार लिया था, तब वैष्णो देवी ने उन्हें समर्पित होकर जीवन बिताने की इच्छा व्यक्त की थी। भगवान राम ने उन्हें आशीर्वाद दिया और कहा कि कलियुग में वह वैष्णो देवी के रूप में पूजी जाएंगी और उनके भक्त उनकी पूजा करेंगे।

 

त्रिकुटा पर्वत से जुड़ी कथा

कहा जाता है कि माता वैष्णो देवी की कथा एक ब्राह्मण श्रीधर से जुड़ी है, जो कटरा के पास के गांव में रहते थे। एक दिन माता वैष्णो देवी श्रीधर के सपने में आईं और उन्हें अपने गांव में भंडारे का आयोजन करने के लिए कहा। श्रीधर ने सभी गांववालों और भक्तों को निमंत्रण दिया, लेकिन एक असुर भक्त भैरवनाथ भी वहां आ गया।  भैरवनाथ ने भंडारे में मांस और शराब की मांग की, जो कि वैष्णो देवी की आराधना के नियमों के विरुद्ध था। माता वैष्णो देवी ने भैरवनाथ को समझाने की कोशिश की, लेकिन जब वह नहीं माना, तो माता ने त्रिकुटा पर्वत की ओर जाने का निश्चय किया। 

 

भैरवनाथ को मिला वरदान

भैरवनाथ ने माता का पीछा किया। माता वैष्णो देवी ने त्रिकुटा पर्वत की एक गुफा में शरण ली। गुफा में रहने के दौरान माता ने हनुमान जी को बुलाकर कहा कि वह उनकी रक्षा करें। इसके बाद माता ने भैरवनाथ का अंत किया। कहा जाता है कि भैरवनाथ का सिर त्रिकुटा पर्वत के उस स्थान पर गिरा, जहां आज भैरवनाथ मंदिर है।  मृत्यु के समय भैरवनाथ ने माता से क्षमा मांगी। माता ने उसे क्षमा कर दिया और वरदान दिया कि जो भी श्रद्धालु वैष्णो देवी के दर्शन के लिए आएगा, वह भैरवनाथ के दर्शन भी जरूर करेगा, तभी उसकी यात्रा पूर्ण मानी जाएगी।

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माता वैष्णो देवी की यात्रा का प्रारंभ

वैष्णो देवी ने स्वप्न में श्रीधर कोत्रिकुटा पर्वत पर गुफा में उनकी पिंडी खोजने का आदेश दिया। श्रीधर ने माता के आदेश का पालन करते हुए त्रिकुटा पर्वत पर यात्रा की और कठिन परिश्रम के बाद माता की गुफा का पता लगाया। उन्होंने गुफा में माता की पिंडी की स्थापना की और उनकी पूजा-अर्चना शुरू कर दी। श्रद्धालुओं के लिए माता वैष्णो देवी की यात्रा प्राचीन काल से ही शुरू हो चुकी थी, लेकिन इसका उल्लेख  महाभारत के समय से भी जुड़ा है। माना जाता है कि जब अर्जुन  को कुरुक्षेत्र युद्ध में विजय प्राप्त करनी थी, तो उन्होंने माता की आराधना की थी। माता ने अर्जुन को आशीर्वाद दिया और कहा कि जब भी उनके भक्त त्रिकुटा पर्वत की यात्रा करेंगे, उन्हें उनका आशीर्वाद मिलेगा।

 

वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड का कब हुआ गठन

 वैष्णो देवी यात्रा का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ता गया। 20वीं सदी में यह यात्रा अधिक प्रसिद्ध हो गई, जब त्रिकुटा पर्वत तक पहुंचने के लिए सुविधाएं और यात्री मार्ग तैयार किए गए। पहले लोग दुर्गम रास्तों से गुफा तक पहुंचते थे, लेकिन अब इसे सुविधाजनक बनाया गया है। 1986 में वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड  का गठन किया गया, जिससे तीर्थयात्रियों के लिए यात्रा सरल और सुरक्षित हो गई। इसके बाद माता वैष्णो देवी की यात्रा अत्यधिक लोकप्रिय हो गई और हर साल लाखों श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं।

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माता वैष्णो देवी यात्रा का महत्व

माता वैष्णो देवी की यात्रा को हिंदू धर्म में सबसे पवित्र तीर्थयात्राओं में से एक माना जाता है। यहां आने वाले श्रद्धालु माता से शक्ति, समृद्धि और सुख-शांति की कामना करते हैं। यह यात्रा भक्ति और विश्वास का प्रतीक है, जहां लोग माता के दिव्य दर्शन से खुद को धन्य मानते हैं। माता वैष्णो देवी की यात्रा कटरा से शुरू होती है, और लगभग 12-14 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद श्रद्धालु गुफा तक पहुंचते हैं, जहां माता के तीन पवित्र पिंडियों के रूप में दर्शन होते हैं। माता के दर्शन के लिए विशेष तौर पर नवरात्रि के समय बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। अब श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए हेलीकॉप्टर सेवा, घोड़े, पालकी, और बैटरी से चलने वाली गाड़ियों की व्यवस्था की गई है।
 

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