घरेलू हिंसा समाज और पारिवारिक ढांचे में गहराई से जड़ जमा चुकी है। अक्सर देखने को मिलता है कि शादी के बाद पति अपनी फ्रस्टेशन निकालने के लिए पत्नी पर हाथ उठा देता है। मगर, क्या सचमुच शादी के बाद उसे औरत को थप्पड़ मारने का हक मिल जाता है। नहीं... बस इतनी-सी बात है जो लोगों को समझानी है।
घरेलू हिंसा के सीन पर डिसक्लेमर क्यों नहीं?
आज सिरगेट से लेकर शराब तक, सेहत के लिए हानिकारक चीजों पर Disclaimer का साइन होता है या फिल्म के दौरान उसके नीचे लिखा जाता है कि शराब-सिगरेट सेहत के लिए हानिकारक है। मगर, जब किसी फिल्म या टीवी शो में घरेलू हिंसा के सीन दिखाए जाते हैं तो उसपर Disclaimer क्यों नहीं लिखा जाता है। अगर फिल्मों में सिगरेट और शराब के लिए डिसक्लेमर होता है तो महिलाओं पर हो रही हिंसा पर क्यों नहीं हो सकता...? क्या किसी औरत पर हाथ उठाना क्या सही है?
पढ़ी-लिखी महिलाएं ज्यादा शिकार
आज हर एक औरत पुरूष के बराबर कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं लेकिन बावजूद इसके आंकड़ों के मुताबिक, घरेलू हिंसा के मामले कम होने की बजाए बढ़ रहे हैं। एक शोध के मुताबिक, भारत में करीब 5 करोड़ महिलाएं रोज घरेलू हिंसा की शिकार हो रही हैं। हैरानी करने वाली बात तो यह है कि इनमें ज्यादातर संख्या शहरी और शिक्षित महिलाओं की हैं।
अपने हक के लिए आवाज क्यों नहीं उठाती महिलाएं?
महिलाएं अपने हक के लिए आवाज उठाने से ही डरती हैं लेकिन क्यों? शोध कहता है कि सिर्फ 1% महिलाएं ही अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठाती है। अगर औरत सास-ससुर और पति के खिलाफ आवाज उठाती भी है तो उसे हिंसा के जरिए चुप करवा दिया जाता है। वहीं, इंसाफ के लिए कोर्ट तक जाने वाली आधी से ज्यादा महिलाओं को यह कहकर चुप करवा दिया है कि समाज क्या कहेगा? अपने भविष्य के बारे में सोच? तलाक लेने के बाद कहां जाएगी , कैसे गुजारा करेगा?
औरत ही क्यों रहे चुप?
समय चाहे बदल गया हो लेकिन आज भी हमेशा औरत को ही चुप रहने के लिए कहा जाता है लेकिन क्या यह सही है? एक औरत अपना सारा जीवन परिवार को समर्पित कर देती है, और उसके बदले वह सिर्फ अपने लिए सम्मान चाहती हैं। पत्नी ही नहीं, पति का भी यह कर्तव्य है कि वह उसकी भावनाओं को समझें। एक पत्नि अपने पति की इज्जत करती है तो एक पति का भी फर्ज बनता है वह अपनी पत्नी को भी उतनी ही इज्जत और सम्मान दे। समय चाहे बदल गया हो पर फिर भी हमेशा औरत को ही चुप रहने को कहा जाता है, आपके मायने से यह कितना सही है।
माता-पिता बनाएं बच्चियों को आत्मनिर्भर
मां-बाप भी अपनी बच्चियों को सब चुपचाप सहन करने की बजाए उन्हें आत्म निर्भर बनाए ताकि वह अपने पैरों पर खड़ी हो सके। वहीं घरेलू हिंसा को लेकर एक महिला दूसरी महिला की स्पोर्ट में खड़ी होगी तो पुरुष ऐसे कदम उठाने से पहले जरूर सोचेंगे फिर वह हिंसा घरेलू ही क्यों ना हो।