नशे और शराब की लत ना सिर्फ घर परिवार बर्बाद कर देती हैं बल्कि यह सेहत के लिए भी किसी धीमे जहर से कम नहीं है। बावजूद इसे शहरी व ग्रामीण युवा पीढ़ी नशे के घेरे में हैं। नशा रोकने व जागरुकता फैलाने के लिए कई प्रोग्राम भी चलाए जा रहे हैं लेकिन किसी से कोई खास असर होता नजर नहीं आ रहा। ऐसे में हरे रंग की साड़ी पहने और टोलियों में चलती "ग्रीन ग्रुप" की महिलाओं ने यह जिम्मेदारी अपने कंधे पर उठा ली है।
गांव को नशामुक्त कर रही ग्रीन ग्रुप
जो महिलाएं कुछ महीने पहले तक खुद बुराई झेलकर भी सब सहती रहती थी वो आज गांव-गांव जाकर उन्हें नशे से मुक्ति दिलाने के प्रयास में जुटी हैं। पुलिस ने इन महिलाओं को 'पुलिस मित्र' का दर्जा दिया है, जो अबतक कई गांव में शराब के उत्पाद, जुए के अड्डे बंद करवा चुकी हैं। उन्होंने गांव व टीचरों को इस कद्र मजबूर कर दिया अब कई गांव में अस्पताल में हेल्थ वर्कर्स की उपस्थिति होने लगी है।
गांव में करवाया बिजली का प्रबंध
जिस गांव में भी जुआ खेला जाता है या पुरुष शराब पीकर घरेलू हिंसा करते हैं ये महिलाएं वहां पहुंच जाती हैं। पहले ये महिलाएं गांव के लोगों को प्यार से समझाती हैं और ना वालों पर सख्त एक्शन भी लेती हैं। यहीं नहीं, इन्होंने बिजली विभाग के DM से बात करके गांव में बिजली भी पहुंचाई। हफ्ते में एक बार यह महिलाएं अपना ड्रैस पहनकर गांव का दौरा करती हैं और स्थिति की जांच करती हैं।
1200 महिलाएं कर रहीं है 3 ग्रुप में काम
ग्रीन गैंग के 5 ग्रुप 150 गांवों में काम कर रहा है, जिसके साथ करीब 1200 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। ग्रीन ग्रुप एक चेंजमेकर की भूमिका निभा रहा है। लॉकडाउन के दौरान इन महिलाओं ने मास्क बनाकर बांटे। साथ ही लोगों को सोशल डिस्टेंसिंग अवेयरनेस के बारे में जागरूक किया। इस टीम ने जरूरतमंदों तक खाना भी पहुंचाया।इसके अलावा जो बच्चे आर्थिक तंगी या साइकिल के अभाव में पढ़ाई से वंचित हो रहे थे उनमें साइकिल सहित दूसरी चीजें बांटी गई।
कैसे हुए ग्रीन गैंग की शुरुआत?
रवि मिश्रा, दिव्यांशू उपाध्याय और उनकी टीम ने साल 2015 में समाज के लिए कुछ करने का निर्णय लिया। पहले उन्होंने गरीब बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया लेकिन सर्वे करने बाद उन्हें आभास हुआ कि गांवों में नशाखोरी, अशिक्षा और महिलाओं का उत्पीड़न के मामले ज्यादा है इसलिए उन्होंने इस मुद्दे पर काम करना शुरू किया।
जब उन्होंने वाराणसी, खुशियारी गांव का सर्वे शुरू किए तो वहां पुरुष शराब और जुए में डूबे हुए थे जबकि महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा की घटनाएं बढ़ रही थीं और बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। ऐसे में उन्होंने गांव को जागरुक करने का फैसला किया और तभी एक बुजुर्ग महिला ने उनकी टीम से बातचीत की। उन्होंने बताया कि नशे में उसके बेटे ने अपनी पत्नी को जला दिया। उन्होंने कहा, कि कुछ ऐसा किया जाए जिससे पुरुषों की शराब की लत छूट जाए। तब उन्होंने गांव की औरतों से बात करके उन्हें लक्ष्मबाई और ज्योतिबा फुले जैसी महिलाओं के बारे में बताया। इससे उनमें जागरुकता आई और वो एकजुट होने लगीं। करीब 6 महीने बाद एक टीम तैयार हो गई जिसे ग्रीम गैंग नाम दिया गया।
क्यों पहनती हैं हरे रंग का पहरावा?
दिव्यांशू ने महिलाओं को हरी साड़ी ड्रेस कोड देने का फैसला किया क्योंकि इसके पीछे उनका मकसद गांव की हरियाली और खुशहाली से था। फिर क्या उन्होंने गांव की महिलाओं को हरी साड़ियां बांटकर 25 महिलाओं की एत टीम बना दी।
मदद के लिए आगे आए कई एक्टर
महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के साथ घरेलू हिसा रोकने, शराब, जुआ, इत्यादि नशाखोरी से गांव को मुक्त कराना ग्रीन ग्रुप का मुख्य उद्देश्य हैं। दिव्यांशू बताते हैं कि उन्होंने बॉलीवुड एक्टर सोनू सूद से अपील की जिसके बाद उन्होंने 50 साइकिल भेजकर मदद की। इसके अलावा जावेद जाफरी और पंकज त्रिपाठी जैसे एक्टर भी लोगों की मदद के लिए आगे आए।