सर्च इंजन गूगल अपने डूडल के जरिए किसी न किसी को सम्मान देता रहता है। आज गूगल ने भारत की बॉयोकेमिस्ट डॉ कमला सोहोनी के 112वें जन्मदिन पर एक शानदार सा डूडल बनाकर उन्हें सम्मान दिया है। कमला सोहोनी न सिर्फ भारत की पहली महिला पीएचडी थी बल्कि एसटीईएम क्षेत्र में विद्वान लैंगिक पूर्वाग्रह को दूर करने और अपने सपनों को आगे बढ़ाने के लिए भारतीय महिलाओं के लिए एक प्रेरणा भी हैं। डॉ सोहोनी ने यह उपलब्धि उस समय हासिल की जब भारतीय महिलाओं को वैज्ञानिक विषयों में बिल्कुल भी महत्व नहीं दिया जाता था। ऐसे में वह आज इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करके कई महिलाओं के लिए एक मिसाल बन गई हैं।
मध्य प्रदेश के इंदौर में जन्मी थी कमला सोहोनी
कमला सोहोनी का जन्म 18 जून 1911 में मध्य प्रदेश के इंदौर जिले में हुआ था। उनके पेरेंट्स कैमिस्ट थे। ऐसे में वह अपने चाचा और पिता के नक्शेकदम पर चली और बॉम्बे के विश्वविद्यालय में रसायन विज्ञान और भौतिकी की पढ़ाई की। इसके बाद वह 1933 में क्लॉस की टॉपर बनी और ग्रेजुएशन में डिग्री हासिल की । कमला सोहोनी भारतीय विज्ञान संस्थान में शामिल होने वाली पहली महिला थी । इस दौरान उन्हें कई सारी परेशानियों का सामना करना पड़ा। क्योंकि भारतीय विज्ञान संस्थान के निदेशक ने महिलाओं की क्षमता पर संदेह किया। परंतु कमला ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी क्षमता साबित की और इसके बाद उन्हें अपनी रिसर्च जारी रखने की अनुमति मिल गई। उन्होंने निदेशक को अपने काम से इतना प्रभावित किया कि आईआईएससी ने अपने प्रोग्राम में महिलाओं को भी लेना शुरु कर दिया। इसके बाद अगले कुछ सालों में कमला ने फलियों में पाए जाने वाले अलग-अलग प्रोटीनों की स्टडी की और यह निष्कर्ष निकाला कि वे बच्चों में पोषण बढ़ाते हैं। 1936 में उन्होंने इस सब्जेक्ट पर एक थीसिस प्रकाशित की और अपनी मास्टर डिग्री हासिल की।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सटी में हासिल की रिसर्च स्कॉलरशिप
इसके बाद 1937 में डॉ सोहोनी ने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में एक रिसर्च स्कॉलरशिप हासिल की। उन्होंने रिसर्च किया और पाया कि ऊर्जा के उत्पादन के लिए जरुरी एंजाइम साइटोक्रोम सी सारे पौधों की कोशिकाओं में मौजूद था। मात्र 14 महीनों में ही कमला ने इस सब्जेक्ट पर अपनी पूरी थीसिस पूरी की और पीएच.डी. कर ली। इसके बाद वह भारत लौटी और उन्होंने विशिष्ट खाद्य पदार्थों के फायदों पर भी अपनी स्टडी जारी रखी और नीरा नामक पाम अमृत से बने एक किफायती आहार पूरक के विकास में अपना योगदान दिया। यह पौष्टिक पेय विटामिन-सी का स्त्रोत था जो कुपोषित बच्चों और गर्भवती स्त्रियों के स्वास्थ्य को सुधारने में बहुत ही अच्छा साबित हुआ।
राष्ट्रपति पुरस्कार से हो चुकी थी सम्मानित
इसके बाद नीरा पर उन्हें अपने काम के लिए राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए सम्मानित किया गया था जो ताड़ के अमृत से बना एक किफायती आहार पूरक है। इसका उद्देश्य कुपोषण से मुकाबला करना था। इसके अलावा वह बॉम्बे में रॉयल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की पहली महिला निर्देशक बनी।
गूगल ने डूडल के जरिए दिया सम्मान
गूगल ने अपने डूडल के जरिए लिखा कि बाधाओं को तोड़कर और संदेह करने वालों को गलत साबित करके डॉ सोहोनी ने न सिर्फ जैव रसायन के अपने क्षेत्र में योगदान दिया बल्कि भविष्य की भारतीय महिलाओं के लिए लैंगिक पूर्वाग्रह को दूर करने और अपने सपनों को आगे बढ़ाने का रास्ता भी मजबूत किया।