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प्रेम से परे पैसा, एक दूसरे पर विश्वाश... सिया-राम से सीख लेकर पति-पत्नी के रिश्ते को बनाएं अटूट

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 29 Apr, 2023 01:03 PM
प्रेम से परे पैसा, एक दूसरे पर विश्वाश... सिया-राम से सीख लेकर पति-पत्नी के रिश्ते को बनाएं अटूट

माता सीता के जन्‍मोत्‍सव के रूप में आज सीता नवमी मनाई जा रही है। मान्‍यता है कि वैशाख मास के शुक्‍ल पक्ष की नवमी को  राजा जनक के घर में माता सीता ने जन्‍म लिया था। इस दिन माता सीता की पूजा प्रभु श्री राम के साथ की जाती है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान के साथ पूजने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। पौराणिक कथाओं में सीता माता के जरिये ये संदेश दिया गया है कि स्त्री की प्रतिष्ठा सारे समाज की प्रतिष्ठा है।

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वाल्मीकि की रामायण में इस बात का जिक्र भी है कि सीता कई मुद्दों पर राम की सलाहकार भी थी। वाल्मीकी रामायण में सीता कई मौकों पर वनवास के दौरान राम को हिंसा से रोकती भी हैं। कहा जाता है कि माता सीता ने  पुरुषवादी समाज की रीढ़ को मजबूत बनाए रखने के लिए हर दुख सहे थे। अगर आप भी राम सीता की तरह एक आदर्श पति पत्नी की तरह रहना चाहते हैं तो उनसे कुछ सीख लेनी चाहिए। 


सुख- दुख में दें एक दूसरे का साथ

तुलसीदास की रामचरितमानस में बताया गया है कि जब राम को वनवास दिया जाता है तो सीता भी उनके साथ जाने को तैयार हो जाती हैं।  राम बहुत समझाने की कोशिश करते हैं, लेकिन सीता अपने फैसले पर अटल रहती हैं और अपने तर्कों से अपनी बात को सही साबित करती हैं। इससे हमें सीखने को मिलता है कि सिर्फ सुख ही नहीं दुख में भी अपने जीवनसाथी का साथ कभी नहीं छोड़ना चाहिए। 

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आनंद से गुजारें जिंदगी

आजकल पति-पत्नी के रिश्ते में अधिक तनाव रहने लगा है और इसके कई अलग-अलग कारण हैं। ऐसे में हमें श्री राम और सीता के दांपत्य जीवन से यह सीख लेनी चाहिए कि  समय, काल और स्थिति कोई भी हो शादी-शुदा जिंदगी आनंद से गुजरी जा सकती हैं। 


प्रेम से परे हैं पैसे

प्रेम पद और पैसों से परे हैं, यह बात हमें सीता जी से सिखनी चाहिए। सीता माता का विवाह जब श्री राम से हुआ तब वह राजा नहीं थे, फिर भी माता सीता ने उन्हें अपने पति के रूप में स्वीकार किया। वहीं जब राम को वनवास हुआ और उन्हें सारा राजपाट छोड़ना था, तब भी माता सीता ने पति के पद और पैसों के बारे में तनिक न सोचा और सारी सुख सुविधाएं छोड़कर श्रीराम के साथ वनवास चली आईं।

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पति-पत्नी एक समान

पौराणिक कथाओं के अनुसार  श्रीराम ने जी से कहा था कि वैवाहिक जीवन में पति-पत्नी दोनों एक समान होते हैं।   पति को ऐसा नहीं सोचना चाहिए कि मैं पुरुष हूं, इसलिए पत्नी के काम नहीं करूंगा। जब पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे को महत्व देंगे, एक समान मानेंगे तो आपसी प्रेम बना रहेगा। यह सीख पर अगर सभी पुरुष चलने लगेंगे तो कभी कोई घर नहीं टूटेगा। 


पतिव्रता का धर्म

माता सीता ने जीवन भर पतिव्रता होने का धर्म निभाया। रावण द्वारा हरण के बाद भी माता सीता ने अपनी इज्जत पर आंच न आने दी और अंत तक रावण के सामने न झुकीं।  दोनों के बीच दूरियों के बाद भी माता सीता और श्रीराम का एक दूसरे के लिए प्रेम और वैवाहिक धर्म जस का तस बना रहा।

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पत्नी की सुरक्षा सबसे पहले 

रावण द्वारा माता सीता के हरण के उपरांत जितनी विचलित माता सीता थीं, उतने ही व्याकुल श्री राम भी थे। अपनी पत्नी के सम्मान के लिए उन्होंने युद्ध कर सभी राक्षसों का विनाश किया। वह चाहते तो हनुमान जी के जरिए  माता सीता को वापस ला सकते थे, लेकिन वह एक पति के रूप में अपनी पत्नी को बचाने के लिए प्रतिबद्ध थे।


 

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