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त्रिदेव के गुस्से से हुआ था मां चंद्रघंटा का जन्म, जानिए पौराणिक कथा व पूजा विधि

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 08 Oct, 2021 04:42 PM
त्रिदेव के गुस्से से हुआ था मां चंद्रघंटा का जन्म, जानिए पौराणिक कथा व पूजा विधि

शारदीय नवरात्रि पर्व के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा की अराधना की जाती है, जो मां दुर्गा की तृतीय शक्ति हैं। इनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों की शक्तियां समाहित हैं। माता के मस्तिष्क पर घंटे के आकार अर्द्ध चंद्र सुशोभित होने के कारण उनका नाम 'चंद्रघंटा' पड़ा। मान्यता है कि मां के घंटे की ध्वनि से सारी नकारात्मक शक्तियां दूर भाग जाती हैं। इस दिन भक्तों का मन 'मणिपूर' चक्र में प्रविष्ट होता है और उनके सभी समस्त पाप और बाधाएं भी खत्म हो जाती है।

मां चंद्रघंटा का स्वरूप

माता चंद्रघंटा का रंग स्वर्ण के समान चमकीला, 3 नैत्र और 10 हाथ हैं। अग्नि जैसे वर्ण वाली माता  चंद्रघंटा ज्ञान से जगमगाने वाली दीप्तिमान देवी हैं। सिंह की सवारी करने वाली मां चंद्रघंटा की 10 भुजाओं में कर-कमल गदा, बाण, धनुष, त्रिशूल, खड्ग, खप्पर, चक्र आदि शस्त्र सुशोभित रहते हैं।

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मां चंद्रघंटा की जन्म कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, राक्षस महिषासुर ने अपनी शक्तियों के घमंड में देलोक पर आक्रमण कर दिया। तब महिषासुर और देवताओं के हीच घमासान युद्ध हुआ। जब देवता हारने लगे तो वह त्रिदेव के पास मदद के लिए पहुंचे। उनकी कहानी सुन त्रिदेव को गुस्सा आ गया, जिससे मां चंद्रघंटा का जन्म हुआ। भगवान शंकर ने माता को अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने चक्र, देवराज इंद्र ने घंटा, सूर्य ने तेज तलवार और सवारी के लिए सिंह प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवी देवताओं ने भी माता को अस्त्र दिए, जिसके बाद उन्होंने राक्षस का वध किया।

देवी पुराण के अनुसार, जब भगवान शिव राजा हिमवान के महल में पार्वती से शादी करने पहुंचे तो वे बालों में कई सांप, भूत, ऋषि, भूत, भूत, अघोरी और तपस्वियों की एक अजीब शादी के जुलूस के साथ एक भयानक रूप में आए। यह देख पार्वती की मां मैना देवी बेहोश हो गईं। तब पार्वती ने देवी चंद्रघंटा का रूप धारण किया  और दोनों ने शादी हो गई।

मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा विधि

स्नान करके गंगाजल या गोमूत्र से माता के स्थान को शुद्ध करें। इसके बाद लोटे में जल भरकर उसके ऊपर नारियल रखें। वैदिक व सप्तशती मंत्रों का जाप करने के बाद पूजन का संकल्प लें। उसके बाद मां को वस्त्र-आभूषण, सौभाग्य सूत्र, हल्दी,-चंदन, रोली, सिंदूर, दुर्वा, बिल्वपत्र, फल-फूल, धूप-दीप, नैवेद्य, पान, अर्पित करके आरती करें।

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कैसे करें देवी मां को प्रसन्न

. देवी मां को भूरे या ग्रे रंग की कोई चीज अर्पित करें और इस दिन इसी रंग के कपड़े पहनें। मां चंद्रघंटा को अपना वाहन सिंहअतिप्रिय है और इसलिए इस दिन गोल्डन रंग के कपड़े पहनना भी शुभ होता है।
. देवी के इस स्वरूप को दूध, मिठाई और खीर का भोग लगाया जाता है। माता चंद्रघंटा को शहद का भोग भी लगाया जाता है।
. मां चंद्रघंटा का बीज मंत्र 'ऐं श्रीं शक्तयै नम:' का जाप करना भी शुभ माना जाता है। इसके अलावा देवी के महामंत्र ‘या देवी सर्वभूतेषु मां चंद्रघंटा रूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नसस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:‘ का जाप करें।

चंद्रघंटा स्वरूप ध्यान मंत्र

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।
सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥
मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।
खंग, गदा, त्रिशूल,चापशर,पदम कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर हार केयूर,किंकिणि, रत्नकुण्डल मण्डिताम॥
प्रफुल्ल वंदना बिबाधारा कांत कपोलां तुगं कुचाम्।
कमनीयां लावाण्यां क्षीणकटि नितम्बनीम्॥

चंद्रघंटा स्वरूप का स्तोत्र पाठ

आपदुध्दारिणी त्वंहि आद्या शक्तिः शुभपराम्।
अणिमादि सिध्दिदात्री चंद्रघटा प्रणमाभ्यम्॥
चन्द्रमुखी इष्ट दात्री इष्टं मन्त्र स्वरूपणीम्।
धनदात्री, आनन्ददात्री चन्द्रघंटे प्रणमाभ्यहम्॥
नानारूपधारिणी इच्छानयी ऐश्वर्यदायनीम्।
सौभाग्यारोग्यदायिनी चंद्रघंटप्रणमाभ्यहम्॥

माता चंद्रघंटा उपासना मंत्र

पिण्डजप्रवरारूढा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।
प्रसादं तनुते मह्यं चंद्रघण्टेति विश्रुता।।

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