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बाबा सोढल मेलाः सिद्ध बाबा की सुनिए कथा जहां मन्नत पूरी होने पर बैंड-बाजे के साथ जाते हैं भक्त

  • Edited By Priya Yadav,
  • Updated: 17 Sep, 2024 04:25 PM
बाबा सोढल मेलाः सिद्ध बाबा की सुनिए कथा जहां मन्नत पूरी होने पर बैंड-बाजे के साथ जाते हैं भक्त

नारी डेस्क: श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मंदिर और तालाब लगभग 200 वर्ष पुराना है। पहले इस क्षेत्र में घना जंगल फैला हुआ था। मंदिर की दीवार में बाबा का श्री रूप स्थापित है, जिसने इस स्थल को धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण बना दिया है। यहाँ भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। इस मंदिर को सिद्ध स्थान के रूप में जाना जाता है। इसके चारों ओर पक्की सीढ़ियां और मध्य में शेष नाग का स्वरूप स्थित है।

मेला और भेंट

भाद्रपद की अनन्त चतुर्दशी को यहा एक विशेष मेला लगता है, जिसे चड्ढा बिरादरी के जठेरे बाबा सोढल के रूप में भी जाना जाता है। इस अवसर पर सभी धर्म और समुदाय के लोग यहा आकर नतमस्तक होते हैं। अपनी मन्नत पूरी होने पर लोग बैंड-बाजों के साथ बाबा जी के दरबार में आते हैं। वे बाबा जी को भेंट अर्पित करते हैं, जिसमें 14 रोट शामिल होती हैं। इनमें से 7 रोट प्रसाद के रूप में वापस मिल जाती हैं, जिन्हें घर की बेटी तो खा सकती है, लेकिन पति और बच्चों को नहीं। वर्तमान में यह मंदिर सोढल रोड पर स्थित है।

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श्री सिद्ध बाबा सोढल जी की कथा

प्राचीन काल में, जहां श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मंदिर स्थित है, वहा एक संत जी की कुटिया और एक तालाब था। यह तालाब अब सूख चुका है, लेकिन पहले यह पानी से भरा रहता था। संत जी भोले भंडारी के परम भक्त थे और लोग अपनी समस्याओं का समाधान मांगने उनके पास आते थे। चड्ढा परिवार की बहू, जो संत जी की भक्त थी, हमेशा उदास रहती थी। संत जी ने उसकी समस्या पूछी और कहा कि वह भोले भंडारी से प्रार्थना करेंगे। बहू ने बताया कि उसकी संतान नहीं है और संतानहीन स्त्री का जीवन दुःखदायक होता है। संत जी ने कहा कि वह भोले भंडारी से प्रार्थना करेंगे और यह निश्चित है कि उसकी गोद भर जाएगी। संत जी ने भोले भंडारी से प्रार्थना की कि चड्ढा परिवार की बहू को ऐसा पुत्र रत्न दो, जो संसार में आकर भक्ति व धर्म पर चलने का संदेश दे। भोले भंडारी ने नाग देवता को चड्ढा परिवार की बहू की कोख से जन्म लेने का आदेश दिया। नौ महीने के उपरांत चड्ढा बिरादरी में बाबा सोढल जी का जन्म हुआ। जब यह बालक चार साल का था तब एक दिन वह अपनी माता के साथ कपड़े धोने के लिए तालाब पर आया। वहां वह भूख से विचलित हो रहा था तथा मां से घर चल कर खाना बनाने को कहने लगा। मगर मां काम छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थी। तब बालक ने कुछ देर इंतजार करके तालाब में छलांग लगा दी तथा आंखों से ओझल हो गया। मां फफक-फफक कर रोने लगी, मां का रोना सुनकर बाबा सोढल नाग रूप में तालाब से बाहर आए तथा धर्म एवं भक्ति का संदेश दिया और कहा कि जो भी मुझे पूजेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। ऐसा कहकर नाग देवता के रूप में बाबा सोढल फिर तालाब में समा गए। बाबा के प्रति लोगों में अटूट श्रद्धा और विश्वास बन गया कालांतर में एक कच्ची दीवार में उनकी मूर्ति स्थापित की गई जिसको बाद में मंदिर का स्वरूप दे दिया गया।

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बाबा सोढल जी का जन्म

संत जी ने भोले भंडारी से प्रार्थना की कि चड्ढा परिवार की बहू को एक पुत्र रत्न दें जो धर्म और भक्ति का संदेश फैलाए। भोले भंडारी ने नाग देवता को आदेश दिया कि चड्ढा परिवार की बहू की कोख से जन्म लें। नौ महीने बाद, चड्ढा परिवार में बाबा सोढल जी का जन्म हुआ। 

 

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