आपने देखा होगा कि सभी मंदिरों में भगवान शिव के शिवलिंग स्वरुप की पूजा को ही ज्यादा महत्व दिया जाता है। वहीं, अन्य देवताओं के सिर्फ लिंग स्वरूप की पूजा अधिक नहीं की जाती। भगवान शिव के मूर्ति स्वरुप को भी लोग सिर्फ धूप-दीप से ही पूजते हैं। आज अपने इस आर्टिकल में हम आपको यही बताएंगे, कि भोलेनाथ के शिवलिंग स्वरुप को क्यों अधिक पूजते हैं लोग...
शिव पुराण में छिपा रहस्य
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव के लिंग स्वरूप के पूजा करने से संसार सागर पार हो सकता है। जो व्यक्ति श्रवण, कीर्तन और मनन तीनों साधनों में समर्ध ना हो उसे भोलेनाथ के शिवलिंग स्वरुप की पूजा करनी चाहिए।
साक्षात् ब्रह्म हैं शिव
शिवपुराण में वर्णन है कि एक भगवान शिव ही ब्रह्मरूप यानी निराकार हैं। रुपवान होने के कारण वह सकल भी है यानि वह सकल व निकल दोनों हैं। वहीं, शिवलिंग भोलेनाथ के निराकार स्वरुप का प्रतीक है। सकल और अकल रूप दोनों होने के कारण भगवान शिव के दोनों रूपों की पूजा की जाती है। अन्य देवता साक्षात् ब्रह्म नहीं हैं इसलिए उनके लिंग स्वरूप नहीं होते।
आदि और अंत हैं शिव
भगवान शिव आदि और अंत दोनों हैं। वह ही सृष्टि का प्रारंभ और अंत हैं। वही अनंतकाल से ब्रह्मांड में निराकार व साक्षात् ब्रह्म रूप में स्थित हैं। त्रिकालदर्शी भोलेनाथ को वर्तमान, भूत व भविष्य तीनों का ही ज्ञान है।