भले ही समय के साथ-साथ जमाना बदल चुका हो लेकिन आज भी कई जगहों पर बेटी और बेटे में फर्क किया जाता है। आज भी कई लोग ऐसे हैं, जिन्हें लगता है कि सिर्फ बेटे ही उनका वंश आगे बढ़ा सकते हैं। मगर, आखिर बेटी और बेटे में फर्क क्यों?
अक्सर देखा जाता है कि थोड़ा बड़ी होने पर बेटी के हाथ में गुड़िया पकड़ा दी जाती है। वहीं अगर लड़के बड़े होते हैं तो वो फ्रेंड्स के साथ लेट नाइट पार्टी करते हैं लेकिन उन्हें किसी तरह की कोई रोक-टोक नहीं होती। जबकि लड़कियों को देर रात तक बाहर घूमने नहीं दिया जाता। पर कहीं ना कहीं ऐसा करके मां-बाप अपनी बच्ची के सपनों व ख्वाहिशों को मार देते हैं।
जिस बेटे के पैदा होने पर इतने आडंबर रचे जाते वही बेटा बडा़ हो के सब भूल जाता। वहीं लड़की बड़ी होकर ना सिर्फ मायके बल्कि ससुराल की रौनक बन जाती। इतना ही नहीं, अपनी ख्वाहिशों व सपनों को भूलकर वह सबका खयाल रखतीं।
संस्कार देना अलग बात है लेकिन ख्वाहिशो और सपनों को मारना अलग बात है। जब परिस्थिति आती है तो लड़कियां सब करना जानती हैं। ऐसे में संस्कारों के बोझ तले दवाएं नहीं। अपने बेटियों को सशक्त बनाए कमजोर नहीं। उन्हें आदर भाव बताए न की झुकना व दबना। अपने बेटियों को जीने की कला सिखाएं, ना कि संस्कार और तहजीब के नाम पर उनके सपनों व ख्वाहिशों को मारने की ट्रेनिंग दें।
ऐसे में बेटे-बेटी के खींची इस लाइन को मिटाने की सबसे पहली कोशिश माता-पिता को ही करनी होगी। अपने बेटी व बेटे को एक सामान समझें। यही नहीं, घर के जो काम आप अपने बेटी को सिखाती हैं वो बेटे को भी सिखाएं। फिर चाहे वो खाना बनाना हो या कपड़े धोना। अगर बेटा पढ़ने या जॉब के सिलसिले में कहीं बाहर जा रहा है तो यह उसके काम आएगा। वहीं इससे उसे बेहतर व्यक्ति बनने में भी मदद मिलेगी।
बेटा-बेटी के इस फर्क को मिटाने के लिए सरकार 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ ', 'सुकन्या योजना', 'गांव की बेटी' जैसी ना जाने कितनी योजनाएं चली रही है। लेकिन अगर लोगों की सोच बदलनी है तो इसकी शुरूआत आपको अपने घर से ही करनी होगी।
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