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आखिर क्यों खुद रूक जाता है मुस्लिम मजार में भगवान का रथ? जानिए रहस्य

  • Edited By neetu,
  • Updated: 23 Jun, 2020 05:27 PM
आखिर क्यों खुद रूक जाता है मुस्लिम मजार में भगवान का रथ? जानिए रहस्य

हिंदू धर्म में चार धाम की यात्रा को बहुत ही पवित्र माना जाता है। पुराणों में भी लिखा है कि कलयुग में मोक्ष भगवान जगन्‍नाथ की शरण में जाने से ही मिलेगा। भगवान जगन्‍नाथ का सुंदर और भव्य मंदिर ओडिशा राज्‍य के शहर पुरी में बना है। यह भुवनेश्‍वर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर बना है। यह सुंदर और आलौकिक शहर के तीनों ओर समुद्र है। यहां हर दिन हजारों की दातार में भक्त भगवान के दर्शन करने आते है। वैसे तो हर साल जुलाई महीने में भगवान जगन्‍नाथ अपने भक्‍तों से मिलने रथ पर सवार होकर खुद ही उन्हें मिलने आते है। मगर इस बार उनके भक्तों के लिए खुशखबरी है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 23 जून यानि आज ही शुरू हो गई है। मगर कोरोना महामारी के कहर से बचने के लिए इस बार रथयात्रा के दौरान कुछ नियमों का पालन करना बेहद जरूरी हैं। भगवान जगन्नाथ की यात्रा के कई पड़ाव होते है। इनकी यात्रा शुरू होते ही जगह-जगह पर भक्तों द्वारा रथ को रोका जाता है। लोगों द्वारा भगवान के दर्शन कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। इनकी कहानी बहुत ही रोचक है। तो चलिए जानते है इनके बारे में...

हर साल भगवान जगन्नाथ को रथ में सवार कर उनकी झाकी को शहर भर में घुमाया जाता है। इस यात्रा की खास बात है कि उनका यह रथ एक मुस्लिम भक्‍त की मजार पर भी रूकता है। बहुत से लोग इस बात से हैरान होंगे। साथ ही भगवान के रथ का इस जगह रूकने के बारे में जानने चाहते है। तो चलिए बताते है इसके पीछे छिपे रहस्य के बारे में...

 

हर साल भगवान जगन्‍नाथ की अपनी बहन सुभद्रा और बड़े भाई दाउ बलराम के साथ रथ निकलता है। वे शहर भर में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। यात्रा के दौरान वे अपनी मौसी गुंडिचा देवी के मंदिर में कुछ दिनों के लिए ठहरते है। उसके बाद एक मुस्लिम मजार आता है। यह सालबेग की मजार है। इस जगह पर पहुंच का भगवान का रथ अपने आप ही रूक जाता है। ऐसा कई सालों से होता आ रहा है। असल में इसके पीछे एक रोचक कहानी है। 

क्या है कहानी?

जब भारत में मुगल राज करते थे। तब उनकी सेना में सालबेग नाम का एक योद्धा था। उस वीर के पिता मुस्लिम और मां हिंदू धर्म की थी। एक समय युद्ध करने के दौरान सालबेग के माथे पर गंभीर चोट आई। घाव जल्दी न भरने की वजह से उसे सेना से बाहर निकाल दिया था। इसके बाद सालबेग तनाव में आ गया। सालबेग की मां ने उसकी परेशानी को दूर करने के लिए उसे भगवान जगन्‍नाथ के दरबार में माथा टेकने के लिए भेजा। इस तरह सालबेग भगवान जगन्‍नाथ के दरबार पहुंचा और उनकी भक्ति में लीन हो गया। इस तरह अपने भक्त की सच्ची भक्ति देखकर भगवान उससे बहुत खुश हुए। उसके बाद वे उसके सपने में भी आए। साथ ही उसकी चोट ठीक कर दी। सालबेग ने जब अपने घाव भरे देखे तो वह भगवान की भक्ति में डूबा हुआ जगन्‍नाथ मंदिर में पहुंचा। मगर वह हिंदु न होने की वजह से मंदिर के पुजारी ने उसे अंदर नहीं जानें दिया। तब सालबेग ने कहा कि, अगर वह जगन्‍नाथ जी का परम भक्‍त है तो भगवान उसे दर्शन देने खुद आएंगे। उसके बाद सालबेन ने जीवन भर भगवान की भक्ति की। मगर उसे भगवान जगन्नाथ के दर्शन मिलने का सौभाग्य नहीं मिला। मगर जिस साल उसकी मृत्‍यु हुई उसी साल ही जगन्‍नाथ जी की रथ यात्रा के समय भगवान का रथ खुद ही सालबेग की मजार पर खड़ा हो गया। लोगों द्वारा बहुत कोशिशें करने के बाद भी रथ अपनी जगह से नहीं हिला। तब किसी ने भगवान के परम भक्‍त सालबेग की याद दिलाई। उसके बाद सभी भक्तों ने भगवान के मुस्लिम भक्त सालबेग के नाम का जयकारा लगाए और उसके तुरंत बाद भगवान का रथ आगे बढ़ा। तब से आज तक ये यात्रा ऐसे ही चलती आ रही हैं। 

 

क्‍यों निकाली जाती है रथ यात्रा?

यह यात्रा आषाढ़ माह के शुक्‍ल पक्ष की द्वितीय को ओडिशा के पुरी नगर में निकाली जाती है। लोग बड़े चाव से भगवान का रथ सजाते है। फिर बड़ी धूमधाम से उनकी रथयात्रा निकाली जाती है। यह यात्रा हर साल बड़े उल्लास के साथ निकाली जाती है। साथ ही हर साल इनका रथ बड़े ही आलौकिक ढंग से सजाया जाता है। बता दें भगवान जी का रथ में 12 पहिए होते है। ऐेसे में यह रथ बहुत ही बड़ा और सुंदर दिखाई देता है। इसमें बैठकर रथ में बैठ कर भगवान जगन्‍नाथ दस दिनों तक जनकपुरी की यात्रा कर अपने भक्तों को दर्शन देते है। साथ ही उनके दुखों का निवारण करते है। इसी दौरान भगवान जगन्नीथ विश्राम करते हफ और लक्ष्‍मी जी से भी मिलते हैं। साथ ही अपनी मौसी गुंडिचा देवी के घर भी पहुंचते है। 

 

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