अनुसूचित जाति व जनजाति आरक्षण में को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ देश भर के विभिन्न संगठनों ने आज 'भारत बंद' का आह्वान किया है। दलित संगठनों ने आम लोगों के लिए एडवाइजरी जारी करके अपील की है कि मेडिकल सेवाओं, पुलिस और फायर सेवाओं को छोड़कर सुबह 6 बजे से रात के 8 बजे तक सब कुछ बंद रखा जाए। हालांकि इसका मिलता-जुलता असर देखने को मिला।
सामान्य रूप से हाे रहा है काम-काज
भारत बंद को लेकरकिसी भी राज्य सरकार ने आधिकारिक तौर पर दिशा-निर्देश जारी नहीं किए, ऐसे में सरकारी दफ्तर, बैंक, पेट्रोल पंप , स्कूल और कॉलेज में सामान्य रूप से काम-काज हो रहा है। वहीं बंद के आह्वान के बावजूद भी सार्वजनिक परिवहन, रेल सेवाएं भी जारी है।इस दौरान अस्पताल और एंबुलेंस जैसी आपातकालीन सेवाएं जारी रहेंगी।
दिल्ली में नहीं दिखा असर
भारत बंद का आह्वान करने वाले संगठनों ने कहा था कि देश में कोई भी सार्वजनिक परिवहन नहीं चलेगा, लेकिन इसे लेकर कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है। कुछ जगहों पर सार्वजनिक परिवहन सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं, ऐसे में लोग बाहर निकलने से बच रहे हैं।देश की राजधानी दिल्ली में भारत बंद का बहुत ज्यादा असर देखने को नहीं मिला, लेकिन राजस्थान में में स्कूलों में छुट्टी की गई है, कई जगह इंटरनेट सेवाएं भी बंद हैं।
क्यों हो रहा है विरोध
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने 1 अगस्त को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण पर पर बड़ा फैसला दिया था। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि राज्यों को आरक्षण के लिए कोटा के भीतर कोटाबनाने का अधिकार है यानी राज्य सरकारें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों के लिए सब कैटेगरी बना सकती हैं।
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि- ''सभी एससी और एसटी जातियां और जनजातियां एक समान वर्ग नहीं हैं। कुछ जातियां अधिक पिछड़ी हो सकती हैं। उदाहरण के लिए - सीवर की सफाई और बुनकर का काम करने वाले। ये दोनों जातियां एससी में आती हैं, लेकिन इस जाति के लोग बाकियों से अधिक पिछड़े रहते हैं। इन लोगों के उत्थान के लिए राज्य सरकारें एससी-एसटी आरक्षण का वर्गीकरण (सब-क्लासिफिकेशन) कर अलग से कोटा निर्धारित कर सकती है। ऐसा करना संविधान के आर्टिकल-341 के खिलाफ नहीं है।''सुप्रीम कोर्ट ने कोटे में कोटा निर्धारित करने के फैसले के साथ ही राज्यों को जरूरी हिदायत भी दी। कहा कि राज्य सरकारें मनमर्जी से यह फैसला नहीं कर सकतीं।
क्या है मांग
कोटा के भीतर कोटा होने का मतलब है कि आरक्षण के पहले से आवंटित प्रतिशत के भीतर ही अलग से एक आरक्षण व्यवस्था लागू कर देना, ताकि आरक्षण का लाभ उन जरूरतमंदों तक भी पहुंचे जो अक्सर इसमें उपेक्षित रह जाते हैं। एनएसीडीएओआर ने सरकार से अनुरोध किया है कि इस फैसले को खारिज किया जाए क्योंकि यह अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के संवैधानिक अधिकारों के लिए खतरा है। संगठन एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण पर संसद द्वारा एक नये कानून को पारित करने की भी मांग कर रहा है जिसे संविधान की नौवीं सूची में समावेश के साथ संरक्षित किया जाए।