कहते हैं मन में अगर कुछ कर दिखाने का जज्बा हो तो कोई भी मुश्किल बड़ी नहीं लगती। ऐसी ही एक मिसाल पेश की है चित्रदुर्ग के हिरियूर की रहने वाली 22 साल की ललिता आर अवली (Lalitha R Avali) ने।
दरअसल, ललिता ने अपनी कड़ी मेहनत और लगन से ना सिर्फ एयरो इंजीनियरिंग (Aero Engineering) की परिक्षा पास की बल्कि उसमें टॉप भी किया। ललीता के पिता सब्जियां बेचने का काम करते हैं इसलिए घर का गुजारा भी मुश्किल से हो पाता है।
9.7 प्रतिशत अंकों से पास की परीक्षा
जब उन्हें पता चला कि उनकी बेटी ने एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग की परीक्षा सबसे ज्यादा अंकों से पास की है, तो उनका सीना गर्व से फूल गया। ललिता ने पूरे स्टेट में पहला रैंक हासिल किया,वह एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में 9.7 प्रतिशत और गेट परीक्षा में 707 का सराहनीय स्कोर से पास हुई।
कैलाश सत्यार्थी ने दी शुभकामनाएं
यही नहीं, नॉबेल प्राइज से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी ने भी उन्हें भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी। ललीता इसके बाद बेंगलुरु के येलहंका में ईस्ट वेस्ट कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग की ओर रुख करेंगी, जहां वे एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग विभाग से बीई कर रही थीं।
काम में करती हैं माता-पिता की मदद
ललीता बताती हैं कि वो सुबह 4 बजे उठ जाती थी और और सब्जी बेचने में अपने माता-पिता की मदद करती हैं। साथ ही, बेंगलुरु के ‘ईस्ट वेस्ट कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग’ जाने से पहले दुकान पर बैठकर पढ़ती हैं।
घर में पहली ग्रेजुएट
उन्होंने कहा, वह अपने परिवार में पहली ग्रेजुएट व इंजीनियर है। मेरा परिवार ही नहीं बल्कि पूरा जिला मेरे पास होने की खुशी मना रहा है, जिसे देखकर मुझे लग रहा है कि मेरी मेहनत सफल हुई। वह अपनी इस जीत का क्रेडिट अपने माता-पिता को देती हैं, जिन्होंने ना सिर्फ ललीता को उड़ने के लिए खुला आसमान दिया बल्कि हर कदम पर उसके साथ भी खड़े रहें।
माता-पिता को मानती है आदर्श
आगे वह कहती हैं कि हमारे जीवन में संघर्षों की कमी नहीं थी। मैंने अपने माता-पिता को परिवार घर खर्च चलाने के लिए दिन-रात मेहनत करते देखा है। फिर भी, वे हमें बेहतरीन शिक्षा देने में सफल रहे। मैं हमेशा उनके प्रति आभारी रहूंगी।
5वीं तक पढ़ी हैं मां
उनके पिता पहली और मां 5वी कक्षा तक पढ़ी हैं। दोनों मिलकर दुकान चलाते हैं, जो रोजाना किसानों से सब्जी खरीदने के लिए सुबह 4:30 बजे घर से निकल जाते हैं। इसके बाद 6 से रात के 10 बजे तक दुकान चलाते हैं।
बेंगलुरु में कर रही हैं इंटर्नशिप
ललिता भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के वर्तमान प्रमुख के सिवन को अपना आदर्श मानती हैं। वह साल 2015 में पहली बार बेंगलुरु गईं। शहर में शामिल होने में कुछ वक्त लगा। ‘नेशनल स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम’ में चुने जाने के बाद अब एक एयरोस्पेस कंपनी में इंटरनशिप कर रही हैं। उनका सपना भारत में एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक के रूप में काम करने का है। वह इसरो या डीआरडीओ में शामिल होना चाहती हैं।
उनके लगातार अच्छे परिणामों को देखते हुए कॉलेज प्रशासन ने उन्हें मुफ्त छात्रावास की सुविधा प्रदान की थी, जिससे वह रोजाना की बस यात्रा और कई कीमती घंटों की बचत कर सकेंगी।