जी20 शिखर सम्मेलन में एक चीज जिसने सभी का ध्यान अपनी और खींचा है वह है 27 फीट ऊंची नटराज की मूर्ति । राजधानी के प्रगति मैदान के भारत मंडपम् परिसर में लॉस्ट वैक्स तकनीक द्वारा अष्टधातु से बनी दुनिया की सबसे ऊंची नटराज प्रतिमा स्थापित की गई है। इसकी ऊंचाई 27 फीट, चौड़ाई 21 फीट और वजन लगभग 18 टन है। ऐसी मान्यता है कि इस रूप में भगवान शिव तांडव नृत्य की एक मुद्रा में हैं
नटराज की मूर्ति का निर्माण तमिलनाडु के स्वामीमलाई के पारम्परिक स्थापतियों द्वारा श्री राधाकृष्णण की अगुआई में शिल्प शास्त्र में उल्लिखित सिद्धांतों और मापों का पालन करते हुए पारंपरिक मधुच्छिष्ट विधान (लॉस्ट वैक्स तकनीक) से किया गया है। इस विधि का चोल काल (9वीं शताब्दी ईस्वी) से नटराज प्रतिमा के निर्माण में पालन किया जाता है।
श्री राधाकृष्णण का परिवार चोल काल से यह शिल्प कार्य करता रहा है। वह चोल काल के स्थापतियों के परिवार की 34वीं पीढ़ी के सदस्य हैं। जी-20 की अध्यक्षता के समय, भारत मंडपम् के सामने स्थापित नृत्य के भगवान शिव नटराज की यह प्रतिमा दुनिया में अष्टधातु से बनी सबसे बड़ी नटराज प्रतिमा है। यह ब्रह्मांडीय नृत्य व्याप्त सर्वव्यापी अनंत सत्ता का प्रतीक है।
भगवान का यह स्वरूप धर्म, दर्शन, कला, शिल्प और विज्ञान का समन्वय है। नाचते हुए भगवान का यह प्रतीक प्रतीकात्मकता से भरा है। इसे बनाने में करीब 10 करोड़ रुपये की लागत आई है। यह अष्टधातु- कॉपर, जिंक, लीड, टिन, सिल्वर, गोल्ड, मरकरी और आयरन से बनी है। पुरातत्व, प्रतीकात्मक और साहित्यिक सबूतों से से पता चलता है कि शिव के आनंद तांडव मुद्रा वाली कांस्य प्रतिमाएं पहली बार 7वीं और 9वीं शताब्दी के मध्य के बीच पल्लव काल में दिखाई दी थीं।
इस नृत्य मुद्रा में शिव को आमतौर पर चार भुजाओं में डंडा, गज प्रतीक, विनाश की प्रतीक ज्वाला और सृजन के प्रतीक डमरू के साथ चित्रित किया जाता है। उनका आगे का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में होता है। उन्हें सांप का आभूषण पहने और बौने मुयालाका पर नृत्य करते हुए दिखाया जाता है, जो अज्ञानता और बुराई का प्रतीक है।