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लड्डू गोपाल की छाती पर होता है पैर का निशान, जानिए क्या है इस “चरण चिन्ह” की कहानी

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 19 Aug, 2022 04:26 PM
लड्डू गोपाल की छाती पर होता है पैर का निशान, जानिए क्या है इस “चरण चिन्ह” की कहानी

भगवान श्रीकृष्ण का बाल स्वरुप हर किसी का मन मोह लेता है। ब्रज धाम ही नहीं बल्कि देश के हर छोटे से छोटे कसबे और बड़े से बसे शहर में लड्डू गोपाल की सेवा की जाती है। कहा जाता है कि लड्डू गोपाल जी भी किसी विशेष ताम झाम के नहीं आपके प्रेम और आपके भाव के भूखे हैं। अतः उनको जितना प्रेम जितना भाव अर्पित किया जाता है वह उतने आपके अपने होते है। लेकिन इस सब के बीच क्या आप ये जानते हैं कि श्रीकृष्ण के लड्डू स्वरूप की छाती पर पैर का चिह्न क्यों होता है। 

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बता दें कि ये चिन्ह भगवान श्रीकृष्ण के बालस्वरुप लड्डू गोपाल और युगल स्वरूप में ही चिन्हित होता है। इस निशान को लेकर एक पुरातन कथा में बताया गया कि एक बार महाऋषियों के बीच ब्रह्मा, विष्णु और महेश में श्रेष्ठता को लेकर चर्चा हो रही थी।  इसका कोई निष्कर्ष ना निकलता देख ब्रह्माजी के पुत्र महर्षि भृगु को त्रिदेवों की परीक्षा लेने का कार्य सौंपा गया। 

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महर्षि भृगु सर्वप्रथम ब्रह्माजी के पास गए। उन्होंने न तो प्रणाम किया और न ही उनकी स्तुति की। यह देख ब्रह्माजी क्रोधित हो गए। क्रोध की अधिकता से उनका मुख लाल हो गया। लेकिन फिर यह सोचकर कि ये उनके पुत्र हैं, उन्होंने हृदय में उठे क्रोध के आवेग को विवेक-बुद्धि में दबा लिया। इसके बाद महर्षि भृगु कैलाश गए। देवाधिदेव भगवान महादेव ने देखा कि भृगु आ रहे हैं तो वे प्रसन्न होकर अपने आसन से उठे और उनका आलिंगन करने के लिए भुजाएँ फैला दीं। किंतु उनकी परीक्षा लेने के लिए भृगु मुनि उनका आलिंगन अस्वीकार करते हुए बोले- महादेव!  आप सदा वेदों और धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं। दुष्टों और पापियों को आप जो वरदान देते हैं, उनसे सृष्टि पर भयंकर संकट आ जाता है। इसलिए मैं आपका आलिंगन कदापि नहीं करूँगा। 

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उनकी बात सुनकर भगवान शिव क्रोध से तिलमिला उठे। उन्होंने जैसे ही त्रिशूल उठा कर उन्हें मारना चाहा, वैसे ही भगवती सती ने बहुत अनुनय-विनय कर किसी प्रकार से उनका क्रोध शांत किया। शिव और ब्रह्मा की परीक्षा लेने के बाद भृगु  वैकुण्ठ लोक गए। उस समय भगवान श्रीविष्णु देवी लक्ष्मी की गोद में सिर रखकर लेटे थे। भृगु ने जाते ही उनके वक्ष पर एक तेज लात मारी। भक्त-वत्सल भगवान विष्णु शीघ्र ही अपने आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम करके उनके चरण सहलाते हुए बोले- भगवन! आपके पैर पर चोट तो नहीं लगी? कृपया इस आसन पर विश्राम कीजिए। भगवन! मुझे आपके शुभ आगमन का ज्ञान न था। इसलिए मैं आपका स्वागत नहीं कर सका। आपके चरणों का स्पर्श तीर्थों को पवित्र करने वाला है। आपके चरणों के स्पर्श से आज मैं धन्य हो गया।

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भगवान विष्णु का यह प्रेम-व्यवहार देखकर महर्षि भृगु की आँखों से आँसू बहने लगे। उसके बाद वे ऋषि-मुनियों के पास लौट आए और ब्रह्माजी, शिवजी और श्रीविष्णु के यहां के सभी अनुभव विस्तार से बताए। उनके अनुभव सुनकर सभी ऋषि-मुनि बड़े हैरान हुए और उनके सभी संदेह दूर हो गए। तभी से वे भगवान विष्णु को सर्वश्रेष्ठ मानकर उनकी पूजा-अर्चना करने लगे। भृगु ऋषि के द्वारा मारी गई लात से उनके चरण चिन्ह भगवान विष्णु के स्वरूप, उनके विग्रहों की छाती पर मौजूद हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार लड्डू गोपाल की छाती पर भृगु के चरण का चिह्न छपा है।
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