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''न धनम, न जनम न सुन्दरी ''... कान्हा नगरी के मंदिरा में जन्माष्टमी मनाने की परंपरा है निराली

  • Edited By vasudha,
  • Updated: 05 Sep, 2023 06:05 PM
''न धनम, न जनम न सुन्दरी ''... कान्हा नगरी के मंदिरा में जन्माष्टमी मनाने की परंपरा है निराली

कान्हा की नगरी मथुरा के पांच मन्दिरों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाने की निराली परंपरा है। इनमें से चार मन्दिर वृन्दावन में एवं एक मन्दिर नन्दगांव में है।       वृन्दावन के प्राचीन राधारमण,राधा दामोदर एव गोकुलानन्द मन्दिर में जन्माष्टमी दिन में मनाई जाती है वहीं वृन्दावन के शाहजी मन्दिर में भी जन्माष्टमी दिन में मनाने की परंपरा चली आ रही है। पांचवां मन्दिर नन्दबाबा मन्दिर नन्दगांव है जहां पर आठ सितंबर को जन्माष्टमी मनाई जाएगी लेकिन इस मन्दिर में इस दिन न तो अभिषेक होगा और ना ही रात 12 बजे के अभिषेक के दर्शन होते हैं। राधारमण मन्दिर मे तो इस दिन मन्दिर के सेवायत लाला को चिरंजीव होने का आशीर्वाद तक देते हैं।      

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 500 वर्ष से चल रही है परंपरा

राधारमण मन्दिर के सेवायत आचार्य दिनेश चन्द्र गोस्वामी ने बताया कि चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रूप गोस्वामी ने यह परंपरा आज से लगभग 500 वर्ष पहले डाली थी जिसका वर्णन रूप गोस्वामी के ग्रन्थ ''श्रीकृष्ण जन्म तिथि विधि'' में मिलता है। वास्तव में जन्माष्टमी श्रीकृष्ण की सालगिरह है तथा रात में लाला को जगाकर उसका जन्म दिन मनाना ठीक नही है इसलिए ही दिन में जन्माष्टमी मनाने के बारे में रूप गोस्वामी, जीव गोस्वामी और गोपाल भट्ट ने दिया था ।शाह जी मन्दिर में सभी परंपराएं राधारमण मन्दिर के अनुरूप ही चलती हैं इसलिए यहां भी जन्माष्टमी दिन में ही मनाई जाती है। उन्होंने बताया कि ठाकुर का यमुना जल से अभिषेक करने के बाद 27 मन गाय के दूध, दही,घी तथा बूरा , शहद, औषधि, वनोषधि, सर्वोषधि,महाषधी आदि से अभिषेक किया जाता है सबसे अन्त में केशर से अभिषेक किया जाता है। 

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 केशर से भी किया जाता है ठाकुर जी का अभिषेक

इसके बाद पर्दा आ जाता है और अन्दर ही ठाकुर का श्रंगार होता है। श्रंगार के बाद ठाकुर को राई लोन उतार कर मन्दिर के सेवायत उन्हें आशीर्वाद देते हैं माई तेरो चिर जीवे गोपाल। इसके बाद मन्दिर के सेवायत ठाकुर से प्रार्थना करते हैं ''न धनम, न जनम न सुन्दरी '' अर्थात हे प्रभु मुझे कुछ नही चाहिए क्योंकि आप के श्रीचरणों में मेरा अनुराग बना रहे। इस दिन तिल का विशेष भोग लगता है। आरती के बाद सभी भक्तों में प्रसाद का वितरण होता है तथा अभिेषेक समाप्त होने के बाद ही चरणामृत का वितरण मन्दिर के बाहर होता है। 

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अभिषेक के लिए भक्त लाते हैं दूध

राधा दामोदर मन्दिर में सवा मन गाय के दूध के साथ पंचामृत अभिषेक उसी प्रकार होता है जैसे राधारमण मन्दिर में होता है।  यहां के अभिषेक की विशेषता यह है कि भक्त भी अभिषेक में अपना सहयोग देने के लिए दूध लेकर आते है और मन्दिर के सेवायत को अभिषेक के लिए दे देते हैं भक्तों द्वारा कई मन दूध लाया जाता है तो कुछ भक्त 250 मिलीलीटर तक दूध लाते हैं। एक प्रकार से यहां का अभिषेक सामूहिक अभिषेक होता है जो मन्दिर के सेवायतों द्वारा किया जाता है। मन्दिर के सेवायत आचार्य बलराम गोस्वामी ने बताया कि इस मन्दिर में अभिषेक के बाद दही और हल्दी मिश्रित कीच सेवायत एक दूसरे पर डालकर श्रीकृष्ण के अवतरण पर खुशी जाहिर करते हैं। इस दिन उस गिररज शिला का भी अभिषेक किया जाता है जिसे ठाकुर जी ने स्वयं सनातन गोस्वामी को दिया था। यहां के कार्यक्रम में विदेशी कृष्ण भक्त भी शामिल होते हैं क्योंकि इस मन्दिर में साधना करने के बाद ए सी भक्ति वेदान्त स्वामी प्रभुपाद को विशेष ज्ञान प्राप्त हुआ था।      

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नन्दबाबा मन्दिर में किया जाता है बधाई गायन 

 नन्दगांव के नन्दबाबा मन्दिर में जन्माष्टमी के कार्यक्रम बरसाना और नन्दगांव के सेवायत मिलजुलकर बधाई गायन करते हैं। मन्दिर के सेवायत आचार्य सुशील गोस्वामी ने बताया कि इस मन्दिर में रात 12 बजे का महाअभिषेक परदे के अन्दर ही होता है। भक्तों को अभिषेक के बाद आरती के दर्शन होते हैं। नन्द महेात्सव में ठाकुर जी टोपी और झबला पहनकर पलना में विराजते हैं। यहां के नन्द महोत्सव में शंकर लीला, मल्ल विद्या, लट्ठे का मेला आदि का आयोजन किया जाता है। दधिकाना लीला होती है तथा खूब खिलौने , मिठाई फल आदि लुटाए जाते है। कुल मिलाकर ब्रजभूमि में भाव की सेवा होने के कारण अलग अलग मन्दिरों में तथा घरों में विभिन्न रूपों में जन्माष्टमी का आयोजन होता है। 

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