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भोलेनाथ के महामृत्युंजय मंत्र के सामने यमराज भी मान जाते हैं हार, जानिए पौराणिक कथा

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 06 Mar, 2024 06:09 PM
भोलेनाथ के महामृत्युंजय मंत्र के सामने यमराज भी मान जाते हैं हार, जानिए पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में महामृत्यंजय मंत्र का खास महत्व है। कहते हैं इसका सीधा संबंध भगवान शिव से है। मान्यता है कि इस मंत्र का जाप करके मृत्यु पर भी विजय पाई जा सकती है। प्राचीन काल में जहां तरह देवताओं के पास अमृत था, तो वहीं दानवों के पास इस मंत्र की शक्ति थी। कहते हैं कि ऋषि शुक्राचार्य जब ये महामृत्युंजय मंत्र पढ़ते थे तो दानव मृत्यु के बाद भी पुन: जीवित हो जाते थे। इस मंत्र को मृत संजीवनी मंत्र भी कहा जाता है।

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कैसे हुई महामृत्युंजय मंत्र की उत्पत्ति? 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि मृकण्डु और उनकी पत्नी ने पुत्र की प्राप्ति के लिए कठोर तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनको दर्शन दिए और मनोकामना पूर्ति के लिए 2 विकल्प दिए। पहला- अल्पायु बुद्धिमान पुत्र और दूसरा- दीर्घायु मंदबुद्धि पुत्र। इस पर ऋषि मृकण्डु ने अल्पायु बुद्धिमान पुत्र की कामना की। जिसके परिणामस्वरूप मार्कण्डेय नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। उनका जीवन काल 16 साल का ही था। वे अपने जीवन के सत्य के बारे में जानकर भगवान शिव की पूजा करने लगे। मार्कण्डेय जब 16 साल के हुए तो यमराज उनके प्राण हरने के लिए आए। वो वहां से भागकर काशी पहुंचे। लेकिन यमराज ने उनका पीछा नहीं छोड़ा तो मार्कण्डेय काशी से कुछ दूरी पर कैथी नामक गांव में पहुंचे और वहां मौजूद मंदिर के शिवलिंग से लिपट कर भोलेनाथ से प्रार्थना करने लगे। मार्कण्डेय की पुकार सुनकर महादेव वहां पहुंचे। कहते हैं महादेव के तीसरे नेत्र से महामृत्युंज मंत्र की उत्पत्ति हुई। भगवान शिव ने आखिरकार मार्कण्डेय को अमर रहने का वरदान दिया। इसके बाद यमराज को वापस लौटना पड़ा।

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महामृत्युंजय मंत्र

ऊँ त्र्यंबकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टिवर्द्धनम्,
ऊर्वारुकमिव बन्धनात, मृत्योर्मुक्षियमामृतात्।।

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ

महामृत्युंजय मंत्र का अर्थ है -  हम भगवान शिव की पूजा करते हैं। हम त्रिनेत्र भगवान शिव का मन से स्मरण करते हैं।  जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं। जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर अमृत की ओर अग्रसर हों।

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नोट- इस मंत्र का पूर्ण विधि विधान से संकल्प लेने के बाद इसका नियमित जाप करना चाहिए। इस मंत्र का लाभ पाने के लिए पूर्ण रूप से इसके जाप का अनुष्ठान कराना चाहिए।

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