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मैं तुम्हें फिर मिलूंगी! Imroz -Amrita की बेपनाह मोहब्बत जो रह गई अधूरी

  • Edited By Charanjeet Kaur,
  • Updated: 13 Jul, 2023 04:05 PM
मैं तुम्हें फिर मिलूंगी! Imroz -Amrita की बेपनाह मोहब्बत जो रह गई अधूरी

साल 2022 में रिलीज हुई फिल्म  Imroz: A Walk Down Memory Lane, सिर्फ एक कहानी नहीं है बल्कि दो प्यार करने वालों की सच्ची दांस्ता हैं जिसे मौत भी अलग नहीं कर पाई। इस फिल्म को बनाया है प्रसिद्ध टीवी निर्माता और फिल्म निर्माता हरजीत सिंह ने। इस फिल्म में उन्होंने अपने करीबी दोस्त अमृता प्रीतम जो अपने समय की बहुत बड़ी कवयित्री थीं और उनके चित्रकार प्रेमी इमरोज के मजबूत प्यार और रिश्ते की परतें खोलकर पूरी दुनिया के सामने रख दी हैं। ये कहना गलत नहीं होगा की ये अपने समय की सबसे खूबसूरत  और Pure लव स्टोरी है। आखिर ऐसा क्या था इनकी मोहब्बत में खास, चलिए आपको बताते हैं। 

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किताब के डिजाइन के साथ पसंद आया किताब डिजाइन करने वाला

अमृता एक बार एक चित्रकार सेठ से अपनी किताब 'आख़िरी ख़त' का कवर डिज़ाइन करने का अनुरोध किया था। उन्होंने ही अमृता को इमरोज़ से मिलवाया। दरअसल, उस ज़माने में इमरोज  उर्दू पत्रिका शमा में काम किया करते थे। इमरोज़ ने चित्रकार सेठ के कहने पर  अमृता के  किताब का डिज़ाइन तैयार किया, जो अमृता को बहुत पसंद आया और कवर डिजाइन करने वाला भी। उसके बाद मिलने-जुलने का सिलसिला शुरू हो गया। दोनों पास ही रहते थे।इमरोज  साउथ पटेल नगर में और  अमृता वेस्ट पटेल नगर में।  

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इमरोजी में दिखा उनको अपनी कविताओं वाला राजन

बता दें कि इमरोज और अमृता इतनी भी हसीन नहीं थी। जब वो इमरोज से मिली, उस वक्त वो एक तलाकशुदा महिला थीं। जी हां, अमृता की साल 16 की उम्र में 1935 में  लाहौर के कारोबारी प्रीतम सिंह से शादी हुई। जिसे अमृता ने कभी स्वीकार नहीं किया। दोनों के 2 बच्चे भी हुए लेकिन 1980 में आखिकार उन्होंने प्रीतम को छोड़ दिया। उन्हें प्रीतम में वो नहीं मिला तो प्यार के बारे में अपनी कविताओं में लिखती थी। अमृता के ज़हन में एक काल्पनिक प्रेमी मौजूद था और उसे उन्होंने राजन नाम भी दिया था। हालांकि जब वो इमरोज से मिली तो उनको लगा जैसे की कविताओं वाला राजन जैसी असल जिंदगी में मिल गया हो।

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कई सालों तक रहे एक साथ 

जो लिव इन आज भारतीय युवाओं के फैशन बन गया है। वह अमृता के लिए जीने का अंदाज था। वह आजादी का एक अंदरूनी अहसास थ, जिसे उन्होंने दिल खोल और बेपरवाह हो कर जिया। अमृता तकरीबन 4 दशक तक इमरोज के साथ बिना शादी के लिए रहीं। यह भी जान लें कि अमृता और इमरोज के बीच उम्र में सात साल का फासला था।


दुनिया को विदा कहने से पहले यानी 31 अक्टूबर, 2005 से कुछ समय पहले अमृता ने अंतिम नज्म लिखी ‘मैं तुम्हें फिर मिलूंगी’, जो सिर्फ इमरोज के लिए थी। कहा जाता है कि शायद साहिर से अलगाव के बाद अमृता ने इमराेज के साथ 40 साल बिना शादी किए साथ बिताए। अपनी आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ की भूमिका में अमृता लिखती हैं-‘मेरी सारी रचनाएं, क्या कविता, क्या कहानी, क्या उपन्यास, सब एक नाजायज बच्चे की तरह हैं। मेरी दुनिया की हकीकत ने मेरे मन के सपने से इश्क किया और उसके वर्जित मेल से ये रचनाएं पैदा हुईं।’


 

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