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15 सालों से डायन प्रथा के खिलाफ चला रहीं अभियान बचाई कईं महिलाओं की जान, अब मिलेगा पद्मश्री

  • Edited By Janvi Bithal,
  • Updated: 01 Feb, 2021 01:34 PM
15 सालों से डायन प्रथा के खिलाफ चला रहीं अभियान बचाई कईं महिलाओं की जान, अब मिलेगा पद्मश्री

आज हमारा समाज काफी आगे बढ़ चुका है महिलाएं भी हर क्षेत्र में अपने नाम का परचम लहरा रही हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी था कि कुछ प्रथाओं के नाम पर महिलाओं के साथ अत्याचार किए जाते थे, उनके साथ शोषण किया जाता था और उन्हें मार दिया जाता था। इसके कारण कईं महिलाएं भी अपनी जान गवां चुकी हैं। हाल ही में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने वाली हस्तियों की लिस्ट सामने आई है जिसमें बीरूबाला रभा का भी नाम है जो आज समाज में रहकर एक ऐसा काबिले तारीफ काम रह रही हैं कि आप भी सुनेंगे तो खुद को तारीफ करने के लिए रोक नहीं पाएंगे। 

कौन है बीरूबाला और उन्हें क्यों मिलने जा रहा पद्मश्री?

 बीरूबाला असम की रहने वाली है। वे गोवालपारा जिले से ताल्लुक रखती हैं।  बीरूबाला पिछले 15 सालों से महिलाओं के लिए और उनके हक के लिए लड़ाई लड़ रही हैं। आपको बता दें कि बीरूबाला पिछले कई सालों से विच हंटिंग के खिलाफ अभियान चला रही हैं। विच हंटिंग यानि चुड़ैल या टोना-टोटका करने का आरोप लगाकर महिलाओं का शोषण करना और फिर उन्हें लेजाकर मार देना।  बीरूबाला महिलाओं के लिए खड़ी हुई और वह अब तक कितनी ही महिलाओं की जान बचा चुकी है। इसके खिलाफ वह जागरूकता अभियान भी चला रही है। 

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6 साल की उम्र में उठ गया पिता का 

बीरूबाला का जीवन आसान नहीं था जब वह 6 साल की थी तो उनके पिता इस दुनिया को छोड़ कर चले गए और उन्हें हमेशा हमेशा के लिए अकेला कर गए। पिता के जाने के बाद बीरूबाला को स्कूल तक छोड़ना पड़ा और इसके बाद वह मां के साथ मिल कर खेती का काम करना लगी। 

15 साल की उम्र में हुई शादी 

6 साल की उम्र में पिता की मौत के बाद 15 साल की उम्र में ही बीरूबाला की शादी एक किसान से हो गई। बीरूबाला घर को चलाने के लिए और अपने बच्चों का पेट पालने के लिए कपड़े बुनने का काम लगीं और इससे अपने बच्चों का पेट पालने लगी। लेकिन एक दिन उनके बेटे को टायफाइड हुआ तो वह उन्हें इलाज के लिए नीम-हकीम के  पास इलाज के लिए ले गई। 

इस तरह की अभियान की शुरूआत 

इलाज के दौरान नीम-हकीम ने उन्हें कहा कि उनका बेटा मर जाएगा लेकिन उसकी जान बच गई उसके बाद से ही उन्होंने इसके खिलाफ आवाज उठाई और इन नीम हकीम और जादू टोना के विरोध बोलना शुरू किया और इसके खिलाफ अभियान चलाया। 

डायन के नाम पर महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार को रोका

इसके बाद बीरूबाला ने देखा कि उनके गांव के आस-पास ही महिलाओं को डायन और चुड़ैल बताकर उन्हें मारा जाता उनका शोषण किया जाता और उनकी हत्या कर दी जाती। इस प्रथा को रोकने के लिए और महिलाओं को बचाने के लिए बीरूबाला ने महिलाओं का एक ग्रुप बनाया और अत्याचार के खिलाफ बोलना शुरू किया। बीरूबाला स्कूलों में जाती और इस प्रथा के खिलाफ जागरूकता फैलाती और लोगों को सर्तक करती। 

42 महिलाओं की बचाई जान 

इसी जागरूकता अभियान से बीरूबाला अब तक 42 महिलाओं की जान बचा चुकी हैं। इतना ही नहीं लगातार कोशिशें और अपनी कठिन मेहनत के चलते असम की विधानसभा ने "डायन हत्या निषेध" विधेयक भी पारित किया है।

वुमंस वर्ल्ड समिट फाउंडेशन प्राइज से हुईं सम्मानित 

समाज के लिए और महिलाओं की जिंदगी बचाने के लिए किए गए कामों के लिए अब उन्हें पद्मश्री अवार्ड मिलेगा इससे पहले उन्हें इस काम के लिए 2018 में वुमंस वर्ल्ड समिट फाउंडेशन प्राइज से सम्मानित किया गया था। उन्हें वुमंस वर्ल्ड समिट फाउंडेशन, जिनेवा, स्विट्जरलैंड की ओर से भी सम्मान प्राप्त है।

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पद्मश्री के लिए उत्साहित बीरूबाला

बीरूबाला पद्मश्री से सम्मानित होने के लिए और इस अवार्ड को पाने के  लिए काफी खुश और काफी उत्साहित हैं। बीरूबाला की मानें तो वह यह सम्मान उन लोगों को समर्पित करेंगी जिन्होंने उनका इस अभियान में साथ दिया। 

सच में हम भी बीरूबाला के इस जज्बे को सलाम करते हैं। आज वह महिलाओं के बचाने के लिए बहुत अच्छा काम कर रही हैं। ऐसी स्थिती में एक अकेली महिला बोलने से डरती है लेकिन बीरूबाला के इस कार्य के बाद महिलाओं का भी हौसला बुंलद हुआ है। 

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