वैसे तो देश में अलग-अलग जगहों पर भिन्न-भिन्न तरीकों से होली मनाई जाती है, लेकिन भीलवाड़ा में एक ऐसी परंपरा है जो काफी हैरान करती है। यहां पर होली के सात दिन शीतल सप्तमी को विशेष ढंग से होली खेली जाती है। इस दिन जिंदा लोगों की शव यात्रा निकाली जाती है।
बहुत ही अजीब है ये प्रथा
अर्थी पर एक जिंदा व्यक्ति को लिटाया जाता है, जिसकी शव यात्रा भीलवाड़ा शहर के चितौड़ वाले हवेली करके मुख्य मार्गों से निकाली जाती है। इस शवयात्रा को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। लोग अर्थी के आगे ढोल- नगाडे़ के साथ नाचते गाते और अशलील फब्तियां कसते हुए चलते हैं औरअंत में बड़े मंदिर के पास बाहर आकर यह यात्रा खत्म हो जाती है। इससे पहले मुर्दा बना युवक उठकर भाग जाता है और बाद में अर्थी का अंतिम संस्कार कर दिया जाता है। असल में लोगों को सुख-दुख में मजबूत रहने और खुशी के साथ जीवन यापन करने का संदेश इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य है।
500 साल से चली आ रही है परंपरा
भीलवाड़ा के मोतबीर बहरुपिया जानकीलाल भांडवाड़ा में करीब 500 साल से यह इलाजी की डोल निकाली जाती है। शहर में रहने वाली गेंदार नाम की एक वेश्या ने इस परंपरा की शुरुआत की थी। गेंदर की मौत के बाद लोग अपने स्तर पर मनोरंजन के लिए यह यात्री निकालने लगे। संदेश था अपने अंदर की बुराइयों को निकालकर उनका अंतिम संस्कार कर देना जो की एक अच्छी बात है।