बच्चे घर की रौनक होते हैं। उनकी छोटी-छोटी शरारतें और मासूमियत पूरे परिवार को तनावमुक्त बनाए रखती है। लेकिन कई बार इनकी ये शरारतें बढ़ जाती हैं जिससे अभिभावक का भी खुद पर कंट्रोल नहीं रह पाता और वह इन पर अपना गुस्सा उतार देते हैं। अकसर कई बार माता-पिता बच्चों के गलत व्यवहार पर हाथ भी उठा देते हैं। लेकिन एक रिसर्च में यह बात सामने आई है कि पिटाई जैसी शारीरिक सजा से बच्चों का व्यवहार और बिगड़ सकता है, उन्हें मारने-पीटने से उनमें सुधार नहीं होता, बल्कि वे अधिक हिंसक हो जाते हैं। ब्रिटिश मेडिकल मैगजीन ‘द लैंसेट’ में प्रकाशित एक अध्ययन रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।यह अध्ययन अमेरिका, कनाडा, चीन, कोलंबिया, ग्रीस, जापान, स्विटजरलैंड, तुर्की और यूनाइटेड किंगडम के 69 देशों में किया गया है।
अध्ययन से जुड़ी वरिष्ठ लेखक एलिजाबेथ गेर्शाफ ने कहा कि पिटाई जैसी शारीरिक सजा बच्चों के विकास और कल्याण के लिए हानिकारक है। माता-पिता अपने बच्चों को मारते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से उनके व्यवहार में सुधार होगा लेकिन इससे वह और बिगड़ सकते है। अध्ययन में इसके स्पष्ट प्रमाण मिले हैं।
पिटाई के अलावा ये शारीरिक दंड भी है बच्चों के लिए हानिकारक-
एलिजाबेथ के अनुसार अध्ययन में पिटाई या इसके जैसे अन्य शारीरिक दंड शामिल किए गए हैं। माता-पिता मानते हैं कि शारीरिक सजा से बच्चे अनुशासित हो जाएंगे। इनमें बच्चे को किसी वस्तु से पीटना, चेहरे, सिर या कान पर मारना, थप्पड़, बच्चे पर कोई वस्तु फेंकना, मुट्ठी, मुक्के या पैर से मारना शामिल है। इनके अलावा बच्चे का मुंह जबरन साबुन से धोना, झुलसाना और चाकू या बंदूक से धमकी देना भी इसमें शामिल है।
शारीरिक सजा से बच्चों में बढ़ जाती है बदले की भावना-
अध्ययन में पता चलता है कि शारीरिक सजा से बच्चे और जिद्दी हो जाते है। इसके अलावा वह अक्सर झूठ बोलना शुरू कर देते है, जिससे वह की बार बच्चे आक्रामक भी हो जाते हैं। स्कूलों में उद्दंडता और असामाजिक व्यवहार भी करने लगते हैं। स्टडी में पता चला है कि शारीरिक सजा पाने वाले बच्चों में ज्ञानपूर्ण कुशलता का विकास नहीं होता है. जैसे-जैसे शारीरिक सजा बढ़ती जाती है, बच्चों का व्यवहार और खराब होता जाता है। बच्चों में गुस्से और बदले की भावना बढ़ जाती है। वह गभीर हिंसा करने लगते हैं।
आपको बता दें कि संयुक्त राष्ट्र ने साल 2006 के कन्वेंशन में कहा था कि वह बच्चों को शारीरिक सजा से बचाने के लिए प्रतिबद्ध है।
62 देशों में बच्चों को शारीरिक सजा देना अवैध
ग्लोबल पार्टनरशिप टू एंड वायलेंस अगेंस्ट चिल्ड्रन के अनुसार दुनिया के 62 देशों में बच्चों को शारीरिक सजा देना अवैध है। वहीं 27 देश बच्चों की शारीरिक सजा रोकने के लिए प्रतिबद्ध है। तो वहीं 31 देश अब भी अपराधों के लिए बच्चों को कोड़े या बेंत मारने की अनुमति हैं।
दुनिया भर में अभी भी पिटाई की अनुमति है
यूनिसेफ की साल 2017 की रिपोर्ट बताती है कि 2 से 4 साल के 25 करोड़ बच्चे उन देशों में रहते हैं, जहां अनुशासित करने के लिए पीटना वैध माना जाता है। अमेरिका के भी सभी 50 राज्यों का कहना है कि माता-पिता के लिए अपने बच्चों पर शारीरिक दंड का उपयोग करना कानूनी है।
वहीं, अप्रैल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि 1993 और 2017 के बीच अमेरिका में बच्चों की पिटाई में गिरावट आई है।
बच्चे को कभी नहीं मारना चाहिए, जानें क्यों?
शारीरिक दंड पर अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स के नीति वक्तव्य के प्रमुख लेखक सेगे ने कहा कि माता-पिता को अपने बच्चे को कभी नहीं मारना चाहिए और कभी भी मौखिक अपमान का उपयोग नहीं करना चाहिए इससे बच्चे खुद को अपमानित या शर्मिंदा महसूस करते हैं जो आगे चल कर बच्चों में उग्र बदलाव आ जाता है। बाल रोग विशेषज्ञों का समूह बच्चों की देखभाल करने वाले अभिभावकों सुझाव देते है कि बच्चों के साथ उचित व्यवहार करे इससे उनमें सकारात्मकता बढ़ती है। पिटाई, थप्पड़ मारना, धमकी देना, अपमान करना आदि बच्चों को अपमानजनक या शर्मसार जैसी फिलिंग देते हैं।
अगर पिटाई काम नहीं करती है, तो क्या करें?
अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स खिलौनों और विशेषाधिकारों को दूर करने और टाइम-आउट की सदियों पुरानी तकनीक सहित स्पैंकिंग के कई विकल्पों की सिफारिश करता है। सेज ने कहा कि तकनीकें बच्चे की उम्र पर निर्भर करती हैं।
उनके अनुसार, बच्चे के जन्म के पहले साल के दौरान शिशुओं को जो सीखने की जरूरत है वह प्यार है। जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं वह नई नई चीजों से शरारतें करने लगते हैं। ऐसे में उनका ध्यान इन चीज़ों से हटाने का सबसे अच्छा विकल्प है कि उन्हें आउट डोर गेम्स खिलाएं। इस उम्र में बच्चों को अटेंशन चाहिए होता है जो कभी कभी माता पिता नहीं दें पाते इसलिए बच्चों को बच्चों के बीच छोड़ें ऐसा होने पर वह व्यस्त रहेंगे और गुस्सा, चिड़चिड़पन जैसे आदि बुरी आदतों से भी बचे रहेंगे।