देर आए दुरुस्त आए। यह उक्ति टाटा समूह के लिए बिल्कुल फिट बैठती है क्योंकि लंबे अर्सें बाद टाटा एयर इंडिया को फिर से अपने पाले में ले आया। भले ही एयर इंडिया का निजीकरण करने के विभिन्न सरकारों के प्रयासों में दो दशक से अधिक का समय लग गया हो, लेकिन आखिरकार अंतिम बोली टाटा सन्स ने ही जीती। देश के सबसे बड़े कॉरपोरेट समूह टाटा ग्रुप एयर इंडिया की वापसी पर बेहद खुश है।
100 प्रतिशत हिस्सेदारी की हासिल
टाटा संस ने जिस कंपनी की स्थापना 90 साल पहले की थी, उसके लिए 18,000 करोड़ रुपये की बोली लगाकर 100 प्रतिशत हिस्सेदारी हासिल कर ली है। इस मौके पर टाटा ग्रुप के चेयरमैन रतन टाटा ने रतन टाटा ने ट्वीट कर एयर इंडिया के लिए लिखा- वेलकम बैक। उन्होंने अपने इमोशनल पोस्ट में लिखा- जे आर डी टाटा अगर आज हमारे बीच होते तो बहुत खुश होते। उन्होंने कहा कि यह हमारे लिए एक भावुक पल है। जेआरडी टाटा के नेतृत्व में एक समय एयर इंडिया की गिनती दुनिया की सबसे प्रतिष्ठित एयरलाइंस में होती थी। टाटा ग्रुप के पास अब फिर से इस एयरलाइन को वही साख और प्रतिष्ठा दोबारा दिलाने का मौका है।"
पुरानी तस्वीर की शेयर
इस ट्वीट के साथ रतन टाटा ने उन्होंने एक पुरानी तस्वीर भी शेयर की थी, जिसमें कंपनी के पूर्व चेयरमैन जेआरडी टाटा नजर आ रहे हैं। एयर इंडिया का निजीकरण करने के लिए पहला कदम उठाये जाने के बाद से अब तक कई एयरलाइइ कंपनियां आईं और चली गईं, लेकिन टाटा समूह का विमानन क्षेत्र खासकर एयर इंडिया के साथ लगाव कभी कम नहीं हुआ।
18,000 करोड़ रुपये किए खर्च
नमक से लेकर सॉफ्टवेयर तक बनाने वाली कंपनी टाटा समूह की भव्य विरासत को देखते हुए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि टाटा ने एयर इंडिया को वापस पाने के लिए इतना अधिक (18,000 करोड़ रुपये) खर्च किया। यह एक ऐसा समूह है जिसने टाटा एयरलाइंस और एयर इंडिया के पहले टाटा विमानन सेवा शुरू करने के लिए 1932 में दो लाख रुपये का निवेश करने में जरा सा भी संकोच नहीं किया था। अक्टूबर 1932 में कराची से बॉम्बे के लिए पहली एयरमेल सेवा उड़ान भरी गई थी जब जेआरडी टाटा ने एक पुस मोथ विमान का संचालन किया था। 89 साल बाद अब एयर इंडिया का नियंत्रण फिर से टाटा समूह के हाथ में है। भारतीय नागरिक उड्डयन इतिहास में इस समूह की यात्रा उतार-चढ़ाव भरी रही है।