दक्षिण भारत में खासकर केरल में मनाया जाने वाली ओणम पर्व का सेलिब्रेशन शुरू हो चुका है। यह पर्व साल 2021 में 12 अगस्त से लेकर 23 अगस्त तक चलने वाला है। श्रावण मास की शुक्ल त्रयोदशी में आने वाले इस त्यौहार को तिरू-ओणम भी कहा जाता है। ओणम का त्यौहार खासतौर पर खेतों में अच्छी फल के लिए मनाया जाता है। वहीं, पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस त्यौहार का संबंध भगवान विष्णु से भी है। चलिए आपको बतातो हैं ओणम फेस्टिवल से जुड़ी दिलचस्प कथा।
क्यों मनाया जाता है ओणम उत्सव ?
वैष्णव पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा महाबली ने देवताओं को हरा दिया और तीनों लोकों पर शासन करना शुरू कर दिया। वह एक असुर जनजाति के राक्षस राजा थे जो लेकिन दयालु प्रवृति के कारण वह प्रजा को बहुत प्रिय थे। मगर, देवताओं को उनकी लोकप्रियता से असुरक्षित महसूस हुआ और उन्होंने भगवान विष्णु से मदद मांगी।
भगवान विष्णु से गहरा कनैक्शन
तभी भगवान विष्णु ने ब्राह्मण बौने वामन के रूप में अपना 5वां अवतार लिया और राजा महाबली से मिलने गए। राजा महाबली ने वामन से पूछा कि वह क्या चाहते हैं? इसपर वामन ने उत्तर दिया, "भूमि के तीन टुकड़े"। जब वामन को उसकी इच्छा दी गई, तो वह आकार में बढ़ गया और क्रमशः अपनी पहली और दूसरी गति में, उसने आकाश और फिर पाताल लोक को ढंक दिया।
जब राक्षस ने रख दिया था भगवान विष्णु के पैर के नीचे सिर
जब भगवान विष्णु अपनी तीसरी गति लेने वाले थे, तब राजा महाबली ने अपना सिर भगवान को अर्पित कर दिया। इस कृत्य ने भगवान विष्णु को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने महाबली को हर साल ओणम उत्सव के दौरान अपने राज्य और लोगों से मिलने का अधिकार दिया।
कई खेलों का उत्सव है ओणम
वहीं, इस दौरान लोग वल्लम काली नामक नाव दौड़, पुलिकली नामक बाघ नृत्य, भगवान या ओनाथप्पन की पूजा, रस्साकशी, थुम्बी थुल्लल में भाग भी लेते हैं। वहीं, महिलाएं नृत्य अनुष्ठान, मुखौटा नृत्य या कुम्मत्तिकली, ओनाथल्लू या मार्शल आर्ट, ओनाविलु/संगीत, ओनापोटन (वेशभूषा), अन्य मनोरंजक गतिविधियों के बीच लोक गीत गाते हुए इस उत्सव को सेलिब्रेट करती हैं।
10 दिन चलता है यह त्यौहार
10 दिन तक चलने वाले इस उत्सव के दौरान भक्त स्नान, प्रार्थना, पारंपरिक कपड़े पहनते हैं। वहीं, घर की महिलाएं इस दौरान कसावु नामक सफेद साड़ी और सोने के गहने पहनती हैं। महिलाएं नृत्य प्रदर्शन में भाग लेती हैं और पुक्कलम नामक फूलों की रंगोली बनाती हैं। इसके अलावा इस दौरान सद्या नामक पारंपरिक दावत की भी परंपरा है, जिसमें केले के पत्तों पर सद्या परोसा जाता है।