देशभर में जन्माष्टमी की अलग ही धूम देखने को मिल रही है। जहां श्री कृष्ण मंदिर दुल्हन की तरह सजाए गए हैं तो वहीं हजारों गोविंदाओं ने 'दही हांडी' के लिए भी कमर कस ली है। जन्माष्टमी के अगले दिन जो नजारा महाराष्ट्र में देखने को मिलता है वह और कहीं नहीं देखा जाता। यहां गलियों में कहीं ना कहीं किसी ना किसी नुक्कड़ पर आपको दही हांडी प्रतियोगिता होते हुए नजर आ ही जाएगी।
दही-हांडी और श्रीकृष्ण का संबंध
मुंबई में तो इस त्यौहार को आम से लेकर खास सब धूमधाम से मनाते हैं। भगवान कृष्ण दही से बहुत प्यार करते थे और इसीलिए इस त्योहार को बहुत ही मस्ती और खुशी के साथ मनाया जाता है। दरअसल पौराणिक कथाओं की मानें तो बाल गोपाल की शरारतों से तंग आकर वृन्दावन की महिलाएं मथे हुए माखन की मटकी को ऊंचाई पर टांग देती थी, ताकि श्रीकृष्ण उस तक पहुंच ना पाएं। मगर, नटखट कृष्ण अपने दोस्तों के साथ मिलकर एक पिरामिड बनाते और उस मटकी को तोड़कर माखन खाते थे। यही से दही हांडी का चलन शुरू हो गया।
श्रीकृष्ण को इसलिए कहा जाता था 'माखन चोर'
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कंस के पापों का अंत करने के लिए इसी दिन भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में धरती पर जन्म लिया था। श्रीकृष्ण बचपन से ही नटखट स्वभाव के थे। नन्हे बाल गोपाल को माखन, दही और दूध इतना पसंद था कि वह गांवभर का माखन चोरी कर खा जाते थे। उनकी शरारतों से तंग आकर एक बार माता यशोदा ने उन्हें खंभे से बांध दिया लेकिन फिर भी वह माखन तक पहुंच गए। बस फिर क्या था श्रीकृष्ण 'माखन चोर' के नाम से मशहूर हो गए।
यहां की दही-हांडी है सबसे मशहूर
गुजरात, द्वारका, महाराष्ट्र की दही-हांडी पूरे भारत में सबसे मशहूर है। यहां हर गली-मुहल्ले में दहीं हांडी की प्रतियोगिता रखी जाती है। यहां मटकी में दही के साथ घी, बादाम और सूखे मेवे भी डाले जाते हैं, जिसे युवाओं की टोली मिलकर तोड़ती है। वहीं लड़कियों की एक टोली गीत गाती हैं और उन्हें रोकने की कोशिश करती हैं।तमिलनाडु में दही-हांडी उत्सव को 'उरीदी' भी कहा जाता है। यहां लोग हफ्तों पहले ही ग्रुप बनाकर दही-हांडी की प्रैक्टिस शुरू कर देते हैं। हांडी फोड़ने वाले को मिठाइयां व उपहार दिए जाते हैं।
कैसे तोड़ी जाती है दही-हांडी
जन्माष्टी से अगले दिन युवाओं की टोलियां काफी ऊंचाई पर बंधी दही की हांडी (एक प्रकार का मिट्टी का बर्तन) को तोड़ती हैं। इसके लिये मानवीय पिरामिड का निर्माण करते हैं और एक प्रतिभागिता इस पिरामिड के ऊपर चढ़कर मटकी को तोड़ता है। जो टोली दही हांडी को फोड़ती है उसे विजेता घोषित किया जाता है। प्रतियोगिता को मुश्किल बनाने के लिय पानी की बौछार भी की जाती है। इन तमाम बाधाओं को पार कर जो मटकी फोड़ता है वही विजेता होता है।
इस प्रतियोगिता से मिलती है सीख
इस प्रतियोगिता से सीख भी मिलती है कि लक्ष्य भले ही कितना भी कठिन हो लेकिन मिलकर एकजुटता के साथ प्रयत्न करने पर उसमें कामयाबी जरुर मिलती है। यही उपदेश भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को गीता के जरिये भी देते हैं।