धार्मिक दृष्टिकोण से केदारनाथ की बड़ी महिमा है। इसका वर्णन शिव पुराण और स्कंद पुराण में भी है। उत्तराखंड में बद्रीनाथ और केदारनाथ ये दो प्रमुख तीर्थ हैं। इन दोनों के दर्शनों का बहुत अधिक महत्व है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन किए बिना बद्रीनाथ की यात्रा करने जाता है, उसकी यात्रा निष्फल मानी जाती है। साथ ही जितना महत्व कैलाश पर्वत का है उतना ही महत्व केदारनाथ का भी है। चो आइए आपको बताते हैं यहां से जुड़ी कुछ खास बातों के बारे में।
उत्तराखंड में हिमालय में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में शामिल है। साथ-साथ चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। यहां की प्रतिकूल जलवायु के कारण यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है।
केदार नामकश्रृंग स्थित है केदारनाथ पर्वत
केदारनाथ हिमालय के केदार पर्वत पर अवस्थित है। केदारनाथ धाम तीनों तरफ पहाड़ों से घिरा है। एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्च कुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरत कुंड नाम का पहाड़ है। समुद्रतल से केदारनाथ धाम 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
पांच नदियों का है संगम केदारनाथ धाम में
यहां पांच नदियों का है संगम जो कि इस प्रकार हैं- मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी नदी। इन नदियों में से कुछ का अब अस्तित्व नहीं रहा लेकिन अलकनंदा की सहायक मंदाकिनी नदी आज भी मौजूद है। इसी के किनारे केदारेश्वर धाम स्थित है। यहां सर्दियों में भारी मात्रा में बर्फ और बारिश में बहुत सारा पानी रहता है।
ऐसी है मंदिर की वास्तुकला
यह मंदिर छह फीट ऊंचे चौकोर चबूतरे पर बना हुआ है। मंदिर में मुख्य भाग में मंडप और गर्भगृह के चारों ओर परिक्रमा पथ है। बाहर आंगन में नंदी बैल भगवान शिव के वाहन के रूप में विराजमान हैं। जिनकी श्रद्धालु पूजा भी करते हैं।
17 किलोमीटर की होती है पैदल यात्रा
जब इस मंदिर पर विपदा के बादल छा गए थे तबसे केदारनाथ धाम की दूरी तीन किमी बढ़ गई है। पहले यात्रियों को गौरीकुंड से धाम तक पहुंचने के लिए 14 किमी तक का पैदल सफर करना पड़ता था। लेकिन, अब यह दूरी 17 किमी हो गई है। जो यात्री बड़े-बुजुर्ग हैं वे घोड़े और खच्चर पर बैठकर भी यात्रा करते हैं।
कैसे पड़ा पंचकेदार नाम
पौराणिक कथाओं के मुताबिक जब भगवान शंकर बैल के रूप में अंतरध्यान हुए जब उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमांडू (नेपाल) में पाया गया जहां पशुपतिनाथ का मंदिर स्थित है। साथ ही शिव जी की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मद्महेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुईं। इसलिए इन चार स्थानों के साथ केदारनाथ धाम को पंचकेदार कहा जाता है।
चमत्कारी चट्टान है मंदिर के पीछे
मंदाकिनी नदी के किनारे बसा केदारनाथ मंदिर का छह वर्ष पहले आए प्रलय के बाद बचना किसी चमत्कार से कम नहीं है। इस विनाश में सब कुछ खत्म हो गया था। केदारनाथ मंदिर के पीछे पानी के बहाव के साथ आई एक बड़ी चट्टान इस तरह कवच बनी रही कि मंदिर की एक ईंट को भी नुकसान नहीं होने दिया। इस शीला का नाम भीमशीला रखा गया। केदारनाथ जाने वाले सभी भक्त इस शिला की भी पूजा-अर्चना करते हैं। यह शिला मंदिर के परिक्रमा मार्ग के बिलकुल पीछे है।