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बचपन में ही उठ गया था कादर खान के सिर से माँ का साया, भूखे रहकर काटते थे दिन

  • Edited By Vandana,
  • Updated: 23 Oct, 2022 04:11 PM
बचपन में ही उठ गया था कादर खान के सिर से माँ का साया, भूखे रहकर काटते थे दिन

बॉलीवुड में बहुत से दिग्गज कलाकार ऐसे रहे जो अपनी दमदार एक्टिंग के दम पर हमेशा के लिए लोगोंं के दिलों में अमर हो गए। उन्हीं में से शामिल थे कादर खान जिन्होंने करीब 300 फिल्मों में अभिनय किया और कई फिल्मों के लिए बेहतरीन डॉयलॉग्स लिखे। मिमिक्री करने में कादर खान का जवाब नहीं था और उनका यही टैलेंंट उन्हें बॉलीवुड तक ले गया लेकिन हैरान की बात थी कि 5 दशक के लंबे करियर में कादर खान के हिस्से ज्यादा अवार्ड नहीं आए और उनके निधन के 1 साल बाद उन्हें पद्मश्री पुरस्कार से नवाजा गया।

लेकिन कादर खान की जिंदगी का ये सफर इतना आसान नहीं था। इसके लिए कादर खान ने बहुत से बुरे दिन देखे। बचपन गरीबी में गुजारा। कादर को कुछ हो ना जाए उन्हें लेकर पूरा परिवार भारत आ गया। चलिए, आज उनकी 85वीं बर्थ एनिवर्सरी के मौके पर आपको उनकी जिंदगी के बारे में बताते हैं।

कादर खान का जन्म अफगानिस्तान के काबुल में हुआ था उनके पिता अब्दुल रहमान अफगानिस्तान के रहने वाले थे और उनकी मां इकबाल बेगम ब्रिटिश इंडिया से थी। कादर से पहले उनके 3 बड़े भाई भी थे लेकिन सभी 8 साल की उम्र में दुनिया से चल बसे थे। कादर की मां को इसी बात का डर था कि कही कादर की भी मौत ना हो जाए इसलिए पूरा परिवार अफगानिस्तान से भारत आ गया था। भारत आने के बाद कादर खान का परिवार मुंबई की एक बस्ती में जाकर बस गया।

जिस बस्ती में वह रहते थे वहां आए दिन लड़ाइयां झगड़े होते थे, ये बात उनके पिता को पसंद नहीं थी और कादर का बचपन मां-बाप की लड़ाइयां और तलाक देखते हुए बीता। तलाक के बाद कादर ननिहाल ने मां की दूसरी शादी करवा दी क्योंकि उन्हें लगता था कि अब कादर और उनकी मां का ख्याल कौन रखेगा और उस समय समाज ऐसी औरत को गलत मानते थे लेकिन दूसरी शादी के बाद भी कादर के घर के हालात नहीं सुधरे। सौतेले पिता का रवैया कादर के प्रति कभी सही नहीं रहा। घर के हालत इतने बुरे थे कि ना तो घर में राशन था ना कोई कमाई का जरिया।

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इसी वजह से कादर के सौतले पिता ने कादर को 10 किलोमीटर अपने सगे पिता से 2 रु. मांगने भेजते थे। हालात ऐसे थे कि वह मस्जिद पर जाकर भीख भी मांगते थे। ऐसे हालात में परिवार को हफ्ते में 3 दिन खाना मिलता था लेकिन मां चाहती थी कि कादर की जिंदगी अच्छी बीते। मां का सपना था कि वह पढ़-लिखकर अच्छा आदमी बने लेकिन घर की गरीबी उन्हें परेशान करती रही। दोस्त भी उन्हें यहीं कहते थे कि क्या रखा है पढ़ाई-लिखाई में। लोगों की बातों से परेशान आकर कादर ने सारी किताबें फैंक दी थी। जब ये बात मां को पता चली तो वह कादर से नाराज हुई। तब मां ने ही समझाया था कि इसी पढ़ाई से जब बड़े आदमी बन जाओगे, तो गरीबी खुद ही खत्म हो जाएगी। तुम्हारी आज की छोटी कमाई से गरीबी खत्म नहीं होगी। मां की बात सुनकर कादर फेंकी हुई किताबें वापिस ले आए। और वादा किया कि वो पढ़ाई पूरी करेंगे। बेटे की जिंदगी संवारने में मां का बड़ा हाथ रहा था लेकिन वो लंबे समय अपने बेटे के साथ नहीं रह पाई। कादर की मां को बीमार थी और वह यह बात अपने बेटे से छिपाती थी। एक दिन कादर जैसे ही घर आए, उन्होंने देखा कि उनकी मां खून की उल्टियां कर रही हैं। ये देखकर कादर के होश उड़ गए। उन्होंने मां से पूछा कि ये क्या है और तुमने मुझे इस बारे में क्यों नहीं कुछ बताया था। मां ने जवाब दिया कि ये कुछ भी नहीं लेकिन उनकी उल्टियां रुक नहीं रही थीं। जब तक कादर डॉक्टर को लेकर आए तो देर हो चुकी थी। मां की सांसे चलनी बंद हो चुकी थी। कम उम्र में मां का साया उनसे उठ गया कादर पूरी तरह टूट गए। उनके फिल्मों में लिखे गए डायलॉग में भी मां की कमी साफ झलकती थी।

नकल करने की आदत कादर को बचपन से थी। वह कब्रिस्तान में जाकर दो कब्रों के बीच बैठ खुद से बातें करते हुए फिल्मी डायालॅग्स बोलते थे। वहीं पर उन्हें अशरफ खान ने देखा था जिन्हें स्टेज ड्रामा के लिए 8 साल के लड़के की तलाश थी। उन्होंने कादर खान को नाटक में काम दिया बस यहीं से कादर खान की किस्मत बदल गई।

ड्रामा करने के साथ साथ वह पढ़ाई भी करते रहे। उन्होंने मुंबई के इस्माइल युसुफ कॉलेज से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद उन्होंने सिविल इंजीनियरिंग में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। बहुत कम लोग जानते थे कि कादर मुंबई के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में लेक्चरर भी थे लेकिन कादर ने थिएटर नहीं छोड़ा। उनका एक ड्रामा ताश के पत्ते बहुत फेमस हुआ था। दूर-दूर से लोग उनके इस ड्रामे को देखने के लिए आया करते थे। इसी दौरान एक दिन कादर कॉलेज में पढ़ा रहे थे, तभी उनके पास अचानक दिलीप कुमार का कॉल आया। कादर ने कॉल उठाया और उधर से आवाज आई, 'मैं दिलीप कुमार बोल रहा हूं और मैं भी आप के ड्रामे ताश के पत्ते को देखना चाहता हूं।' कादर उस फोन को सुनकर एक दम शांत हो गए। और बाद में उन्होंने एक शर्त रखते हुए कहा कि आप ड्रामा देख सकते हैं लेकिन आपको सही समय पर आना होगा क्योंकि गेट बंद होने के बाद वो दोबारा नहीं खोला जाता और दूसरा ये कि आपको पूरा ड्रामा बैठ कर देखना होगा। कादर खान के इन दोनों शर्तों को दिलीप साहब ने मान लिया और दूसरे दिन समय से आधे घंटे पहले ही वो ड्रामा देखने के लिए पहुंच गए।

दिलीप साहब को कादर का ड्रामा इतना पसंद आया कि उन्होंने शो में ही इस बात की अनाउंसमेंट कर दी कि वो फिल्मों में कादर खान को काम देंगे। इसके बाद दिलीप ने कादर को दो फिल्मों में साइन किया। कादर खान ने स्क्रिप्ट राइटर के तौर पर भी शुरूआत की। उन्हें इंदर राज आनंद के साथ जवानी दीवानी की स्क्रिप्ट लिखने के लिए कहा। इसके लिए कादर खान को 1500 रुपये मिले थे। 80 के दशक में उन्होंने कई कहानियां लिखी और कई फिल्मों में वह एक्टिंग करते दिखें। बेशक उनकी शक्ल-सूरत हीरो वाली नहीं थी लेकिन उनकी एक्टिंग ने उन्हें एक अलग ही पहचान दी। गोविंदा के साथ उनकी जोड़ी खूब हिट रही।

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लेकिन अमिताभ बच्चन की वजह से कादर खान को काम मिलना बंद हो गया था। इस बात का खुलासा उन्होंने एक इंटरव्यू में खुद किया था दरअसल, उन्हें साउथ इंडियन फिल्म डायरेक्टर ने कुछ डायलॉग के बारे में बात करने को बुलाया था। तभी डायरेक्टर ने कहा कि आप सर जी से नहीं मिले तो कादर खान ने कहा कौन सर जी। इस पर उन्होंने अमिताभ बच्चन की तरफ इशारा करते कहा कि ये हैं सर जी। उस समय हर कोई अमिताभ बच्चन को सर जी कहकर बुलाने लगा था, लेकिन कादर खान का कहना था, 'मैं कैसे उनको सर जी कह सकता हूं। वो मेरे लिए एक दोस्त और छोटे भाई के जैसे हैं।' बस उसके बाद से कादर खान को ना कोई फिल्म मिली ना ही किसी फिल्म का डायलॉग लिखने को मिला। हालांकि कादर खान अमिताभ के साथ भी फिल्मों में नजर आ चुके थे।

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कादर खान आखिरी दिनों में सुप्रान्यूक्लियर पाल्सी नाम की एक लाइलाज बीमारी से जूझ रहे थे। साल 2018 को उन्हें कनाडा केएक अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां वो अपने बेटे-बहू के पास इलाज कराने के लिये लिये आए थे। वह 28 दिसंबर को अस्पताल में भर्ती हुए लेकिन 31 दिसंबर 2019 को उनका निधन हो गया। भले ही आज वो इस दुनिया में नहीं है लेकिन फैंस के दिलों में वह आज भी जिंदा हैं और रहेंगे।
 

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