देश भर में दिवाली का त्यौहार बड़े ही हर्षौल्लास से मनाया जाता है। यह एक ऐसा त्यौहार है जिसका हर किसी को बेसब्री से इंतजार रहता है। दिपावली से पहले नरक चतुरथी का पर्व मनाया जाता है, तो वहीं दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा और भाई दूज की धूम शुरु हो जाती है। इन सभी पर्व का अपना अलग और विशेष महत्व है। दिवाली के अगले दिन ही गोवर्धन पूजा होती है। इस दिन महिलाएं गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति तैयार करती हैं और उसके आसपास श्रीकृष्ण, ग्वाले आदि की आकृति बनाकर उसकी पूजा करती हैं। गोवर्धन पूजा भगवान विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण से जुड़ा हुआ पर्व है। यहां आपको गोवर्धन पूजा की कथा, श्री कृष्ण से गोवर्धन पूजा का संबंध और मथुरा में खास तरीके से गोवर्धन पूजा के बारे में बताने जा रहे हैं।
गोवर्धन की कथा जरूर सुननी चाहिए
घर की सभी महिलाएं या फिर आस-पड़ोस की 4-5 महिलाएं मिलकर पूजा करना मुश्किल काम नहीं है। इस बात का आपको ज्ञान होना चाहिए कि पूजा के दौरान हर एक विधि को अच्छे तरीके से करना काफी ज्यादा जरूरी होता है। ऐसे में आप गोवर्धन पूजा के दौरान कथा जरुर सुनें।
गाय के गोबर से बनाया जाता है गोवर्धन पर्वत
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि करने के बाद शुभ मुहूर्त में गाय के गोबर से गिरिराज गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाएं और साथ ही पशुधन यानी गाय, बछड़े आदि की आकृति भी बनानी चाहिए। इसके बाद धूप-दीप आदि से विधिवत पूजन करना चाहिए। भगवान कृष्ण को दुग्ध से स्नान कराने के बाद उनका पूजन भी करना चाहिए।
गोवर्धन पर्वत पर पेड़ पौधे लगाना भी है जरूरी
इस बात का विशेष रूप से ख्याल रखें कि वहीं लोग इस पूजा में गोवर्धन पर्वत बनाएं जिन्हें पहले से बनाने आता हो। पूजा में किसी भी तरह की गलती नहीं करनी चाहिए। पर्वत बनने के बाद आप इस पर पेड़ अवश्य ही लगाएं।
गिरिराज चालीसा का करें पाठ
इस पूजा में गिरिराज चालीसा का पाठ अवश्य ही करना चाहिए साथ ही गिरिराज जी की आरती भी करें। ऐसा करने से ही पूजा को संपूर्ण माना जाता हैं।
ब्राह्मण को खाना अवश्य खिलाएं
गोवर्धन पूजा के दिन घर में या फिर मंदिर में ब्राह्मण भोज का आयोजन जरूर करना चाहिए। ऐसा कहा जाता है कि ऐशा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। गोवर्धन पूजा के दिन यदि आप बिना किसी गलती के नियमों का पालन करते हुए विधि विधान के साथ पूजन करती हैं तो आपके घर में सदैव खुशहाली बनी रहेगी।