कोरोना वायरस के केस भारत में भी तेजी से बढ़ रहे हैं, जिनकी गिनती करीब 4700 के आस-पास है। पूरे विश्व की बात करें तो कोरोना के करीब 14 लाख मरीज सामने आ चुके हैं, जिनमें 3 लाख से ज्यादा लोग ठीक भी हुए हैं लेकिन अब सवाल यह उठ रहा है कि जब दवा या कोई वैक्सीन अभी खोजी नहीं गई तो तो मरीज ठीक कैसे हो रहे हैं और जब इलाज संभव है तो इतनी कम संख्या में लोग क्यों ठीक हो रहे हैं?
तो चलिए बताते हैं आपको कोरोना वायरस से पूरी 'रिकवरी'
दरअसल, कोरोना वायरस से 'रिकवरी' के लिए कई मानक तय किए गए हैं। किसी भी व्यक्ति को इस वायरस से मुक्त तभी माना जाता है, जब संक्रमित व्यक्ति में ये मानक पूरे पाए जाते हैं।
इलाज के लिए क्या कर रहे हैं डॉक्टर?
.कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद करीब 7 से 15 दिन के भीतर इसके लक्षण दिखना शुरु होते हैं
.बुखार आने का मतलब है कि उसके शरीर में कोरोना वायरस ने लड़ना शुरु कर दिया है।
.जब अस्पताल में मरीज का इलाज शुरू किया जाता है, तो सबसे पहले लक्षणों को रोकने की कोशिश की जाती है। उसे आइसोलेशन वार्ड में ही बुखार, खांसी और दर्द आदि की दवाएं देकर आराम पहुंचाने की कोशिश की जाती है।
.जिन मरीजों की इम्यूनिटी अच्छी होती है, उनका शरीर इस आइसोलेशन पीरियड के दौरान ही वायरस से लड़ने में सफलता प्राप्त करता है और वो ठीक हो जाते हैं।
.कोरोना वायरस से ठीक होने वाले मरीजों को दवाएं नहीं, बल्कि उनका अपना इम्यून सिस्टम ही ठीक कर रहा है।
इम्यून सिस्टम ही करता है मरीज का इलाज
हर वायरस खास तत्व छोड़ता है, जिसे एंटीजेन कहते हैं और हमारे शरीर का इम्यून सिस्टम ये पहचान करता है कि किसे मारना है और किसे छोड़ना है। शरीर में कोरोना वायरस के पहुंचने के बाद ही मरीज का शरीर इंफेक्शन से लड़ने के लिए खास प्रोटीन बनाने लगता है, जिन्हें एंटीबॉडीज कहा जाता है। ये एंटीबॉडी सभी वायरसों को अपनी गिरफ्त में लेते हैं, ताकि वे अपनी संख्या बढ़ा न सकें। इससे धीरे-धीरे व्यक्ति के शरीर में वायरस के इंफेक्शन से दिखने वाले लक्षण कम होने लगते हैं। जब ये एंटीबॉडीज सभी वायरस को पूरी तरह खत्म कर देते हैं और टेस्ट में ये वायरस नेगेटिव पाया जाता है, तो मरीज को पूरी तरह रिकवर मान लिया जाता है।
ठीक होने के बाद भी मरीज को क्यों रखा जाता है आइसोलेट?
कोरोना वायरस से ठीक हो चुके मरीजों को इलाज के बाद भी 7 से 14 दिन तक आइसोलेशन में रहने की सलाह दे रहे हैं ऐसा इसलिए क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि मरीज के लक्षण तो ठीक हो जाते हैं, मगर मरीज के शरीर में कुछ संख्या में वायरस मौजूद होते हैं जो दोबारा अटैक कर सकते हैं इसलिए व्यक्ति को कुछ दिनों तक आइसोलेशन में रखकर ये देखा जाता है कि वो पूरी तरह से संक्रमण मुक्त हो चुका है।
4 में से 1 शख्स को वेंटिलेटर की जरूरत
मगर जिन मरीजों में निमोनिया के गंभीर लक्षण दिखते हैं या जिन्हें सांस लेने में परेशानी होती है या जो पहले से ही किसी गंभीर बीमारी की चपेट में हैं, उन्हें तुरंत आईसीयू वॉर्ड में भर्ती किया जाता है। अगर किसी मरीज की स्थिति गंभीर है, तो ऑक्सीजन मास्क के द्वारा उसे ऑक्सीजन दी जाती है या स्थिति के अनुसार, वेंटिलेटर पर रखा जाता है।
बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार, हर 4 में से 1 व्यक्ति को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है। वेंटिलेटर पर मरीज के अपने इम्यून सिस्टम के इस वायरस से लड़ने तक उसे कृत्रिम उपकरणों द्वारा जीवन दिया जाता है। जब मरीज का इम्यून सिस्मट धीरे-धीरे वायरस से लड़ने में सक्षम हो जाता है, तो उसे फिर सामान्य ट्रीटमेंट दिया जाने लगता है।
दवा से जुड़ा निर्देश
.यह वायरस बिलकुल नया है इसलिए डॉक्टरों को इलाज के दौरान विशेष सावधानी बरतने की हिदायत दी गई है।
.किस तरह की स्थिति में कौन सी दवाओं का प्रयोग करना है, इसके बारे में स्वास्थ्य विभागों ने पूरे दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
.कोरोना वायरस के लक्षण दिखने पर किसी भी व्यक्ति को खुद से किसी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इसके परिणाम नुकसानदेह हो सकते हैं।
तो अब आपको पता चल गया होगा कि जितना आपका इम्यून सिस्टम मजबूत होगा उतना ही आप इस वायरस से बचे रहेंगे।