
लड़कियां अच्छे पति की इच्छा इसलिए करती है ताकि उनका जीवन खुशी से निकल सके, वह अपनी इच्छाओं को पूरा कर सकें। आज की महिलाएं अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपने पति व परिवार पर निर्भर नही करती है। वह अपने सपने को खुद ही पूरा करने की हिम्मत रखती हैं। इस बात को शिमला की रहने वाले प्रिया झिंगन ने पूरी तरह से सच किया है। जब उनकी सहेलियां स्कूल में फौजी अफसर को देखकर कहती थी कि वह ऐसे ही अफसर से शादी करेंगी तो उन्होंने कहा कि वह ऐसे अफसर से शादी न कर खुद फौज की अफसर बनेगी। अपनी इसी बात को साबित करते हुए प्रिया इंडियन आर्मी की पहली महिला अफसर बनी थी। किसी को यकीन नही था कि वह मजाक में की हुई अपनी इस बात को सच साबित कर देगीं।
प्रोग्राम में पहुचें एडीसी को देख मिली थी प्रेरणा
प्रिया के अफसर बनने के सपने की शुरुआत स्कूल में हुए एक कार्यक्रम में हुई। स्कूल में हुए प्रोग्राम में राज्य के गर्वनर के साथ एडीसी पहुंचे थे। जिन्हें देख कर उनकी सारी सहेलियां उस अफसर के बारे में बात करने लगी। उऩ्होंने कहा कि वह इस तरह के अफसर पति से शादी करेगीं, तब प्रिया ने कहा कि वह खुद अफसर बनेगी। इतना ही नही उनके पिता आर्मी में अफसर थे, तो वह हमेशा से ही सेनी की इस वर्दी को पहनना चाहती थी। इस दिन से उऩ्हें अपने जीवन का लक्ष्य प्राप्त हो गया।

बचपन में अपनी टोली की थी सरदार
पिता आर्मी में थे, जिस कारण घर में काफी अनुशासन था। उसके बाद में भी प्रिया घर में काफी शैतानी करती थी, स्कूल में भी वह अपनी शरारतों के कारण काफी मशहूर थी। वह शुरु से ही लड़कों की तरह रहना पसंद करती थी। वह एक बार जो ठान लेती थी उसे करके ही दम लेती थी। वह लड़कों की तरह पेड़ों व रस्सियों पर चढ़ जाती थी।

महिला भर्ती न होने पर सेना प्रमुख को लिख दिया था पत्र
स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने वकालत की पढ़ाई शुरु कर दी। जब वह ग्रेजुएशन के तीसरे साल में थी, तब एक दिन अखबार में भारतीय सेना की भर्ती के बारे में लिखा हुआ था। लेकिन उन्हें यह पढ़ कर दुख हुआ कि उसमें सिर्फ पुरुष के बारे में ही लिखा था। 1992 में महिलाओं को थल सेना में भर्ती नही दी जाती थी। वहां सिर्फ महिला डॉक्टर की नियुक्ती की जाती थी। लेकिन अपने सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने कदम उठाने की सोची। तब उन्होंने सेना प्रमुख को चिट्ठी लिख दी। जिसमें उन्होंने लिखा कि लड़कियां लडकों से कम नही होती है, उन्हें भी सेना में जाने का अधिकार होना चाहिए। इस पत्र के जवाब में उन्हें कहा गया कि भारतीय सेना इस बात पर विचार कर रही है, कुछ ही समय में महिलाओं की नियुक्ति शुरु हो जाएगी।
सितंबर 1992 में नए अध्याय की हुई शुरुआत
एक साल गुजर चुका था, लेकिन सेना में महिलाओं की भर्ती शुरु नही हुई थी। पिता के कहने पर एक दिन वह अदालत बैठी तो उन्होंने अखबार में भर्ती के आवेदन के बारे में पढ़े। तब उनके जीवन का नया अध्याय शुरु हुआ। भारतीय सेना की ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी ज्वाइन करने वाली प्रिया झिंगन पहली महिला कैडेट थी। चेन्नई एकेडमी में प्रवेश लेने वाली कैडेट नंबर 001।

इतिहास रचने के लिए साहा असहनीय दर्द
जैसे ही प्रिया की ट्रेनिंग शुरु हुई उसके साथ ही उन्हें कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जब वह चेन्नई ट्रेनिंग के लिए निकल रही थी अचानक ही उनके पेट में असहनीय दर्द होने लगा। तब उन्हें पता लगा कि उनके गुर्दे में समस्या है तो उन्हें लगा कि अब उन्हें ट्रेनिंग अकादमी से रेलीगेट कर देगें। तब उन्होंने बिना सोचे समझे अस्पताल से छुट्टी लेकर चली गई। ट्रेनिंग में रोज उन्हें ढाई किलोमीटर दौड़ना पड़ता था, इसके बाद भी उन्होंने अपने दर्द को खुद पर हावी नही होने दिया।
ट्रेनिंग के दौरान महिला होने के बाद भी उनके साथ पूरी सख्ती बरती जाती थी। जवान में महिला को अपना सीनियर अपनाने की एक झिझक थी, इसलिए वह बाकी अफसरों को सलाम करते थे, लेकिन उन्हें नही। इसके बाद उऩ्होंने 1993 में सिल्वर मैडल के साथ अपनी ट्रेनिंग को पूरा किया। तब वह सेना की पहली महिला अफसर बनी उसके बाद उन्हें जज एडवोकेट जनरल के दफ्तर में तैनात किया गया।

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