वो तस्वीर तो आपको याद होगी जब एक पिता ने अपनी अफसर बिटिया की सफलता पर गर्व करते हुए उसे सैल्यूट किया था। डीएसपी पद पर तैनात अपनी बेटी को सलाम करने वाले इंस्पेक्टर श्याम सुंदर ने लाखों दिलों में जगह बना ली थी। पिता और बेटी की यह प्यारी सी तस्वीर लोगों के जेहन में उतर गई थी। वहीं अगर हम कारगिल युद्ध की पहली महिला पायलट गुंजन सक्सेना की बात करें तो उनका पिता की जिक्र अपने आप ही हो जाता है।
गुंजन के पिता को गुंजन के काम काम के जोखिम के बारे में अच्छे से पता था लेकिन उन्होने अपनी बेटी के काम में कभी भी दखल नही किया और उसे पूरी निष्ठा से काम करने की स्वतंत्रता दी। अब सवाल यह है कि हमारे समाज में कितने ऐसे पिता हैं जो अपनी बेटियों को उनके लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता करते हैं? हमारे समाज में कितनी बेटियां गर्व से कह सकती हैं कि उनके पिता ने उन्हें शादी के लिए मजबूर नहीं किया बल्कि हर कदम पर उसका साथ दिया। आज हम आपको बताने चाहते हैं कि कैसे एक पिता अपनी बेटी के लिए मजबूत ढाल बन सकते हैं।
बेटी के साथ एक समान व्यवहार करें
हमारे समाज में आज भी बेटियों को पराया धन या परिवार पर बोझ के रूप में देखा जाता है। लेकिन पिता इस भेदभाव को खत्म कर सकते हैं। अपनी बेटी को कभी यह एहसास ना कराएं कि वह लडकी है और उसे आगे बढ़ने का हक नहीं है। वह भी उतनी ही सम्मान और स्वतंत्रता की हकदार है जितना की आपका बेटा।
उसके सपने पूरा करने में दे साथ
हमारे समाज में लडकियों को वो ही सपना देखने की इजाजत होती है, जिसमें वह सुरक्षित रह सके। इसके अलावा, एक महिला का करियर इस बात पर भी निर्भर करता है कि आगे जाकर उसके ससुराल वाले इसे स्वीकार करेंगे या नहीं। लेकिन हर पिता को यह बात जरूर समझनी चाहिए कि सपनों का कोई लिंग नहीं होता। आगे बढने के लिए केवल प्रतिभा, जुनून और कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। अगर आपकी बेटी के पास ये सब है तो सपनों को हासिल करने से न रोकें। आज वो आपकी बेटी है और कल वो भी एक ऐसी महिला होगी जिसे देश की कई बेटियों को प्रेरणा मिलेगी
बेटी को दो सुरक्षा का भरोसा
पिता ही है जो अपनी बेटी को हर काम में सलाह देता है। एक बाप हमेशा अपनी बेटी की हिफाज़त को ही अपना धर्म मानता है, घर के अंदर और घर के बाहर भी वह अपनी बेटी की मदद के लिए हमेशा मौजूद रहता है और इसलिए बाप-बेटी का रिश्ता इतना मज़बूत होता है। बस इसीलिए बाप को बेटी अपनी जान से भी ज्यादा समझती है। हर मुसीबत में साथ देने के साथ ही पिता बेटी के साथ हर कदम से कदम मिलाकर चलता है।
उसके लक्ष्य में शादी को ना बनाएं बाधा
हम जिस समाज में रहते हैं, उसमें पिता पर बेटी की शादी की भी जिम्मेदारी होती है। लेकिन हर पिता को समझना चाहिए की शादी एक विकल्प है, दायित्व नहीं। आप अपनी बेटी को तय करने दीजिए कि वह शादी करना चाहती है या नहीं। उसे अपने जीवन के लक्ष्यों को तय करने के लिए स्वतंत्र करें और जब तक वह चाहें तब तक उनके लिए प्रयास करें।
असफल होने पर भी उसका समर्थन करें
असफलता हमारी सफलता की लड़ाई का एक हिस्सा है। लेकिन महिलाओं के मामले में अगर वह असफल हो जाती है तो उसे नौकरी छोड़कर श्चादी करने के लिए कह दिया जाता है। भारतीय समाज में, कई माता-पिता पहले से ही बेटी की शिक्षा पर पैसा खर्च करने से हिचकते हैं। इस बीच, अगर वह विफल हो जाती है, तो दूसरा मौका मिलने की संभावना बहुत कम होती है।शीर्ष पर पहुंचने से पहले कई उतार-चढ़ावों से गुजरना पड़ता है, ऐसे में पिता ही हैं जो उन्हे आगे सबक सीखने और सफल होने के लिए फिर से प्रयास करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं।