भारत की एकता भ्याण ने सत्र का सर्वश्रेष्ठ 20 . 12 मीटर का थ्रो फेंककर विश्व पैरा एथलेटिक चैम्पियनशिप में महिलाओं की एफ51 क्लब थ्रो स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल किया है। हिसार निवासी एकता भ्याण बनना तो डॉक्टर चाहती थी पर एक सड़क हादसे ने उनको सब कुछ तबाह कर दिया। हिम्मत की मिसाल इस पैरा एथलीट हार नहीं मानी और आज वह देश का नाम रोशन कर रही हैं। चलिए जानते हैं उनकी हिम्मत की कहानी।
पैरा एथलीट एकता देश को डिस्कस थ्रो और क्लब थ्रो में रिप्रेजेंट करती हैं। वैसे तो वह डॉक्टर बनने का सपना लेकर दिल्ली आई पर उनकी किस्मत में कुछ और ही लिखा था। कोचिंग के पहले दिन जब वह कैब में निकली तो हरियाणा सीमा पर एक ट्रक उनकी कैब पर उलट गया। जब एकता की आंखे खुली तो वह अस्पताल में थी जहां वह दर्द से तड़प रही थी। डॉक्टरों ने बताया उनकी नेक बोन में चोट आई है, जिसका असर स्पाइनल कॉर्ड पर पड़ा है।
इस हादसे के बाद एकता कभी चल नहीं पाई, शरीर का नीचला हिस्सा पैरेलाइज़्ड होने का कारण व्हील चेयर ही उनका सहारा बन गई। उस हादसे में छह छात्रों की मौत हो गई थी, ऐसे में एकता को जिंदगी ने एक और माैका दिया था जिसे वह गंवाना नहीं चाहती थी। एक्सीडेंट के करीब एक साल बाद एकता ने दोबारा पढ़ाई शुरू की। इस बार उन्होंने इंग्लिश ऑनर्स लिया और साथ में कॉम्पिटिटिव एग्जाम की तैयारी करती रही।
एकता की मेहनत रंग लाई और उन्हें हरियाणा सरकार में बतौर ऑडिटर नौकरी मिल गई। इसके बाद उन्हें कोच अमित सिरोहा ने डिस्कस थ्रो और क्लब थ्रो में पार्टिसिपेट करने का प्रस्ताव दिया, इसके बाद से उनकी जिंदगी में नया मोड़ आया। एकता ने016 में पहला नेशनल मेडल मिला, इसके बाद 2018 में एशियन गेम्स के क्लब थ्रो इवेंट में पहला इंटरनेशनल गोल्ड मेडल अपने नाम किया। एकता को हरियाणा के सर्वोच्च खेल पुरस्कार ‘भीम अवार्ड’ से सम्मानित किया जा चुका है। सके अलावा एकता को भारत सरकार की तरफ से एम्पॉवरमेन्ट ऑफ पर्सन विथ डिसेबिलिटी के नेशनल अवार्ड से नवाज़ा गया। यह उनकी मेहनत और हिम्मत है जो उन्हे इस मुकाम तक ले आई है।