देश के कोने कोने से आए हजारों कला प्रेमी बल्देव कस्बे के दाऊ जी मन्दिर का हुरंगा देखकर आनन्द और श्रद्धा से भर गए। दाऊ जी मन्दिर का हुरंगा वास्तव में देवर भाभी के बीच खेली जाने वाली होली है जिसमें कृष्ण के बडे़ भाई बल्देव की पत्नी रेवती मइया की सखियों को कृष्ण और उनके साथी गोप टेसू के रंग से सराबोर करने का प्रयास करते हैं और रेवती मइया की सखियां कृष्ण और उनके साथी गोपों के गीले कपडे़ फाड़कर उसके कोड़े बनाकर उनकी पिटाई करते हैं तथा अपने ऊपर रंग डालने से रोकते हैं।
ब्रज की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में बलदेव के दाऊ जी मन्दिर की होली विशेष मानी जाती है। मथुरा से 25 किलोमीटर दूर खेली जानेवाली यह एक मात्र होली है जो मन्दिर के चौक में देवर भाभी के बीच खेली जाती है तथा इस होली में कल्याणदेव वंशज परिवार के लोग ही भाग लेते हैं। इस खेल के लिए कुंतल टेसू के फूल, गुलाब के फूल की पंखुड़ी का इस्तेमाल होता है। टेसू के रंग को गहरा करने के लिए उसमें फिटकरी, केसरिया रंग, चूना मिलाया जाता है।
इस होली को हुरंगा कहा जाता है। यह होली पूर्वान्ह लगभग 11 बजे समाज गायन से शुरू होती है। मन्दिर के पट खुल जाते हैं तथा लगभग एक घंटे तक समाज गायन होता है। इसके बाद मन्दिर के पट बन्द हो जाते हैं तथा मन्दिर के चौक में नये लहंगा फरिया पहने गोपियां इकट्ठा हो जाती हैं। उधर होरी है होरी है कहते हुए हुरिहार मस्ती में चौक में बाल्टी लिये आ जाते हैं।
इस बीच कृष्ण बल्देव के स्वरूप चौक में बने मंच पर विराजमान हो जाते है।चौक में बनी हौदियों से टेसू का रंग लेकर वे उसके छीटे गोपियों पर डालते हैं तो वे ऐसा करने से मना करती हैं और कुछ गोपियां तो मस्ती में नृत्य भी करने लगती हैं और रसिया के स्वर गूंज उठते हैं:- आज बिरज में होरी रे रसिया। होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया।। आज बिरज म..
गोपिकाएं अपने नये कपड़ों पर रंग डालने का विरोध करती हैं तो हुरिहार उनके ऊपर और रंग डालने लगते हैं और छीना झपटी में दोनो ही रंग से सराबोर हो जाते है तो गोपिया हुरिहारों के वस्त्र फाड़कर उन्ही गीले कपड़ों से हुरिहारों की पिटाई करती हैं और मन्दिर में कृष्ण बल्देव की झंडी लिए हुरिहार घूमते हैं और गायन , वादन तथा नृत्य की त्रिवेणी बहने लगती है।
मन्दिर की छत से रंग बिरंगे गुलाल की वर्षा उ़ड़कर इन्द्रधनुषी वातावरण बनाती है तथा शहनाई वादन के मध्य रसिया के स्वर फिर गूंजने लगते हैं:- नन्द के तो ते होरी तब खेलूं मेरी पहुंची में नग जड़वाय। हुरंगा की चरम परिणति में हुरिहार हौदियों से रंग भरकर गोपियों पर डालते हैं तो गोपियां उनके वस्त्र फाड़कर कोड़ों से उनकी पिटाई करती है। उस समय का द्दश्य बड़ा ही मनोहारी बन जाता है जब हुरिहार अपने किसी अधेड़ साथी को टांगकर गोपियों के पास लाते हैं और गोपियां उसकी कोड़ों से पिटाई करती हैं । इस बीच एक गोपी दूसरी गोपी से कहती है:- ऐसो चटक रंग डारौ श्याम मेरी चूनर में लग गयो दाग री। ऐसो....
हुरंगे के पूर्ण यौवन में पहुंचने पर गोपिया झंडे की लूट करती है वे पहले एक झंडे की लूट करती हैं फिर दूसरे झंडे की लूट करती हैं और लगभग दो घंटे में हुरंगा समाप्त हो जाता है।हुरिहार अपनी विजय का दावा करते हुए गाते हैं हारी रे गोपी घर चली जीत चले ब्रजराज..... और अपनी विजय का दावा करते हुए गोपियां गाती हैं हारे रे गोप घर चले जीत चली ब्रज नारि। क्षीर सागर की परिक्रमा के साथ दोनो ही पक्ष अपने घर चले जाते हैं। जिलाधिकारी पुलकित खरे ने बताया कि इस होली की व्यवस्थाओं को पूर्व में वह वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक शैलेष कुमार पाण्डे के साथ पूर्व में कई बार देख चुके हैं तथा पाकिर्ंग से लेकर सुरक्षा व्यवस्था को सुनिश्चित कर लिया गया है।संवेदनशील स्थानों पर सादा वर्दी में महिला एवं पुरूष पुलिसकर्मी लगाए गए हैं।