एक तरफ जहां देश में महिलाओं व लड़कियों को सुरक्षित माहौल देने की बात की जाती है वहीं दूसरी तरफ बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक ऐसा फैसला सुनाया है, जिसे सुनने के बाद हर कोई हैरान हो जाएगा। दरअसल, हाई कोर्ट की नागपुर बेंच की न्यायमूर्ति पुष्पा गनेडीवाला ने 19 जनवरी को बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक 12 वर्षिय लड़की के साथ हुए यौन उत्पीड़न मामले में फैसला देते हुए कहा था कि कपड़ों के उपर से ब्रेस्ट को छूना यौन शोषण नहीं कहा जा सकता इसलिए लिए स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट होना बहुत जरूरी है।
क्या था मामला?
गौरलतब है कि यौन उत्पीड़न मामले में IPC धारा - 354 के तहत कम से कम 1 साल की कैद का प्रावधान है, जबकि पॉक्सो कानून के तहत 3 साल की कैद होती है। अदालत में अभियोजन पक्ष की दलीलों और बच्ची के बयान के मुताबिक, यह घटना दिसंबर 2016 में हुई थी, जब नागपुर में आरोपी सतीश पीड़िता को खाने के चीज के बहाने घर ले गया... ब्रेस्ट को पकड़ा और उसे निर्वस्त्र करने की कोशिश की।
कोर्ट ने कहा कि अगर आरोपी महिला या किसी लड़की को उसकी मर्जी के खिलाफ छूता है तो IPC धारा 354 (शीलभंग) के तहत मुकदमा चलाया जाएगा। सिर्फ कपड़ों के ऊपर से छूना भर यौन हमले की परिभाषा नहीं है। इसलिए उन्होंने आरोपी को पोक्सो ऐक्ट के तहत बरी कर दिया है।
स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट जरूरी: बॉम्बे हाई कोर्ट
19 जनवरी को फैसला देते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि 'त्वचा से त्वचा का संपर्क' हुए बिना, नाबालिग पीड़िता का स्तन स्पर्श करना, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (पोक्सो) के तहत यौन हमला नहीं कहा जा सकता। यह IPC धारा- 354 के तहत महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने का अपराध बनता है, जिसके तहत 1 साल की सजा और पोक्सो ऐक्ट के तहत 3 साल की सजा मिलती है। पोक्सो ऐक्ट केस के लिए मजबूत साक्ष्य और गंभीर आरोप होना चाहिए क्योंकि इसमें सजा का प्रावधाव सख्त है।
पोक्सो में यौन हमला उसे माना जाता है जब कोई यौन मंशा के साथ लड़की के निजी अंगो को छुता है, जिसमें संभोग किए बगैर शारीरिक संपर्क शामिल हो।
सेशन्स कोर्ट ने सुनाई थी 3 साल की सजा
बता दें कि सेशन्स कोर्ट ने पोक्सो ऐक्ट के तहत 12 साल की लड़की के केस में 39 साल के आरोपी को 3 साल की सजा सुनाई थी जिसपर संशोधन करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट ने उसे बरी कर दिया। हालांकि IPC की धारा 354 के तहत उसकी सजा बरकरार रखी जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फैसले पर रोक
हालांकि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बुधवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के उस विवादित आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रेन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस एक्ट (POCSO) कानून के तहत आरोपी को बरी कर दिया गया था।