कहते हैं अगर मन में कुछ करने की चाह हो तो भगवान भी हमें वो चीज जरूर देता है। आपके मन में हमेशा उस सपने को पूरा करने की चाह होनी चाहिए। जरूर नहीं कि अगर आपकी आर्थिक हालत ठीक नहीं है तो आप सपने नहीं देख सकते। जब तक आप सपने नहीं देखेंगे तब तक आप उसे पूरा करने के लिए मेहनत नहीं कर सकते हैं। इसका जीता जागता उदाहरण है हिमा दास। जो एक ऐसे परिवार से थीं जिनकी आर्थिक हालत बिल्कुल भी ठीक नहीं थी लेकिन बावजूद इसके हिमा दास ने दुखी होने की बजाए अपने सपने पर काम किया और आज उन्होंने खेल जगत के साथ-साथ एक बार फिर से देश का मान बढ़ा दिया है।
हिमा दास बनीं DSP
ढिंग एक्सप्रेस हिमा दास 21 साल की उम्र में ही असम पुलिस में उप अधीक्षक (DSP) बन गई हैं। इसकी एक तस्वीर भी सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हो रही है। हिमा दास को आज किसी पहचान की जरूरत नहीं है सब जानते हैं वह भारत की एथलीट हैं और वह देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक अपना नाम रोशन कर चुकी हैं। वहीं हाल ही में हिमा दास की पुलिस वर्दी में एक तस्वीर लोग काफी पसंद कर रहे हैं। समारोह में असम के मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल ने हिमा को नियुक्ति पत्र सौंपा। इस मौके पर पुलिस महानिदेशक समेत शीर्ष पुलिस अधिकारी और प्रदेश सरकार के अधिकारी मौजूद थे। लेकिन इतनी सफलता पाना हिमा दास के लिए आसान नहीं था। तो चलिए आपको हिमा दास के वो दिन याद करवाते हैं जब वो एक आम लड़की थी।
ऐसा था सफर
पहले आपको यह बता दें कि हिमा दास लिस की नौकरी के साथ खेलों में अपना करियर भी जारी रखेंगी। हिमा असम में जन्मी हैं। हिमा बाकी लड़कियों की तरह ही साधारण परिवार में जन्मी थीं। हिमा अपने भाई बहनों में से सबसे छोटी हैं। हिमा ने इस अंधेरी भरी जिंदगी में न सिर्फ खुद का बल्कि अपने गांव का भी नाम रोशन कर दिखाया है। हिमा का परिवार खेती करके ही अपना पेट पालता था।
इस तरह शुरू हुआ एथलीट बनने का सफर
एक तरफ जहां पिता खेती करते थे तो वहीं दूसरी ओर हिमा लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थीं। हिमा उस समय भी लड़कों को पीछे छोड़ देती थी। हिमा का यह अंदाज देख कोच निपोन दास तो हैरान रह गए जिसके बाद उन्होंने हिमा को एथलीट बनने की सलाह दी।
नंगे पांव दौड़ती थी हिमा दास
हिमा दास को कोच ने एथलीट बनने की तो सलाह दे दी थी लेकिन उनके पास इतना पैसा नहीं था वह इन सब का खर्च उठा सके ऐसे में कोच ने उनकी काफी सहायता की। हिमा दास हालातों के आगे कभी झुकी नहीं और यही कारण है कि आज इंटरनेशनल लेवल तक खिलाड़ी उनका नाम सुनते ही कांप उठते हैं। एक समय ऐसा भी था जब हिमा दास के पास पांव में पहनने के लिए जूते नहीं थे। वह नंगे पैर ही रेस में भागती थी और उनकी तेज दौड़ देख लड़के भी हैरान रह जाते थे।
सफलता मिली लेकिन पीछे मुड़ कर नहीं देखा
आपको बता दें कि हिमा दास ने न सिर्फ देश में बल्कि विदेश तक अपनी पहचान बनाई है। वह पहली भारतीय महिला एथलीट हैं जिन्होंने किसी भी फॉर्मेट में गोल्ड मेडल जीता है। उन्होंने IAAF विश्व U20 चैंपियनशिप में 51.46 सेकंड में यह उपलब्धि अपने नाम की। बता दें कि हिमा साल 2019 में पांच स्वर्ण पदक जीत चुकी हैं। हिमा ने 400 मीटर ट्रैक इवेंट रेस 51.46 सेकंड में पूरी की।
वक्त बदला और बनीं Adidas की ब्रांड अंबेसडर
एक समय ऐसा था जब हिमा दास के पास दौड़ने के लिए पांव में जूते नहीं हुआ करते थे। वह नंगे पांव ही दौड़ लगाती थी। उन्हें इसकी जरूरत तो थी लेकिन परिवार के पास उस वक्त इतने पैसे नहीं थे कि वह हिमा को जूते खरीद कर दे सकें लेकिन उनके पिता ने फिर भी उन्हें 1200 के जूते खरीद कर दिए। हिमा दास ने कड़ी मेहनत की और इसी की बदौलत वह Adidas की ब्रांड अंबेसडर बनीं। कभी हिमा के पास जूते नहीं ते लेकिन आज हिमा खुद जूतों के ब्रांड की अंबेसडर हैं। हिमा दास को अपने काम के लिए बहुत सारे अवॉर्ड्स भी मिल चुके हैं।
मां का सपना था पुलिस में जाए
हाल ही में असम की डीएसपी बनीं हिमा दास की मानें तो बचपन से ही उनकी मां का यह सपना था कि उनकी बेटी पुलिस में जाए। उनकी मां उन्हें मेले में बंदूक भी दिलाती थी और कहती थीं कि वह असम पुलिस में जाएं।
सच में हिमा की यह फर्श से अर्श तक की कहानी आज सभी के लिए मिसाल है। हिमा की कहानी से यह भी पता चलता है कि अगर आपमें कुछ करने की चाह हो तो हालात भी आपको सफल होने से नहीं रोक सकते हैं।