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मुनिबा मजारी: पति ने मरने के लिए छोड़ दिया, 1 हादसे ने बदली जिंदगी

  • Edited By Anjali Rajput,
  • Updated: 27 Jan, 2020 06:07 PM
मुनिबा मजारी: पति ने मरने के लिए छोड़ दिया, 1 हादसे ने बदली जिंदगी

महिलाओं को अक्सर कमजोर कहा जाता है लेकिन असल में जब यह कुछ करने की ठान ले तो कुदरत को भी इनके आगे घुटने टेकने पड़ते हैं। आज हम आपको ऐसी ही 'आयरन लेडी' की कहानी बताने वाले हैं जिसे सुनकर आप भी कहेंगे वाह हिम्मत हो तो ऐसी,  आज एक मोटिवेशन स्पीकर हैं लेकिन अगर वह पोजिटिव ना होती तो शायद यहां ना होती...

हम बात कर रहे हैं पाकिस्तानी महिला मुनिबा मजारी जो चल फिर नहीं सकती लेकिन उन्होंने व्हील चेयर को अपनी मजबूरी नहीं बनाया। वह शुरु से ही अपाहिज नहीं थी बल्कि उनके पति ने उन्हें इस हाल में पहुंचाया।

चलिए बताते हैं उनकी इंस्पायरिंग स्टोरी

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3 मार्च 1987 को जन्मीं जिस मजबूत इरादों वाली मुनिबा मजारी को आज दुनिया जानती है, उनकी इस सक्‍सेसफुल लाइफ के पीछे एक दर्दनाक कहानी छिपी है। तो चलिए आपको बताते हैं कि मुनिबा की हौंसले व जज्बे से भरी इमोशनल कर देने वाली कहानी...

18 साल की उम्र में हुई शादी

मुनिबा उस परिवार में पैदा हुई जहां लड़कियां परिवार की कही किसी बात पर न नहीं कह सकतीं। मुनिबा पेंटर बनना चाहती थी लेकिन पिता की की खुशी की खातिर 18 साल की उम्र में उन्हें शादी करनी पड़ी लेकिन इसी शादी ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी।

पति ने मरने के लिए गाड़ी में छोड़ दिया अकेला

एक दिन वह पति के साथ कही जा रही थी। कार चलाते पति की आंख लग गई और गाड़ी बेकाबू हो गई। मुनिबा के पति ने खुद को तो बचा लिया लेकिन मुनिबा को कार में ही छोड़ दिया। कार खाई में गिरी, जिसमें उनकी कलाई, कोहनी, कंधे, गर्दन और रीढ़ की हड्डी फैक्चर हो गई। जैसे-तैसे उन्हें बचाया गया लेकिन वह पूरे ढाई महीनों तक अस्पताल में रही। 

जिंदा थी लेकिन अब वह ना कभी पेटिंग कर सकती थी, ना चल फिर सकती थी और ना कभी मां बन सकती थी क्योंकि सीधे हाथ व रीढ़ की हड्डी एक्सीडेंट में बुरी तरह चोटिल हो गई थी।

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एक्सीडेंट से खोएं दोनों पैर व एक हाथ

20 साल की छोटी-सी उम्र में मुनिबा ने अपने पैर खो दिए पाए। उनका एक हाथ भी काम नहीं कर रहा था लेकिन विकलांग होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने अपने भाई से कहा, 'मैं हॉस्पिटल की सफेद दीवारें और चादरें देखकर थक चुकी हूं। मुझे कुछ कलर्स व कैनवस लाकर दो'। इसके बाद उन्होंने डेथ बेड पर अपनी पहली पेटिंग बनाई, जिसके बाद उनका हौंसला बढ़ा और उन्होंने अपने डर को काबू करने का फैसला लिया। उन्होंने ठान लिया था की वह किसी पर निर्भर नहीं रहेंगी और अपनी जिंदगी खुद की शर्तों पर जीएंगी।

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लेकिन उन्होंने विक्लांगता को अपनी ऊपर हावी नहीं होने दिया। सबसे पहले उन्होंने अपने अंदर के डर को बाहर निकाला और पति को तलाक दिया। मां ना बनने का दुख उन्हें था लेकिन उन्होंने एक बच्चा गोद लेकर उस सुख को पा लिया।

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उन्होंने उल्टे हाथ से पेंटिंग करनी शुरु की। भावनाओं को रंगों व रेखाओं के माध्यम से व्यक्त करना शुरू किया, धीरे-धीरे उनकी कला को पहचान मिलनी शुरू हुई। व्हीलचेयर पर होने के बावजूद मॉडलिंग और सिंगिग भी की। वह साथ ही मोटिवेशनल स्पीच देकर लोगों को प्रेरित करती हैं। इसके अलावा वह यू.एन. वुमन पाकिस्तान के लिए गुड़ विल नेशनल एंबेसडर बनी, जहां वो पाकिस्‍तानी महिलाओं के हक व उनसे जुड़े मुद्दों पर रोशनी डालती है।

 

पेटर के साथ मोटिवेशनल स्पीकर भी है मुनिबा

इतना ही नहीं, वह पाकिस्तानी नेशनल टीवी पर बतौर एंकर आती है। इसके अलावा ब्रिटिश समाचार संस्था बीबीसी ने साल 2015 में उन्हें अपनी 100 वुमन सीरीज में शामिल किया था और फोर्ब्स पत्रिका ने साल 2016 में 30 साल से कम उम्र की दुनिया की 30 शख्सियतों में शुमार किया था।

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आज मुनिबा सिर्फ मोटिवेशनल स्पीकर ही नहीं बल्कि एक पेंटर, सिंगर, एक्टिविटीज, एंकर, मॉडल, यू.एन. वुमन की नेशनल एंबेसडर होने के साथ एक बेहतरीन मां भी है। वह कहती हैं, 'कोई बात नहीं अगर आप डरते हो, कोई बात नहीं अगर आप रोते हो, सबकुछ ठीक है लेकिन हारना ऑप्शन नहीं होना चाहिए।

मुनिबा कहती है कि जिंदगी में फेल होना भी जरूरी क्योंकि जब आप फेल होते हो तो आप ऊपर उठते हो। हर एक सांस जो आप ले रहे हो उसका मजे ले लो और अपनी जिंदगी के हर पल को जियो'।

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ऐसी ही सोच हर किसी को रखने की जरूरत है...

उनका कहना है कि 'मेरे शरीर की वजह से कैद हूं, पर मेरा मन आजाद है, और मेरी आत्मा भी, मैं अब भी बड़े सपने देख सकती हूं।' मुनिबा की सोच में सराहने वाली बात है कि उन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बना लिया। उनकी हिम्मत और सकारात्मक सोच निराश-हताश लोगों के दिलों में भी आशा की नई किरण जगा जाती है।

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उनका कहना है कि 'मेरे शरीर की वजह से कैद हूं, पर मेरा मन आजाद है, और मेरी आत्मा भी, मैं अब भी बड़े सपने देख सकती हूं।' मुनिबा की सोच में सराहने वाली बात है कि उन्होंने अपनी कमजोरी को ही अपनी ताकत बना लिया। उनकी हिम्मत और सकारात्मक सोच निराश-हताश लोगों के दिलों में भी आशा की नई किरण जागा जाती है।

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