यह तो सब जानते हैं कि तुलसी का हिंदू धर्म में अहम स्थान है। तुलसी पूजनीय है और साथ ही साथ सदियों से इनकी पत्तियों को औषधि के रूप में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। धार्मिक महत्व से हर घर-मंदिर में पूजा के समय तुलसी अर्पित की जाती है लेकिन भगवान विष्णु से विवाह और लगभग हर शुभ काम में इस्तेमाल होने वाली तुलसी को शिवलिंग और श्रीगणेश की पूजा में स्थान प्राप्त नहीं है। गणपति पूजन में तुलसी का प्रयोग वर्जित है।
इन दिनों गणेश चतुर्थी का त्योहार हर कोई बड़ी धूमधाम से मनाया जा रहा है कल से शुरू हुए इस त्योहार को 10 दिन तक पूरी श्रद्धा से बप्पा की पूजा की जाएगी। चलिए इस अवसर पर गणेश जी से जुड़ी मान्यताओं के बारे में बताते हैं...
गणेश जी की पूजा में तुलसी के पत्ते एक श्राप के चलते वर्जित है। दरअसल, तुलसी ने श्रीगणेश जी को श्राप दिया था।
कथा के अनुसार, एक धर्मात्मज नाम का राजा हुआ करता था, जिसकी कन्या थी तुलसी। तुलसी यौन अवस्था में थी। वो अपने विवाह की इच्छा लेकर तीर्थ यात्रा पर निकली। कई जगहों की यात्रा के बाद उन्हें गंगा किनारे तप करते हुए गणेश जी दिखे। तप के दौरान भगवान गणेश रत्न से जड़े सिंहासन पर विराजमान थे। उनके समस्त अंगों पर चंदन लगा हुआ था। गले में उनके स्वर्ण-मणि रत्न पड़े हुए थे और कमर पर रेशम का पीताम्बर लिपटा हुआ था। उनके इस रूप को देख माता तुलसी ने गणेश जी से विवाह का मन बना लिया।
उन्होंने बप्पा की तपस्या भंग कर उनके सामने विवाह का प्रस्ताव रखा लेकिन तपस्या भंग करने से गुस्सा भगवान गणेश ने उनका विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया और कहा वि वह ब्रह्माचारी हैं। इस बात से गुस्साई माता तुलसी ने गणेश जी को श्राप दिया और कहा कि उनके दो विवाह होंगे। इस पर गणेश जी ने भी उन्हें श्राप दिया और कहा कि उनका विवाह एक असुर शंखचूर्ण (जालंधर) से होगा। राक्षक की पत्नी होने का श्राप सुनकर तुलसी जी ने गणेश जी से माफी मांगी। इस पर गणेश जी ने कहा था कि 'ना तुम्हारा श्राप खाली जाएगा ना मेरा। मैं रिद्धि और सिद्धि का पति बनूंगा और तुम्हारा भी विवाह राक्षस जालंधर से अवश्य होगा लेकिन अंत में तुम भगवान विष्णु और श्री कृष्ण की प्रिया बनोगी और कलयुग में भगवान विष्णु के साथ तुम्हें पौधे के रूप में पूजा जाएगा लेकिन मेरी पूजा में तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।' उसी दिन से भगवान गणेश की पूजा में तुलसी नहीं चढ़ाई जाती।
वहीं शिवलिंग पर भी तुलसी चढ़ाना वर्जित है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जालंधर नाम का एक असुर था जिसे अपनी पत्नी की पवित्रता और विष्णु जी के कवच की वजह से अमर होने का वरदान मिला हुआ था जिसका फायदा उठा कर वह दुनिया भर में आतंक मचा रहता। भगवान विष्णु और भगवना शिव ने उसे मारने की योजना बनाई थी। पहले भगवान विष्णु से जालंधर से अपना कृष्णा कवच मांगा, फिर भगवान विष्णु ने उसकी पत्नी की पवित्रता भांग की जिससे भगवान शिव को जालंधर को मरने का मौका मिल गया। जब वृंदा को अपने पति जालंधर की मृत्यु का पता चला तो उसे बहुत दु:ख हुआ जिसके चलते गुस्से में उसने भगवान शिव को श्राप दिया कि उन पर तुलसी की पत्ती कभी नहीं चढ़ाई जाएगी। यही कारण है कि शिव पूजन में तुलसी की पत्ती नहीं चढ़ाई जाती है।
इसके अलावा भी तुलसी से जुड़ी कुछ मान्यताएं हैं...
तुलसी के पौधे को घर के अंदर नहीं लगाया जाता। ऐसा कहा जाता है कि तुलसी के पति के मृत्यु के बाद भगवान विष्णु ने तुलसी को अपनी प्रिय सखी राधा की तरह माना था इसलिए तुलसी ने उनसे कहा कि वे उनके घर जाना चाहती हैं लेकिन भगवान विष्णु ने उन्हें मना कर दिया और कहा कि मेरा घर लक्ष्मी के लिए है लेकिन मेरा दिल तुम्हारे लिए है। इस पर तुलसी ने कहा कि घर के अंदर ना सही बाहर तो उन्हें स्थान मिल सकता है, जिसे भगवान विष्णु ने मान लिया। तब से आज तक तुलसी का पौधा घर और मंदिरों के बाहर लगाया जाता है।
-शास्त्रों के अनुसार, तुलसी के पत्ते कुछ खास दिनों में नहीं तोड़ने चाहिए। ये दिन हैं एकादशी, रविवार और सूर्य या चंद्र ग्रहण काल। इन दिनों में और रात के समय तुलसी के पत्ते नहीं तोडऩे चाहिए। बिना उपयोग तुलसी के पत्ते तोडऩे से दोष लगता है। अगर रात के समय किसी कारण वंश तुलसी पत्ते तोड़ने भी पड़े तो पहले तुलसी को हिलाकर जगा लें।
-तुलसी के पत्ते को चबाना नहीं बल्कि निगल लेना चाहिए। ऐसा इसलिए कि तुलसी के पत्तों में पारा धातु के तत्व होते हैं जो चबाने से दांतों पर लग जाते हैं जिससे आपके दांत खराब हो सकते हैं।
-तुलसी घर आंगन में रखी है तो दीपक जरूर जलाएं लेकिन रविवार के दिन नहीं।