नारी डेस्क: भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र प्रथम पूज्य भगवान गणेश को संकटहर्ता माना जाता है। हर शुभ कार्य करने से पहले इनकी पूजा और वंदना की जाती है। लेकिन एक वक्त ऐसा आया था जब भगवान शंकर अपने पुत्र से क्रोधित हो गए और उन्होंने अपने त्रिशूल से उनका सिर काट दिया था। भगवान शिव और उनके पुत्र भगवान गणेश की कहानी भारतीय पौराणिक कथाओं में बहुत महत्वपूर्ण और लोकप्रिय है। आइए, पूरी कहानी को समझते हैं:
कहानी का प्रारंभ
एक बार, भगवान शिव कैलाश पर्वत से कहीं बाहर गए हुए थे। इस दौरान, माता पार्वती ने अपने स्नान के लिए समय निकाला। स्नान करने से पहले उन्होंने अपने शरीर के उबटन (चंदन और हल्दी के मिश्रण) से एक बालक का निर्माण किया और उसमें प्राण फूंक दिए। इस प्रकार गणेश जी का जन्म हुआ, जिन्हें माता पार्वती ने अपना पुत्र कहा और उन्हें घर के द्वार पर पहरा देने का आदेश दिया ताकि कोई अंदर न आ सके।
शिव और गणेश जी का सामना
जब भगवान शिव वापस लौटे, तो उन्होंने गणेश जी को द्वार पर पहरा देते हुए देखा। शिव जी ने घर में प्रवेश करने का प्रयास किया, लेकिन गणेश जी ने उन्हें रोक दिया क्योंकि उन्हें अपनी माता का आदेश था कि किसी को भी अंदर नहीं आने देना है। गणेश जी नहीं जानते थे कि भगवान शिव कौन हैं। शिव जी ने उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन गणेश जी अपनी माता के आदेश का पालन करते हुए उन्हें घर में प्रवेश करने से रोकते रहे।
शिव जी का क्रोध
गणेश जी की यह दृढ़ता शिव जी को नाराज कर गई। कई बार की कोशिशों के बाद भी जब गणेश जी ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया, तो भगवान शिव अत्यधिक क्रोधित हो गए। क्रोध में आकर उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश जी का सिर काट दिया। इस घटना से पूरे कैलाश पर्वत में भय और दुख का माहौल छा गया।
*माता पार्वती का शोक
जब माता पार्वती ने यह देखा, तो वे अत्यंत दुखी और क्रोधित हो गईं। अपने पुत्र की मृत्यु देखकर उन्होंने प्रलय का आह्वान कर दिया और कहा कि यदि उनके पुत्र को पुनर्जीवित नहीं किया गया, तो वे पूरे संसार का नाश कर देंगी।
गणेश जी का पुनर्जन्म
भगवान शिव ने पार्वती के दुख को देखकर तुरंत स्थिति को सुधारने का निर्णय लिया। उन्होंने अपने गणों (सेवकों) को आदेश दिया कि वे उत्तर दिशा की ओर जाकर किसी भी जीवित प्राणी का सिर ले आएं, जिसे सबसे पहले देखें। गणों ने उत्तर दिशा की ओर जाकर एक हाथी के बच्चे का सिर पाया और उसे लेकर आए।भगवान शिव ने उस हाथी के सिर को गणेश जी के धड़ से जोड़ दिया और उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। इस प्रकार गणेश जी को नया जीवन मिला और उनका सिर हाथी का हो गया। इसके बाद, भगवान शिव ने गणेश जी को आशीर्वाद दिया कि वे प्रथम पूज्य होंगे और कोई भी पूजा या धार्मिक अनुष्ठान बिना उनकी पूजा के संपन्न नहीं होगा।
कहानी का संदेश
यह कहानी हमें कई महत्वपूर्ण बातें सिखाती है। गणेश जी की मातृभक्ति, भगवान शिव का क्रोध, और फिर अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने के लिए उनका प्रेम, यह सभी घटनाएं हमें कर्तव्य, प्रेम, और सहिष्णुता का महत्व समझाती हैं। गणेश जी की यह कथा आज भी हर धार्मिक अनुष्ठान में उनकी पूजा के महत्व को दर्शाती है।