भगवान शिव को फूल चढ़ाना ना सिर्फ शुभ माना जाता है बल्कि इसका अपना महत्व भी है। बहुत से लोग भगवान शिव के बहुत बड़े भक्त हैं लेकिन वे यह नहीं जानते कि भोलेनाथ को कौन-से फूल नहीं चढ़ाने चाहिए। हिंदू धर्म के मुताबिक, भगवान शिव को चंपा फूल बहुत पसंद है लेकिन भी उन्हें यह फूल अर्पित नहीं किया जाता। इसके अलावा भोलेनाथ को केतकी का फूल भी अर्पित नहीं किया जाता है। चलिए आपको बताते हैं क्यों?
भगवान शिव को क्यों नहीं चढ़ना उनका प्रिय फूल?
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक ब्राह्मण ने अपनी बुरी इच्छाओं के लिए चंपा फूल तोड़ रहा था लेकिन जब नारद मुनि ने वृक्ष से पूछा कि क्या किसी ने उसके फूल तोड़े हैं तो उसने इंकार कर दिया। मगर, नारद जी को सच्चाई पता चल गई थी। वहीं, ब्राह्मण चंपा के फूलों से भोलेनाथ की पूजा करके राजा बन गया और लोगों को प्रताड़ित करने लगा। जब नारद जी ने भगवान शिव से पूछा कि उन्होंने ब्राह्मण को वरदान क्यों दिया तो भोलेनाथ ने कहा कि जो भी मेरी पूजा चंपा से करता है, मैं उसकी हर इच्छा पूरी करता हूं।
इसके बाद, नारद मुनि ने वापिस जाकर चंपा के वृक्ष को श्राप दे दिया कि उसके फूल कभी भी भगवान शिव की पूजा में स्वीकार नहीं किए जाएंगे क्योंकि उसने झूठ बोला। बस तभी से भगवान शिव को चंपा के फूल नहीं चढ़ाए जाते।
केतकी का फूल
शिवपुराण के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्माजी में विवाद हो गया कि दोनों में से कौन बड़ा है। इस बात का फैसला करने के लिए उन्होंने भगवान शिव को न्यायकर्ता बनाया और तभी एक ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। भगवान शिव ने कहा कि जो भी शिवलिंग का आदि और अंत बता देगा वही बड़ा होगा।
भगवान विष्णु ज्योतिर्लिंग को पकड़कर ऊपर अंत और भगवान ब्रह्मा नीचे आदि का पता लगाने गए। मगर, जब भगवान विष्णु को अंत का पता ना चल सका तो वह वापिस आ गए लेकिन भगवान ब्रह्मा केतकी फूल को साक्षी बनाकर भगवान शिव के पास पहुंचे और कहा कि उन्होंने आदि ढूंढ लिया है। उन्होंने केतकी के फूलों से झूठी गवाही दिलवाई। ब्रह्माजी के झूठ पर भगवान शिव क्रोधित हो गए और उनका एक सिर काट दिया। उसके बाद से ही भगवान ब्रह्मा पंचमुख से चार मुख वाले हो गए। चूंकि भगवान ब्रह्मा के झूठ में केतकी फूल भी शामिल थे इसलिए उन्हें भगवान शिव की पूजा में अर्पित नहीं किया जाता।
शिवलिंग को क्यों नहीं चढ़ाती तुलसी?
पौराणिक कथा के अनुसार, पहले जन्म में वृंदा, जालंधर नाम के क्रूर राक्षस की पत्नी थी। जालंधर का वध करने के लिए भगवान शिव ने विष्णु भगवान से आग्रह किया। तब विष्णुजी ने छल से वृंदा का पतिव्रत धर्म भंग कर दिया। बाद में जब वृंदा को यह पता चला तो उन्होंने विष्णुजी को श्राप दिया कि आप पत्थर के बन जाओगे। तब विष्णु जी ने तुलसी को बताया कि मैं तुम्हारा जालंधर से बचाव कर रहा था, अब मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम लकड़ी की बन जाओ। इस श्राप के बाद वृंदा कालांतर में तुलसी का पौधा बन गईं।
शिव जी की पूजा में तुलसी की जगह बेलपत्र चढ़ाए जाते हैं क्योंकि तुलसी श्रापित है। दूसरा शिवजी की पूजा में तुलसी पत्र इसलिए भी नहीं चढ़ाया जाता है, क्योंकि वे भगवान श्रीहरि की पटरानी हैं और तुलसी जी ने अपनी तपस्या से भगवान श्रीहरि को पति रूप में प्राप्त किया था।