नारी डेस्क: गणेश चतुर्थी सम्पूर्ण हिंदू धर्म के लिए एक अति महत्वपूर्ण त्योहार है। यह त्योहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में इसकी अलग ही धूम देखने को मिलती है। भारत में गणेश उत्सव की शुरुआत सार्वजनिक और सामूहिक रूप से मनाने की परंपरा का श्रेय 19वीं शताब्दी के स्वतंत्रता संग्राम के समय लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को दिया जाता है। हालांकि गणेश चतुर्थी का त्योहार भारत में सदियों से पारंपरिक रूप से मनाया जा रहा था, लेकिन इसे सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाने की पहल तिलक ने की।
प्राचीन काल में गणेश पूजा
पौरानिक कथाओं के अनुसार गणेश चतुर्थी का उत्सव कई शताब्दियों से पारंपरिक रूप से मनाया जाता था, विशेष रूप से महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में। लोग अपने घरों में गणेश की प्रतिमा स्थापित कर पूजा करते थे। माना जाता है कि गणपति पूजा की शुरुआत सतयुग या त्रेता युग में हुई थी। गणपति को विघ्नहर्ता और बुद्धि-विवेक के देवता माना जाता है, इसलिए लोग विशेष रूप से नए काम की शुरुआत में गणेश की पूजा करते हैं।
लोकमान्य तिलक का योगदान
1893 में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को सार्वजनिक उत्सव के रूप में मनाने का विचार प्रस्तुत किया। इसका उद्देश्य था लोगों को एकजुट करना और स्वतंत्रता संग्राम के लिए उन्हें प्रेरित करना। अंग्रेजों की गुलामी के दौर में किसी भी प्रकार की सामूहिक सभा या क्रांति की योजना बनाना मुश्किल था, इसलिए तिलक ने गणेश उत्सव को सामूहिक रूप से मनाने की योजना बनाई, जिससे यह धार्मिक आयोजन देशभक्ति और सामाजिक एकता का माध्यम बन गया।
पुणे में हुई थी गणेशोत्सव की शुरुआत
तिलक ने पुणे में सबसे पहले सार्वजनिक गणेशोत्सव की शुरुआत की। उन्होंने गणेश प्रतिमाओं को सार्वजनिक स्थानों पर स्थापित किया और सामूहिक रूप से आरती, भजन, कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया। इससे गणेश उत्सव महाराष्ट्र में लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गया।
गणपति बप्पा सबसे पहले कहां विराजमान हुए थे?
प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणेश जी का सबसे पहला स्थान कटक, उड़ीसा** में माना जाता है। यहां दांडी गणेश मंदिर स्थित है, जहाँ गणपति बप्पा की पूजा कई शताब्दियों से की जा रही है। कटक का यह स्थान गणपति पूजा के प्रमुख स्थलों में से एक है। वहीं, लोकमान्य तिलक द्वारा शुरू किए गए सार्वजनिक गणेशोत्सव की बात करें, तो सबसे पहले गणपति बप्पा को पुणे में सार्वजनिक रूप से विराजमान किया गया था।
गणेश उत्सव का महत्व
गणेश उत्सव धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। गणपति बप्पा को विघ्नहर्ता माना जाता है, और उनकी पूजा से सभी बाधाओं का निवारण होता है। इसके अलावा, यह उत्सव आज भी भारत के विभिन्न हिस्सों में सामूहिक रूप से मनाया जाता है, खासकर महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और गुजरात में। इस प्रकार, गणेश उत्सव की सार्वजनिक शुरुआत से न केवल भारतीय समाज में सांस्कृतिक जागरूकता आई, बल्कि यह देशभक्ति और सामाजिक एकता का प्रतीक भी बन गया।