गुजरात के मेहसाणा में रहने वाली तसनीम मीर सिर्फ 16 बरस की है, लेकिन उसकी उपलब्धियों से उसका पूरा घर भरा पड़ा है। एक तरफ उसकी देश दुनिया में जीते गए कप और ट्राफियां करीने से सजी हैं, तो दूसरी तरफ उसके जीते हुए मेडल टंगे हैं। अब उसने बैडमिंटन जूनियर विश्व वरीयता क्रम में शीर्ष स्थान हासिल करके एक ऐसी उपलब्ध हासिल की है, जिसने पूरे देश को गौरवान्वित किया है।
तिरंगे के साथ सबसे ऊपर चमक रहा है तसनीम का नाम
विश्व बैडमिंटन संघ (बीडब्ल्यूएफ) की आधिकारिक साइट पर लड़कियों की अंडर-19 एकल वरीयता सूची मे तसनीम मीर का नाम तिरंगे के साथ सबसे ऊपर चमक रहा है। यह पहला मौका है जब भारत की महिला बैडमिंटन खिलाड़ी ने वरीयताक्रम में शीर्ष स्थान हासिल किया हो। 2006 में जन्मी तसनीम के पिता इरफान मीर गुजरात पुलिस में मुलाजिम और उसके पहले प्रशिक्षक भी हैं। उन्होंने बताया कि तसनीम बहुत छोटी थी जब उसने बैडमिंटन खेलना शुरू कर दिया था। खेल के प्रति उसकी लगन को देखकर उसके पिता ने पांच बरस की उम्र में उसकी बैडमिंटन की औपचारिक ट्रेनिंग शुरू कर दी थी।
आसान नहीं था यह रास्ता
इरफान ने बताया कि उनकी बेटी में एक बेहतरीन खिलाड़ी बनने के सारे गुण थे और मेहसाणा में इस खेल के आधुनिकतम प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं थी, लिहाजा तसनीम को 10 बरस की उम्र में गोपीचंद पुलेला अकादमी भेजा गया, जहां उन्होंने इस खेल की बारीकियों को समझा। अकादमी में दो वर्ष बिताने के बाद वह गुवाहाटी में असम बैडमिंटन अकादमी में इंडोनेशिया के कोच एडविन इरियावान से पिछले चार वर्ष से ट्रेनिंग ले रही हैं। मीर बताते हैं कि शुरू में सब कुछ इतना आसान नहीं था।
तसनीम के पिता ने दिया पूरा सा
तसनीम की ट्रेनिंग, खेल के लिए जरूरी साजो सामान और टूर्नामेंटों में भाग लेने के लिए इधर-उधर आने जाने पर बहुत खर्चा आता था। एक मौके पर तो उन्हें ऐसा लग रहा था कि वह तसनीम की बैडमिंटन प्रैक्टिस जारी नहीं रख पाएंगे, लेकिन फिर उनके महकमे और परिवार के लोगों ने उनकी मदद की। बाद में राज्य और केन्द्र सरकार के खेल संगठनों के सहयोग से तसनीम की प्रतिभा को तराशने और सही दिशा में आगे बढ़ने का मौका मिला।
तसनीम ने कई खिताब किए अपने नाम
अपने देश के लिए ओलंपिक मेडल जीतने का सपना देख रही तसनीम का कहना है कि कोविड के कारण प्रतियोगिताओं के आयोजन को लेकर इतनी अनिश्चितता थी कि उन्होंने विश्व वरीयता क्रम में पहला स्थान मिलने के बारे में तो सोचा ही नहीं था। हालांकि पिछले कुछ समय से उनका प्रदर्शन बहुत अच्छा था और राष्ट्रीय, एशियाई और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने बहुत से खिताब अपने नाम किए। उन्होंने बताया कि पिछले वर्ष तीन अन्तरराष्ट्रीय जूनियर टूर्नामेंट में उनकी जीत ने उन्हें वरीयताक्रम में पहले नंबर पर पहुंचा दिया।
छोटी-छोटी आंखों ने देखे बड़े- बड़े सपने
अपनी जीत में अपने परिवार और प्रशिक्षकों के योगदान के लिए उनका शुक्रिया अदा करते हुए तसनीम ने कहा कि उन्होंने जब से होश संभाला है बैडमिंटन को सबसे ज्यादा समय दिया है और आगे भी ऐसा करती रहेंगी, ताकि सीनियर वर्ग में बेहतर प्रदर्शन करके ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करें। बहुत मुमकिन है कि अपनी छोटी-छोटी आंखों से इतने बड़े-बड़े सपने देखने वाली आज की यह जूनियर नंबर वन खिलाड़ी कल सीनियर नंबर वन बनकर भारत की बैडमिंटन में ओलंपिक का सुनहरी तमगा जीतने की हसरत पूरी कर दे।