आपने अकसर लड़कों को ही ड्राइव करते हुए देखा होगा लेकिन बात जब भी महिलाओं की आती है तो लोग सोचते हैं कि महिलाएं ड्राइव नहीं कर सकती है। ड्राइव के नाम पर तो लड़कियों का मजाक तक भी बनाया जाता है लेकिन लोगों की ऐसी बातों का ही जवाब दिया है सुरेखा यादव ने। जो देश की पहली महिला लोको पायलट है। तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर कौन है सुरेखा यादव।
ट्रेन ड्राइवर है सुरेखा यादव
सुरेखा ने आज समाज के लोगों का मुंह बंद करते हुए और अपनी अलग पहचान बनाते हुए आज समाज में एक अलग मुक्काम पाया है। सुरेखा यादव लोको पायलट यानि की ट्रेन ड्राइवर है। सुरेखा का जन्म महाराष्ट्र के सतारा ज़िले के एक कृषि परिवार में हुआ था। पढ़ाई के साथ-साथ सुरेखा खेलकूद में भी आगे थी।
बनना चाहती थीं टीचर लेकिन ...
सुरेखा ने सबसे पहले 1988 में ट्रेन चलाई थी। वह हमेशा से एक टीचर बनना चाहती थी लेकिन किस्मत तो उन्हें कुछ और ही बनाना ही चाहती थी। सुरेखा ने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा भी हासिल किया। लेकिन टीचर बनने का सपना देखने वाली सुरेखा यह बात नहीं जानती थी उनकी रेलवे में सेलेक्शन हो जाएगी।
एग्जाम देने वाली अकेली महिला कैंडिडेट बनीं
मीडिया रिपोर्टस की मानें तो सुरेखा यादव अकेली ही ऐसी महिला कैंडिडेट थी जिसने लिखित और मौखिक परीक्षा पास की। सुरेखा ने 1987 में परीक्षा दी थी। हालांकि घर पर जब रेलवे की चिट्ठी पहुंची तो उन्हें भी पहली बार में यकीन नहीं आया। इतना ही नहीं सुरेखा पहली महिला है जो ट्रेन ड्राइवर बनी हैं। वह देश की पहली महिला ड्राइवर हैं जो ट्रेन चलाती हैं।
पुरूषों को छोड़ा पीछे
एग्जाम देने के बाद सुरेखा का ट्रेन चलाने का सफर शुरू हुआ और इसके बाद बारीकियों को सीखने के बाद उन्हें 1989 में असिस्टेंट ड्राइवर के पद पर नियुक्त कर दिया गया। इसी के साथ वह भारत समेत एशिया की ऐसी पहली महिला बनी।
आम रेलगाड़ी से लेकर मालगाड़ी तक भी चलाई
मीडिया रिपोर्टस की मानें तो सुरेखा ने तकरीबन 29 साल रेलवे को दिए। करियर की शुरुआत तो सुरेखा ने एल50 नाम की लोकल माल गाड़ी चला कर की लेकिन इसके बाद, उन्हें ट्रेन के इंजन और सिग्नल से संबंधित काम सौंपे गए, जिसे उन्होंने बड़ी खूबी से निभाया। कड़ी मेहनत के नतीजे के कारण ही वह माल गाड़ी की ड्राइवर बनीं।
‘घाट-लोको' ट्रेन भी चलाई
आपको बता दें कि आज से पहले किसी भी महिला ने ‘घाट-लोको' ट्रेन नहीं चलाई थी और सुरेखा पहली महिला बनीं जिसने यह कमान संभाली। सुरेखा को इस काम की जिम्मेदारी सौंपी गई। ऐसी ट्रेन चलाने पर तो बड़े बड़े ढोल जाते हैं लेकिन सुरेखा के कदम नहीं रूके और उन्होंने इस चुनौती को भी बखूबी पार किया। यही वजह रही कि उनका प्रमोशन करके साल 2011 में उन्हें एक्सप्रेस मेल ड्राईवर के पद पर नियुक्त कर दिया गया।
मिला ‘एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर’ का खिताब
साल 2011 में तत्कालीन रेलमंत्री ममता बनर्जी ने महिलाओं के लिए एक स्पेशल लोकल ट्रेन चलवाई थी. तब उसकी ड्राइवर कोई और नहीं बल्कि सुरेखा ही थीं। इतना ही नहीं साल 2011 में सुरेखा को ‘एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर’ का खिताब मिला।
नाम कर चुकी हैं यह खिताब
1. जिजाऊ पुरस्कार (1998)
2. महिला प्राप्ति पुरस्कार (2001)
3. राष्ट्रीय महिला आयोग, दिल्ली (2001)
4. लोकमत सकी मंच (2002)
5. महिला प्राप्तकर्ता पुरस्कार (2011)
6. आरदुब्लूसीसी के द्वारा सर्वश्रेस्थ महिला वर्ष का पुरस्कार 2013
7. 2011 में भारतीय रेलवे पर पहली महिला लोकोपायलट के लिए जीएम पुरस्कार
सच में हम सुरेखा को इसके लिए सलाम करते हैं क्योंकि वह आज बाकी सभी महिलाओं के लिए प्रेरणा है।