पीरियड्स में अक्सर लड़कियों को पेट में दर्द और ऐंठन की समस्या होती है । कई लड़कियों के लिए यह दर्द असहनीय हो जाता है, जिसके चलते वह स्कूल और ऑफिस जाने से बचती हें। यूनिसेफ के मुताबिक पीरियड के दौरान छात्राएं अमूमन स्कूल में अनुपस्थित रहती हैं जबकि बड़ी लड़कियों में ड्रॉप आउट दर ज़्यादा है। इस समस्या का हल निकालने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला लिया है।
माहवारी में स्कूल जाने से बचती है छात्राएं
दरसअल कुछ लड़कियां सिर्फ इसलिए स्कूल नहीं जाती हैं कि माहवारी के दिनों में उन्हें पेट दर्द, दाग दिखने की समस्या, सेनेटरी नैपकिन, स्कूलों में शौचालय व पानी की उपलब्धता नहीं होती है। अब सुप्रीम कोर्ट ने सभी स्कूलों और शिक्षा संस्थानों को मुफ्त सैनिटरी पैड यानी नैपकिन मुहैया कराने का आदेश दिया है। इसके साथ ही केंद्र सरकार को चार हफ्ते में यूनिफार्म पॉलिसी बनाने का निर्देश भी दिया है।
केंद्र सरकार को दिए निर्देश
चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदी वाला की पीठ ने याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा- इस गंभीर मसले पर आवश्यक है कि केंद्र सरकार राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को भी शामिल करे। कोर्ट ने सभी सरकारों से छात्राओं के लिए मासिक धर्म के दौरान सुविधा और सेहत स्वच्छता के लिए बनाई गई योजनाओं पर खर्च होने वाले धन का भी ब्योरा मांगा है।
जया ठाकुर ने दायर की थी याचिका
दरअसल सैनिटरी पैड की मांग डॉ. जया ठाकुर ने की है। जया ठाकुर ने सैनिटरी पैड को लेकर दायर की गई याचिका में मांग की थी कि देश के स्कूलों में छठी से 12वीं क्लास की छात्राओं को मुफ्त में सैनिटरी पैड मुहैया कराई जाए, ताकि गरीब और आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की बच्चियों को सैनिटरी पैड के लिए कठिनाइयों का सामना ना करना पड़े।
टॉयलेट को लेकर भी की गई थी मांग
याचिकाकर्ता का कहना है कि गरीब पृष्ठभूमि से आने वाली 11 से 18 वर्ष की बालिकाएं पीरियड्स के बारे में और पीरियड्स के दौरान रखी जाने वाली स्वच्छता के बारे में नहीं जानती हैं और ना ही इसके बारे में अपने माता-पिता से बातचीत कर पाती हैं। याचिका में यह भी मांग की गई है कि सभी सरकारी, सहायता प्राप्त और बोर्डिंग स्कूल में अलग टॉयलेट और सफाईकर्मी रखने का निर्देश जारी किया जाए।