भारत की पहली महिला एस्ट्रोनॉट कल्पना चावला को भला कौन भूल सकता है, जो लाखों लड़कियों के प्ररेणा है। कल्पना ने अपनी मेहनत व लगन से वो मुकाम हासिल किया था, जिसका सपना हर लड़की देखती हैं। उन्होंने बचपन से ही आसमान में उड़ने का सपना देखना शुरू कर दिया था लेकिन वह पढ़ाई-लिखाई में काफी कमजोर थी। चलिए आपको बताते हैं कि पढ़ाई-लिखाई में कमजोर कल्पना कैसे बनी लाखों लड़कियों की प्रेरणा...
बचपन में ही देखा था अंतरिक्ष में उड़ने का सपना
हरियाणा के करनाल जिले में जन्मी कल्पना एक ऐसे परिवार से थी, जहां लड़कियों को उंचे सपने देखने की इजाजत नहीं थी। मगर, उनके पिता ने कल्पना को पढ़ाने का फैसला किया। उनके पिता उन्हें डॉक्टर या टीचर बनाना चाहते थे लेकिन कल्पना की गिनती एवरेज स्टूडेंट्स में थी। मगर, 8वीं कक्षा में आते-आते कल्पना अपने करियर को गंभीरता से लेने लगी।
डॉक्टर बनाना चाहते थे पिता
कल्पना को पता था कि उनके पिता उन्हें एस्ट्रोनॉट बनने की इजाजत नहीं देंगे। ऐसे में उन्हें अपनी मां, जो उनकी सहेली भी थी अपनी दिल की बात कही। इसके बाद उन्होंने कल्पना के पिता को समझाया, जिसके बाद उन्होंने कल्पना को एस्ट्रोनॉट बनने की परमिशन दे दी। इसके बाद मानों कल्पना के सपनों में पंख लग गए।
इसलिए की इंजीनियर की पढ़ाई
कल्पना को उड़ते जहाज बहुत आकर्षित करते थे इसलिए पहले उन्होंने इंजीनियर डिग्री ली, ताकि वो उनके बारे में अच्छी तरह जान सके। इंजीनियरिंग में ग्रेजुएशन करने के बाद वह अमेरिका चली गईं, जहां से शुरू हुआ उनके एस्ट्रोनॉट बनने का सफर।
एस्ट्रोनॉट से पहले थी रिसर्च वाइस प्रेसिडेंट
बता दें कि उन्हें हवाईजहाजों, ग्लाइडरों व व्यावसायिक विमानचालन के लाइसेंस के लिए प्रमाणित उड़ान प्रशिक्षक का दर्ज़ा हासिल था। एस्ट्रोनॉट बनने से पहले कल्पना को नासा की एक खास टीम में बतौर वाइस प्रेसिडेंट चुना गया था। इसके बाद वह कोर टीम में शामिल हुई। साल 1998 में कल्पना ने अंतरिक्ष के लिए पहली उड़ान भरी। इसी के साथ उन्हें अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला एस्ट्रोनॉट की खिताब मिला।
साल 2000 में कल्पना अपनी दूसरी उड़ान के लिए निकली लेकिन फिर कभी घर ना लौट सकीं। दूसरी उड़ान में उन्होंने 16 दिन व 360 घंटे अंतरिक्ष में बिताए थे लेकिन 1 फरवरी 2003 को कोलंबिया स्पेस शटल पृथ्वी की कक्षा मे प्रवेश करते ही टूटकर बिखर गया। उनके साथ 7 यात्री भी दुनिया को अलविदा कह गए।
भले ही कल्पना इस दुनिया में ना हो लेकिन अपनी हिम्मत, हौंसले और अटूट विश्वास से वह लाखों के लिए प्रेरणा बन गई।