टोक्यो ओलंपिक में मीराबाई चानू ने सिल्वर मेडल जीत देश का नाम रोशन किया। वहीं, फिलहाल कई खेलों में देश के हाथ निराशा लगी। हालांकि अभी भी कई खिलाड़ी उम्मीद की किरण जगाए हुए हैं। भारतीय बैडमिंटन स्टार पीवी सिंधु ने प्री क्वार्टर फाइनल में पहुंच गई। वहीं, अब मुक्केबाज पूजा रानी ने टोक्यो ओलंपिक में अपना शानदार प्रदर्शन जारी रखा। उन्होंने राउंड 16 में अल्जीरिया की इचरक चाईब को हराकर महिलाओं के 75 किग्रा मिडिलवेट क्वार्टर फाइनल में अपनी जगह बनाई।
मौजूदा एशियाई चैंपियन और ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय एथलीट पूजा रानी ने अपने 20 वर्षीय प्रतिद्वंद्वी के खिलाफ सर्वसम्मति से 5-0 के फैसले से जीत हासिल की। साथ ही उन्होंने भारत के लिए मेडल जीतने की ओर एक कदम आगे बढ़ाया।
कौन है पूजा रानी?
भारतीय मिडिलवेट मुक्केबाज हरियाणवी छोरी पूजा रानी बूरा भिवानी जिले के निमरीवाली गांव की रहने वाली हैं। 2016 में, वह रियो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में विफल रही, जब वह मई 2016 में महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप के दूसरे दौर में हार गई। 2020 में वह 2020 समर ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय बनीं।
घर वालों से छिपाकर करती थी पहलवानी
हवा सिंह बॉक्सिंग अकादमी में शामिल होने के लिए पूजा को एक साल लग गया। हालांकि उन्होंने इसे अपने पिता से गुप्त रखा क्योंकि वो जानती थी कि उसके पिता इसे अस्वीकार कर देंगे। वह अपनी चोटों को खेल से छिपाती थी ताकि उसके पिता को पता न चले। घाव कम होने तक वह अपने दोस्तों के घर रहा करती थी। उन्हें पिता से इसके खिलाफ 6 महीने तक लड़ना पड़ा लेकिन आखिरकार उनके पिता बॉक्सिंग करवाने के लिए मान गए।
पहली जीत के बार पिता ने पहचानी प्रतिभा
उनकी पहली बड़ी जीत 2009 में राज्य चैंपियनशिप में हरियाणा की एक प्रमुख मुक्केबाज प्रीति बेनीवाल को हराकर आई थी। इसी के साथ वह एक युवा राज्य चैंपियन बनीं। इसके बाद 60 किग्रा वर्ग में युवा राष्ट्रों में रजत पदक जीता। धीरे-धीरे उसके परिवार ने उसका समर्थन करना शुरू कर दिया। यही नहीं, ईनाम के तौर पर उनके पिता पूजा के लिए बाइक भी लेकर आए। पूजा ने 2009 में नेशनल यूथ बॉक्सिंग चैंपियनशिप जीती, जिसके बाद वह राष्ट्रीय स्तर पर पहुंच गईं।
दिवाली में लगी चोट के कारण हुई खेलों से दूर
साल 2017 में दिवाली में उनका हाथ जल गया, जिसके कारण वह छह महीने तक खेलों से बाहर रही। खोए हुए समय की भरपाई करने के लिए उसने प्रशिक्षण में जल्दबाजी की और कंधे में चोट लग गई। उसका आत्मविश्वास डगमगा गया लेकिन फिर रानी ने महसूस किया कि 81 किग्रा वर्ग में स्विच करना बेहतर होगा। अप्रैल 2019 में, उन्होंने चीन की वांग लीना को हराकर ASBC एशियाई चैम्पियनशिप का स्वर्ण पदक जीता।
देश के लिए जीते कई मेडल
उन्होंने 2014 एशियाई खेलों में 75 कि.ग्रा. वर्ग में कांस्य पदक जीता। साथ ही वह साल 2016 दक्षिण एशियाई खेलों में देश के लिए स्वर्ण पदक भी ला चुकी हैं। उसने एशियाई चैम्पियनशिप 75 किलोग्राम भार वर्ग में रजत (2012) और कांस्य (2015) भी जीता। उन्होंने ग्लासगो कॉमनवेल्थ गेम्स 2014 में 75 किग्रा वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इसके अलावा वह कई नेशनल व इंटरनेशनल मेडल जीत चुकी हैं।